एक व्यक्ति भगवान् महावीर से ईर्ष्या किया करता था। उनकी कठोर तपस्या, त्याग और अहिंसा को निरा ढोंग मान वह उन्हें तंग करता रहता, किन्तु महावीर तनिक भी विचलित न होते । अन्त में हारकर वह उनके पास आकर बोला, "मैंने आपको नाना प्रकार के कष्ट दिये, किन्तु आप सब कुछ सहन करते रहे। यह आपसे कैसे हो पाया ?" यह सुनते ही भगवान् की आँखों से आँसू बहने लगे। उस व्यक्ति को यह देखकर और भी आश्चर्य हुआ। उसने पूछा, "भगवन्! आपके नेत्रों में आँसू कैसे ?"
"मित्र !”- महावीर बोले, "तुमने मुझे भयंकर कष्ट दिये, इसके लिए ये आँसू नहीं निकले, वरन् मुझे तंग करने के कारण तुम्हें कष्ट झेलने पड़ेंगे, यह सोच मेरी आँखें भर आयीं। मुझे यह देख अतीव दुःख हो रहा है कि मेरे लिए एक अबोध आत्मा को कितनी यातनाएँ भोगनी पड़ेंगी।" और यह सुन उस व्यक्ति को बड़ा ही पश्चाताप हुआ तथा उसने महावीर से क्षमा माँगी।