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" लक्ष्य निर्धारण एक आकर्षक भविष्य का रहस्य है" - टोनी रॉबिंस

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प्रेरक प्रसंग:- स्नेह और सौम्यता

Date : 02-Jul-2024

अपने परम तेजस्वी, तमतमाते हुए रक्तवर्ण मुखारविंद के साथ जब सूर्यदेव घर पहुंचे, तो उनकी पत्नी संज्ञा ने आँखें  बंद कर लीं | कुपित होकर सूर्यदेव बोले, "क्यों, तुम्हें मेरा तेजस्वी रूप रुचता नहीं ?" संज्ञा की आँखें  और भी नीची हो गयीं | उसने बादलों के घूंघट में अपने कोमल मुख को ढँक लिया | यह अभद्रता सूर्यदेव को और भीअखरी और वे लाल- पीले होकर अपना दर्प दिखाने लगे | बेचारी संज्ञा भयभीत होकर अपने पितृगृह  कुरुप्रदेश चली गयी और तपस्या में लीं हो गयी | सूर्यदेव अपनी पत्नी के बिना उदास रहने लगे | वे एक योगी का रूप धारण कर संज्ञा के पास पहुंचे और उन्होंने उससे तपस्या का प्रयोजन पूछा | वह तपस्विनी बोली, "हे तात ! मेरे पति और भी अधिक तेजस्वी हों, पर उनका स्वभाव इतना सरल हो कि मैं अपलक उनके दर्शन कर सकूँ |"

यह सुन सूर्यदेव द्रवित  हो गए | दर्प की प्रचंडता को व्यर्थ मानते हुए उन्होंने अपनी सोलह कलाओं में से एक के साथ ही प्रकाशित होना आरम्भ कर दिया | तब संज्ञा घर लौटी और सूर्यदेव को सौम्य पाकर उनसे बोली, "नाथ ! वैभव कितना ही क्यों न हो, स्नेह तो सौम्यता ही ढूंढेगा और उसी में तृप्ति मानेगा |"

 
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