एकात्म मानव दर्शन : चतुर्पुरुषार्थ सिद्धांत को व्यवहारिक स्वरूप दिया था दीनदयाल जी ने
Date : 25-Sep-2024
विश्व की आधुनिक शासन प्रणालियों में बहुत से बहुत से सिद्धांत सामने आये । इन सिद्धातों को सूत्र रूप प्रस्तुत करने के लिये कुछ शब्द भी आये । जैसे साम्यवाद, पूँजीवाद, समाजवाद, आदि। दीनदयाल जी ने इन सबकों अपूर्ण और अव्यवहारिक बताया और एकात्म मानव दर्शन प्रस्तुत किया । जिसका आधार चतुर्पुरुषार्थ है ।
यह विचार सभी दृश्यमान जगत में एकात्मता खोजता है। दीनदयाल जी ने समझाया कि संसार में पृथक दिख रहा है वह पृथक नहीं है । यह तो उसके स्वरूप विविधता है । जो ‘पिंड’ में है वही ‘ब्रह्माण्ड’ में है। अर्थात मानव की देह में जो तत्व या पदार्थ हैं वे ही सब ब्रह्माण्ड में है । आज मानव अपने को पृथक मान कर दूसरे मानव से युद्ध कर रहा है, परिवार, जाति, वंश , पंचायत सब को अपना दुश्मन मान रहा है। यह मानवता के लिये घातक है । उन्होंने चेतावनी दी कि साम्यवाद के नाम पर जो मार्ग खोजा गया है यह तानाशाही की ओर जा रहा है । विकास के नाम पर प्रकृति से युद्ध कर रहा है, जो भविष्य विनाश की भयानक विभीषिका को आमंत्रण है। उन्होंने कहा कि अध्यात्म को अनदेखा नहीं किया जा सकता । यदि ऐसा हुआ तो मन स्वेच्छाचारी होगा और इन्द्रियाँ भोग के लिये लालायित । इससे दुख के अतिरिक्त कुछ न मिलेगा । उन्होंने स्पष्ट किया भारतीय चिंतन अधिकार भाव का नहीं, सेवा भाव का है, संबंध भाव का है तभी तो सबसे रिश्ते जोड़े। धरती ‘माता’ है चन्द्रमा मामा है पर्वत ’देवता’ है, नदियां ‘माता’ है, बंदर मामा है । चीटी से लेकर हाथी तक सभी परस्पर जुड़े हुए हैं । संसार में दूसरा नहीं, कोई पराया नहीं । सब एक दूसरे के पूरक हैं। पूरी धरती और धरती के समस्त निवासी एक कुटुम्ब हैं।