कविराज राजशेखर जयंती : भारतीय मनीषा को धूमिल करने के षड्यंत्रों के विरुद्ध एक प्रामाणिक पहल
Date : 11-Mar-2025
11 मार्च को कविराज राजशेखर की जयंती पर सादर नमन। यह तिथि निश्चित की गई है, लेकिन भारतीय इतिहास, सभ्यता और संस्कृति के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित पाश्चात्य विद्वानों, वामपंथियों, मिशनरियों और तथाकथित सेक्यूलर बुद्धिजीवियों ने हमारी महान विभूतियों को विस्मृत करने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र रचे हैं।
इन षड्यंत्रों का पहला पहलू यह है कि किसी भी महान व्यक्तित्व की जन्मतिथि, जन्मस्थान और कृतित्व को लेकर इतने विवाद खड़े किए जाएं कि मूल तथ्य विलुप्त हो जाएं और भ्रम की स्थिति बनी रहे। दूसरा, इन व्यक्तियों का योगदान स्वयं उनके मूल ग्रंथों की तुलना में पश्चिमी विद्वानों के दृष्टिकोण से अधिक व्याख्यायित किया जाता है।
उदाहरणस्वरूप, कार्ल मार्क्स ने भारत आए बिना ही उसका इतिहास लिखा, जिसे वामपंथी सबसे प्रामाणिक मानते हैं। मेगास्थनीज, जो पाटलिपुत्र में रहा लेकिन किसी भारतीय भाषा का ज्ञान नहीं था, उसकी पुस्तक इंडिका को मौर्यकाल का सबसे विश्वसनीय स्रोत बताया जाता है। इसी तरह, मैक्समूलर को वेदों और उपनिषदों का सर्वोच्च ज्ञाता मानकर उसकी व्याख्याओं को अधिकृत समझा जाता है।
कविराज राजशेखर के साथ भी यही हुआ। उनके कृतित्व और योगदान को लेकर पश्चिमी एवं वामपंथी लेखकों ने जानबूझकर विवाद उत्पन्न किए, जिससे उनकी असली पहचान धुंधली हो जाए। इसी कारण नई दुनिया समाचार पत्र के सहयोग से हमने कविराज राजशेखर के जीवन और कार्यों पर आधारित एक शोध आलेख प्रस्तुत किया है, जिसमें प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराई गई है।
"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।" – तुलसीदास
आलेख : आनंद सिंह राणा