" नारी शक्ति की अपरिमितता का द्योतक हैं, कालजयी वीरांगना रानी दुर्गावती "
Date : 24-Jun-2024
"चंदेलों की बेटी थी, गोंडवाने की रानी थी, चंडी थी रणचंडी थी, वह तो दुर्गावती भवानी थी। "
------*भोपाल, नागपुर और बिलासपुर तक गोंडवाना साम्राज्य का विस्तार *-----------------गोंडवाना साम्राज्य के गढ़ जबलपुर, सागर, दमोह, सिवनी, मंडला, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, नागपुर, होशंगाबाद, भोपाल, और बिलासपुर तक फैले हुए थे।समकालीन इतिहासकारों की माने तो 70 हजार गांव थे जिनकी संख्या रानी दुर्गावती के समय 80हजार तक हो गई थी।किलों की संख्या 57 परगनों की संख्या 57 हो गई थी। कतिपय इतिहासकारों ने 56 सूबों का उल्लेख किया है।अकबर का दरबारी लेखक अबुल फजल लिखता है कि 23 हजार गांव में प्रत्यक्ष प्रशासन था और शेष सामंतों के अधीन करद गांव थे। गोंडवाना या गढ़ा-कटंगा विस्तृत और संपन्न राज्य हो गया था, इसके पूर्व में झारखंड, उत्तर में भथा या रीवा का राज्य, दक्षिण में दक्षिणी पठार और पश्चिम में रायसेन प्रदेश था। इसकी लंबाई पूर्व से पश्चिम 300मील तथा चौड़ाई उत्तर से दक्षिण 160 मील थी। इन सीमाओं को रानी दुर्गावती ने और बढ़ा लिया था। गोंडवाना साम्राज्य का क्षेत्रफल लगभग इंग्लैंड के क्षेत्रफल जितना हो गया था। विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण दिल्ली के सुल्तान या पड़ौस के कोई अन्य राजा गोंडवाना पर अपना प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सके। महान् पुरातत्व एवं इतिहासविद राय बहादुर हीरालाल के जबलपुर गजेटियर, श्री रविशंकर शुक्ल अभिनंदन ग्रंथ, जगमोहन दास स्मृति ग्रंथ और जबलपुर कमिश्नरी द्वारा प्रकाशित जबलपुर अतीत दर्शन ग्रंथ में गढ़ों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
पहले हर रियासत जनता से अपने हिसाब से कर वसूलती थी। इसका निश्चित भाग राजा को दिया जाता था। कराधान कहीं ज्यादा तो कहीं कम था। वह रियासतदार के स्वभाव और मर्जी पर आधारित था। रानी दुर्गावती ने अपने शासनकाल में इसमें बदलाव किया। उन्होंने पूरे राज्य में एक जैसे कर की घोषणा की। यह कर राज दरबार पर केन्द्रित हो गया। एक समान कर प्रणाली के तहत राजा को जो कर मिलता था, उसका उचित हिस्सा रियासतों को दिया जाता था। इससे रियासतों की ज्यादती और कर की विसंगतियों पर लगाम लगी।गोंडवाना में विपुल पशुधन और उन्नत कृषि थी यहाँ का मोटा अनाज(मिलेट्स) पूरे भारत में हुआ।वहीं वस्त्र उद्योग, काष्ठ उद्योग, जड़ी बूटियों से तैयार औषधि उद्योग और शस्त्र उद्योग को बढ़ावा दिया गया। वनांचल में रहने वालों को लाख, औषधि निर्माण, शहद, चार-चिरोंजी और गोंद उद्योग को बढ़ाया गया।नगरीय क्षेत्र में आम, जामुन सीताफल और अमरुद के बगीचे विकसित किए तो ग्रामीण क्षेत्रों में साल, सागौन, खैर, तेंदू और महुआ आदि का संरक्षण और रोपण हुआ।जल संसाधन विकसित किए गए जिससे मत्स्य और सिंघाड़ा उद्योग उन्नत हुआ। रानी दुर्गावती के समय गोंडवाना साम्राज्य के स्वर्ण युग बनाने में कर प्रणाली और आर्थिक नीतियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
रानी दुर्गावती की युद्ध नीति और कूटनीति विलक्षण थी, जिसकी तुलना काकतीय वंश की वीरांगना रुद्रमा देवी और फ्रांस की जान आफ आर्क को छोड़कर विश्व की अन्य किसी वीरांगना से नहीं की जा सकती है।युद्ध के 9 पारंपरिक युद्ध व्यूहों क्रमशः वज्र व्यूह, क्रौंच व्यूह, अर्धचन्द्र व्यूह, मंडल व्यूह, चक्रशकट व्यूह, मगर व्यूह, औरमी व्यूह, गरुड़ व्यूह, और श्रीन्गातका व्यूह से परिचित थीं। इनमें क्रौंच व्यूह और अर्द्धचंद्र व्यूह में सिद्धहस्त थीं। क्रौंच व्यूह रचना का प्रयोग ,जब सेना ज्यादा होती थी, तब किया जाता था जिसमें क्रौंच पक्षी के आकार के व्यूह में पंखों में सेना और चोंच पर वीरांगना होती थीं और शेष अंगों पर प्रमुख सेनानायक होते थे। वहीं दूसरी ओर जब सेना छोटी हो और दुश्मन की सेना बड़ी हो तब अर्द्धचंद्र व्यूह रचना का प्रयोग किया जाता था, जिससे सेना एक साथ ज्यादा से ज्यादा जगह से दुश्मन पर मार सके।वीरांगना की रणनीति अकस्मात् आक्रमण करने की होती थी। रानी दुर्गावती दोनों हाथों से तीर और तलवार चलाने में निपुण थीं। गोंडवाना साम्राज्य की सत्ता संभालने के कुछ दिन बाद ही गढ़ों की संख्या 52 से बढ़कर 57 हो गई थी और परगनों की संख्या भी 57 हो गई थी । वीरांगना ने एक बड़ी स्थायी और सुसज्जित सेना तैयार की, जिसमें 20 हजार अश्वारोही एक सहस्र हाथी और प्रचुर संख्या में पदाति थे। तत्कालीन भारत में गोंडवाना साम्राज्य प्रथम साम्राज्य था, जहां महिला सेना का भी दस्ता था और रानी दुर्गावती की बहिन कमलावती और पुरागढ़ की राजकुमारी कमान संभालती थीं।
-----*16 बड़े युद्ध सहित 52 युद्धों में से 51 में अपराजेय रहीं *- - - - वीरांगना रानी दुर्गावती के शौर्य, साहस एवं पराक्रम के संबंध में प्रकाश डालते हुए तथाकथित छल समूह के इतिहासकारों ने कुल 4 युद्धों का टूटा-फूटा वर्णन कर इतिश्री कर ली है, जबकि वीरांगना ने 16 बड़े युद्ध (छुटपुट युद्धों को छोड़कर) लड़े। 16 युद्धों में से 15 युद्धों विजयी रहीं, जिसमें 12 युद्ध मुस्लिम आक्राताओं से लड़े गये, उसमें से भी 6 मुगलों के विरुद्ध लड़े गये। वैंसे गोंडवाना में प्रचलित है कि छोटे - बड़े सभी युद्धों की बात की जाए तो वीरांगना रानी दुर्गावती ने अपने जीवनकाल में 52 युद्ध लड़े थे जिसमें 51 युद्धों में उन्होंने विजय प्राप्त की थी। पिता राजा कीरतसिंह के साथ मिलकर, हनुमान द्वार का युद्ध, गणेश द्वार का युद्ध, लाल दरवाजा का युद्ध, बुद्ध भद्र दरवाजा का युद्ध (कालिंजर का किला- अब कामता द्वार,पन्ना द्वार, रीवा द्वार हैं)लड़े गये जिसमें विजयश्री प्राप्त की।
-----*वीरांगना रानी दुर्गावती के मुगलों से 6 भीषण युद्ध *--------वीरांगना रानी दुर्गावती सतर्क हो गईं और सिंगौरगढ़ में मोर्चा बंदी कर ली। आसफ खान 6 हजार घुड़सवार सेना 12 हजार पैदल सेना एवं तोपखाने तथा स्थानीय मुगल सरदारों के साथ सिंगोरगढ़ आ धमका। इधर रानी दुर्गावती के साथ, उनके पुत्र वीर नारायण सिंह, अधार सिंह, हाथी सेना के सेनापति अर्जुन सिंह बैस, कुंवर कल्याण सिंह बघेला, चक्रमाण कलचुरि, महारुख ब्राह्मण, वीर शम्स मियानी, मुबारक बिलूच,खान जहान डकीत, महिला दस्ता की कमान रानी दुर्गावती की बहन कमलावती और पुरा गढ़ की राजकुमारी (वीर नारायण सिंह की होने वाली पत्नी) संभाली। अविलंब युद्ध आरंभ हो गया।
----नर्रई के घमासान युद्ध और स्व के लिए वीरांगना का प्राणोत्सर्ग----------- अंततः वीरांगना ने नर्रई की ओर कूच किया और युद्ध के लिए "क्रौंच व्यूह" रचना तैयार की.।23 जून 1564 को नर्रई में प्रथम मुठभेड़ हुई, रानी और उनके सहयोगियों ने मुगलों की की दुर्गति कर डाली ।आसफ खान सहित मुगल सेना भाग निकली और डरकर बरेला तक निकल गई । 23 जून की रात तक तोपखाना गौर नदी पार कर बरेला पहुंच गया। 23 जून की रात को घातक षड्यंत्र हुआ। .आसफ खान ने रानी के एक छोटे सामंत बदन सिंह को घूस देकर मिला लिया। उसने रानी की रणनीति का खुलासा कर दिया कि कल युद्ध में रानी मुगलों को घने जंगलों की ओर खींचेगी जहाँ तोपखाना कारगर नहीं होगा और सब मारे जाएंगे। आसफ खान डर गया उसने उपचार पूंछा, तब बदन सिंह ने बताया कि नर्रई नाला सूखा पड़ा है और उसके पास पहाड़ी सरोवर है जिसे यदि तोड़ दिया जाए तो पानी भर जाएगा और रानी नाला पार नहीं कर पाएगी और तोपों की मार सीधा पड़ेगी।उधर रात में रानी को अनहोनी का अंदेशा हुआ, उन्होंने सरदारों से रात में ही हमले का प्रस्ताव रखा पर सरदार नहीं माने ! यदि मान जाते तो इतिहास कुछ और ही होता। अंततोगत्वा युद्ध की अंतिम घड़ी समीप आ ही गयी। वीरांगना रानी दुर्गावती ने "क्रौंच व्यूह" रचा। सारस पक्षी के समान सेना जमाई गई। चोंच भाग पर रानी दुर्गावती स्वयं और दाहिने पंख पर युवराज वीरनारायण और बायें पंख पर अधारसिंह खड़े हुए। 24 जून 1564 को प्रातः लगभग 10 बजे भयंकर मोर्चा खुल गया और घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ पहले हल्ले में मुगलों के पांव उखड़ गए। मुगलों ने 3 बार आक्रमण किये और तीनों बार गोंडों ने जमकर खदेड़ा, इसलिए मुगलों ने तोपखाना से मोर्चा खोल दिया। रानी दुर्गावती ने योजना अनुसार घने जंगलों की ओर बढ़ना प्रारंभ किया परंतु बदन सिंह की योजना अनुसार पहाड़ी सरोवर तोड़ दिया गया। नर्रई में बाढ़ जैसी स्थिति बन गयी, अब वीरांगना घिर गयी। इसी बीच अपरान्ह लगभग 3 बजे वीरनारायण के घायल होने की खबर आई परंतु वीरांगना रानी दुर्गावती तनिक भी विचलित नहीं हुई। आंख में तीर लगने के बाद भी युद्ध जारी रखा, मुगल सेना के बुरे हाल थे परंतु अचानक रानी को एक तीर गर्दन पर लगा रानी ने तीर तोड़ दिया। हाथी सरमन के महावत को अधार सिंह पीछे हटने का आदेश दिया परंतु रानी समझ गयी थी कि अब वो नहीं बचेंगी! अत: अधार सिंह को उन्होंने स्वयं को मार देने का आदेश दिया परंतु अधार सिंह ने वीरांगना को मारने से मना कर दिया। वीरांगना रानी दुर्गावती, अधार सिंह से यह कहते हुए कि "मृत्यु तो सभी को आती है अधार सिंह, परंतु इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो स्वाभिमान के साथ जिये और मरे", युद्ध के गोल में समा गयीं और लगभग 150 मुगल सैनिकों का वध करते हुए, भीषण युद्ध किया जब उनको मूर्छा आने लगी तो उन्होंने अपनी कटार से प्राणोत्सर्ग किया। वहीं सेनापति अधार सिंह के नेतृत्व में कल्याण सिंह बघेला, चक्रमाण कलचुरि और महारुख ब्राम्हण ने युद्ध जारी रखा और वीरांगना के पवित्र शरीर को सुरक्षित किया तथा युवराज वीर नारायण सिंह को रणभूमि से सुरक्षित भेज कर अपनी पूर्णाहुति दी।इस युद्ध में वीरांगना के पक्ष से लगभग 700 सैनिकों का बलिदान हुआ जबकि मुगल सेना से लगभग 2000 सैनिक मारे गए। युवराज वीरनारायण सिंह ने वीरांगना रानी दुर्गावती का अंतिम संस्कार कर चौरागढ़ में सेनापति अधार सिंह के साथ मुगलों के विरुद्ध मोर्चा जमाया, जहाँ मुगलों के विरुद्ध चौरागढ़ ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया।