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शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल ||

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चाणक्य नीति:- कुछ चीजें भाग्य से मिलती हैं

Date : 12-Jun-2024

आयु: कर्म वित्तश्च विद्या निधनमेव च | 

पश्चेतानि हि  सृज्यंते गर्भस्थ गर्भास्थ्यैव देहिन: || 

 

आचार्य चाणक्य यहां भाग्य को लक्ष्य करके मानव जीवन के प्रारंभ में उसके लेखन को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि आयु, कर्म, वित्त, विद्या, निधन, ये पांचों चीजें प्राणी के भाग्य में तभी लिख दी जाती है, जब वह गर्भ में ही होता है | 


अभिप्राय यह है कि प्राणी जब मां के गर्भ में होता है, तभी पांच चीजें उसके भाग्य में लिख दी जाती है - आयु, कर्म, धन -संपत्ति, विद्या और मृत्यु |

 

इनमें बाद में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता | उसकी जितनी उम्र होती है उससे एक पल भी पहले उसे कोई नही मार सकता | वह जो भी कर्म करता है, उसे जो भी धन -संपदा और विद्या मिलती है, वह सब पहले से ही तय होता है | जब उसकी मृत्यु  का समय आ जाता है, तो एक क्षण के लिए भी फिर उसे कोई नही बचा सकता |

 
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