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" साक्षरता दुःख से आशा तक का सेतु है " — कोफी अन्नान

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कौन हैं छठीमइया और क्यों की जाती है इनकी पूजा ?

Date : 07-Nov-2024

क्या आप जानते हैं कि छठ माता कौन हैं और इनकी सूर्य के साथ पूजा क्यों की जाती है. सूर्य से इनका क्या संबंध है. छठ पूजा क्यों मनाई जाती है।

छठपर्व  षष्ठी  का अपभ्रंश है. कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाने के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल को मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है.

यह चार दिनों का त्योहार है और इसमें साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है. इस त्योहार में गलती की कोई जगह नहीं होती. इस व्रत को करने के नियम इतने कठ‍िन हैं, इस वजह से इसे महापर्व अौर महाव्रत के नाम से संबाेध‍ित किया जाता है.

कौन हैं छठीमइया ?

मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है.

षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है.

मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्ट‍ि की अध‍िष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं.

वो बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है.

श‍िशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है. इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घ आयु का आशीर्वाद मिलता है.

जानकारों की मानें तो पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथ‍ि को पूजा की जाती है.

छठ व्रत कथा

कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे. उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं.

नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ. इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ. संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया. लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं.

देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं. मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं. यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी. देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया.

राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि  विधान से पूजा की. इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा.

 छठ_व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ_व्रत रखा. इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।।

छठ पूजा भारत में मनाया जाने वाला  उनकी पत्नी उषा को समर्पित है। यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता है।

छठ पूजा का उद्देश्य सूर्य देवता को धन्यवाद देना है, जो जीवन और ऊर्जा का स्रोत है। यह त्योहार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है।

छठ पूजा के दौरान लोग सूर्य देवता की पूजा करते हैं और उन्हें अर्घ्य देते हैं। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है, जिसमें पहले दिन को नहाय-खाय, दूसरे दिन को लोहंडा-खाय, तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य और चौथे दिन को उषा अर्घ्य कहा जाता है।

छठ पूजा का महत्व इस प्रकार है:

सूर्य देवता की पूजा: छठ पूजा सूर्य देवता को समर्पित है, जो जीवन और ऊर्जा का स्रोत है।

धन्यवाद: यह त्योहार सूर्य देवता को धन्यवाद देने का अवसर प्रदान करता है।

परिवार और समाज: छठ पूजा परिवार और समाज के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह त्योहार परिवार के सदस्यों और समाज के लोगों को एक साथ लाता है।

सांस्कृतिक महत्व: छठ पूजा बिहार और उत्तर प्रदेश की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

 
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