मधुकर दत्तात्रेय देवरस, जिन्हें उनके प्रसिद्ध नाम बालासाहब देवरस से जाना जाता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तीसरे सरसंघचालक थे। वह उन पहले स्वयंसेवकों में से एक थे जिन्होंने डॉ. हेडगेवार द्वारा नागपुर के मोहिते बाड़ा में शुरू की गई आरएसएस की पहली शाखा में भाग लिया था। उनका जीवन अत्यंत सरल और मिलनसार था, लेकिन वे प्रसिद्धि से दूर रहते हुए एक कुशल संगठक और दूरदर्शी व्यक्ति भी थे। उनके जीवन को समझने के लिए बाबू राव चौथाई वाले जी का संस्मरण उल्लेखनीय है।
बालासाहब देवरस सामाजिक समरसता के प्रबल पक्षधर थे। पुणे में बसंत व्याख्यान माला में दिए गए उनके ऐतिहासिक भाषण ने इस बात को प्रमाणित किया। उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था, "यदि छुआछूत पाप नहीं है तो इस संसार में कुछ भी पाप नहीं है। वर्तमान दलित समुदाय जो अभी भी हिंदू हैं, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, किंतु विदेशी शासकों द्वारा धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं किया।" गरीबों, वंचितों, दलितों और आदिवासियों के उत्थान के लिए, बालासाहब देवरस ने संघ के स्वयंसेवकों से विचार-विमर्श करने के बाद 2 अक्टूबर 1979 को 'सेवा भारती' नामक संस्था का गठन किया।
वर्ष 1975 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया। हजारों स्वयंसेवकों को मीसा तथा डी. आई. आर. (राजस्व खुफिया निदेशालय) जैसे काले कानूनों के अंतर्गत जेलों में डाला गया और उन्हें यातनाएं भी दी गईं। पूज्य बालासाहब की प्रेरणा और सफल मार्गदर्शन में एक विशाल सत्याग्रह हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 1977 में आपातकाल समाप्त हुआ और संघ से प्रतिबंध हटा लिया गया।
बालासाहब देवरस ने करंजा (बालाघाट) में अपनी पैतृक संपत्ति बेचकर प्राप्त धनराशि से नागपुर-वर्धा मार्ग पर स्थित खापरी में 20 एकड़ भूमि खरीदी। 1970 में, उन्होंने यह 20 एकड़ कृषि भूमि भारतीय उत्कर्ष मंडल को दान कर दी। यह उल्लेखनीय है कि खापरी स्थित इस भूमि पर ग्रामीण बालक-बालिकाओं के लिए भारतीय उत्कर्ष मंदिर (विद्यालय), गोशाला और स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन नामक अस्पताल ग्रामवासियों की सेवा के लिए कार्यरत हैं। बालासाहब की प्रेरणा से ही "भारतीय उत्कर्ष ट्रस्ट" की स्थापना की गई।
अस्वस्थ होने के बावजूद बालासाहब जी ने दो प्रेरणाप्रद दौरे किए। रामजन्मभूमि आंदोलन के बाद 1993 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया था। इसके तुरंत बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चेन्नई कार्यालय में एक बम विस्फोट हुआ, जिससे कार्यालय के सामने का कमरा नष्ट हो गया। इस घटना में 11 व्यक्तियों, जिनमें कार्यालय में रह रहे कुछ स्वयंसेवक और कुछ अन्य लोग शामिल थे, को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
श्री बालासाहब देवरस का जन्म 11 दिसंबर 1915 को नागपुर में हुआ था। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे और उनका निवास नागपुर इतवारी में था। 1925 में संघ की शाखा प्रारंभ हुई और कुछ ही दिनों बाद बालासाहेब ने शाखा जाना प्रारंभ कर दिया।
स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण, उन्होंने अपने जीवनकाल में ही सन् 1994 में सरसंघचालक का दायित्व प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जु भैया को सौंप दिया। 17 जून 1996 को उनका स्वर्गवास हो गया।