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गोपाष्टमी का आध्यात्मिक महत्व

Date : 09-Nov-2024

हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन गोपाष्टमी मनाई जाती है। सनातन धर्म में गाय को मां का दर्जा दिया जाता है। भगवान श्री कृष्ण को गायों से बहुत प्रेम था, वे गायों के सेवा करते थे और साथ में खेला भी करते थे। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन कृष्ण भगवान ने गायों को चराना शुरू किए थे। गोपाष्टमी के गाय की पूजा सेवा करने से भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।    

गोपाष्टमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है, जो मुख्य रूप से मथुरा और वृंदावन सहित ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है, जो भगवान कृष्ण और पवित्र गाय के बीच दिव्य बंधन को समर्पित है। इस वर्ष यह शनिवार, 9 नवंबर, 2024 को मनाया जाएगा। यह त्यौहार हिंदू संस्कृति में गायों के महत्व को दर्शाता है, जो पोषण, निस्वार्थता और समृद्धि का प्रतीक है।

गोपाष्टमी की कथा

धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान श्री कृष्ण जब : वर्ष के थे, तब वे अपनी माता से कहने लगे कि मैया अब मैं बड़ा हो गया हूं और इसलिए अब बछड़े चराने नहीं जाऊंगा। मैं गौ माता के साथ जाऊंगा। यशोदा ने इस बात को  नन्द बाबा पर टालते हुए कहा कि अच्छा ठीक है, लेकिन एक बार बाबा से पूछ लो। तब भगवान कृष्ण नंद बाबा के पास गये और कहने लगे कि अब मैं बछड़े नहीं बल्कि गाय चराने जाया करूंगा। नंद बाबा ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन कृष्णा की हठ के आगे उनकी एक चली। फिर नंद बाबा ने कहा कि ठीक है लेकिन पहले जाकर पंडित जी को बुला लाओ ताकि उनसे गौ चारण के लिए शुभ मुहूर्त का पता लगा सकूं।

 

बाल गोपाल दौड़ते हुए पंडित जी के पास पहुंचे और उनसे कहा कि पंडित जी आपको नंद बाबा ने गौ चारण का मुहूर्त देखने के लिए बुलाया है। पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और पंचांग देखकर उसी दिन का समय गौ चारण के लिए शुभ बता दिया और साथ ही ये भी कहा कि आज के बाद से एक साल तक गौ चारण के लिए कोई अन्य मुहूर्त नहीं है। नंद बाबा ने बाल गोपाल को गौ चारण की आज्ञा दे दी। भगवान उसी दिन से गाय चराने जाने लगे। उस दिन गाय चराने का काम आरंभ करने की वजह से ही इसे गोपाष्टमी कहा गया।

एक मान्यता यह भी है कि कहा जाता है कि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा था। आठवें दिन जब इंद्र देव का अहंकार टूटा और वे श्रीकृष्ण के पास क्षमा मांगने आए। तभी से त्यौहार बड़े ही धूमधाम से  उत्सव मनाया जा रहा है। 

पूजा-विधि:

·         इस दिन सुबह जल्दी उठें। स्नान करने के बाद गायों को स्नान कराएं।

·         गायों को स्नान करा उनके पैरों में मेहंदी लगाकर श्रृंगार भी करें। गायों के सींगों में मुकुट धारण कराएं। गायों की परिक्रमा कर उनके पैरों की मिट्टी अपने सिर पर लगाएं।

·         गंगाजल, चावल, कपड़े, इत्र,  कलावा, फूल, फल,  तुलसी पत्र और घर पर बनी मिठाइयों का भोग लगाएं। दीप जलाकर और अगरबत्ती के साथ गायों की पूजा करें।

·         भगवान कृष्ण के मंदिरों में भी जाकर विशेष पूजा-अर्चना करें।

 

गोपाष्टमी का आध्यात्मिक महत्व

यह त्यौहार भगवान कृष्ण के जानवरों और प्राकृतिक दुनिया के प्रति प्रेम की याद दिलाता है। यह भक्तों को संरक्षण, विनम्रता और कृतज्ञता के मूल्यों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित करता है। गायों को "कामधेनु" या इच्छा-पूर्ति करने वाली गाय माना जाता है, यह आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि दोनों के स्रोत के रूप में पूजनीय माना जाता है। यह उत्सव जीवन को बनाए रखने में गायों की भूमिका को रेखांकित करता है, उनके पोषण सार का प्रतीक है और प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के आदर्श को मजबूत करता है।

 
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