12 नवंबर : राष्ट्र संस्कृति और स्वत्व जागरण अभियान के लिये जीवन समर्पित
Date : 12-Nov-2024
पं मदनमोहन मालवीय जी का स्मरण आते ही सबका ध्यान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की ओर चला जाता है । यह संस्थान केवल एक विश्वविद्यालय भर नहीं अपितु भारत राष्ट्र की संपूर्णता की छविकृति है । यह महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की उस स्वप्न छवि का साकार स्वरूप है जो उन्होंने भारत को एक गौरवमयी राष्ट्र केलिये पीढ़ी निर्माण का स्वप्न देखा था । वे बहुआयामी प्रतिभा और व्यक्तित्त्व के धनी थे । इसीलिए उन्हें "महामना" का सम्मान मिला । उनसे पहले और उनके बाद यह सम्मान किसी को न मिला ।
मालवीय जी ने प्रयाग में भारती भवन पुस्तकालय, मैकडोनेल यूनिवर्सिटी हिन्दू छात्रालय और मिण्टो पार्क की स्थापना की । हरिद्वार में ऋषिकुल, गौरक्षा, आयुर्वेद सम्मेलन तथा सेवा समिति, स्काउट गाइड तथा सेवा क्षेत्र की अनेक संस्थाओं की स्थापना की । इसके साथ ही इस दिशा में काम कर रहीं अन्य संस्थाओं को भी प्रोत्साहित किया । उनके द्वारा संस्थापित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय उनके दूरदर्शी चिंतन, भविष्य के भारत की संकल्पना तथा आध्यात्मिक शक्ति का प्रतिबिंब है। इस विश्वविद्यालय का ध्येय सनातन समाज के स्वत्व और स्वाभिमान के अनुरूप भविष्य की पीढ़ी का निर्माण करना है । इसके पाठ्यक्रम में भारत की प्राचीन सभ्यता, महत्ता, संस्कृत और सांस्कृतिक चेतना और आधुनिक विज्ञान की शिक्षा को जोड़ा गया है । उसके विशाल परिसर के मध्य विशाल विश्वनाथ मन्दिर में भारतीय संस्कृति स्थापत्य कला की सजीव स्मृति है। वे ऐसे महापुरुष थे कर्म ही जिनका जीवन था। वे विभिन्न संस्थाओं के जनक ही नहीं सफल संचालक और व्यवस्थापक भी थे । सदैव मृदु भाषा का प्रयोग करना उनकी विशेषता था । राष्ट्र, संस्कृत, संस्कृति और सनातन समाज की सतत सेवा में समर्पित महामना ने 12 नवंबर 1946 को अपनी देह त्यागी । जीवन की अंतिम श्वाँस तक मालवीयजी अपने सत्याचरण, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग के मार्ग पर चले । वे इन विषयों पर केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु यही उनका आचरण और व्यवहार था । उनके संसार छोड़ने के लगभग अट्ठावन वर्ष बाद 24 दिसम्बर 2014 को भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया ।
लेखक - -रमेश शर्मा