श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥
जय मल्लिकार्जुन, जय मल्लिकार्जुन॥
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से मल्लिकार्जुन का दूसरा स्थान है। हिंदुओं का यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में मल्लिकार्जुन भगवान शिव के रूप में विराजमान है।
मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग मंदिर गर्भगृह बहुत ही छोटा है जिसकी वजह से यहां भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। तब भगवान शिव का दर्शन मिलता है।
इस प्राचीन मंदिर की तमिल संतो ने स्तुति गायी है ऐसा कहा जाता है हिंदू धर्म के स्कंद पुराण में श्रीशैलम या श्रीशैल ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया गया है।
जब जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी ने पहली बार इस मंदिर की यात्रा की तब उन्होंने यहां शिव नंद लहरी की रचना की थी। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास में ही एक जगदंबा माता का मंदिर भी है। ऐसा कहा जाता है यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है माता का यह मंदिर सती का स्वरूप ब्रह्मरांबिका के रूप में विख्यात है।
मल्लिकार्जुन का अर्थ
शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता”में मल्लिकार्जुन के बारे में बताया गया है। मल्लिका का अर्थ माँ पार्वती है और अर्जुन शिव जी को कहा जाता है। अगर हम इन दोनों शब्दों की संधि करते हैं तो यह “मल्लिकार्जुन” शब्द बनता है।
मलिकार्जुन ज्योर्तिलिंग का पौराणिक कथा
भगवान शिव और पार्वती के 2 पुत्र हैं जिनका नाम गणेश और कार्तिकेय है एक दिन भगवान गणेश और कार्तिकेय विवाह के लिए आपस में झगड़ रहे थे और झगड़ते – झगड़ते अपने माता पिता के पास झगड़ा सुलझाने के लिए गए
भगवान शिव और पार्वती जी ने झगड़े का कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि पहले किसका विवाह होगा इसी विषय में झगड़ा हो रहा है। यह सुनकर माता पार्वती ने झगड़े के समाधान के लिए दोनों भाइयों से बोले की जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा उसी का विवाह पहले होगा, माता पार्वती के द्वारा ऐसा सुनकर कार्तिकेय जी ने पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल दिए
कार्तिकेय का वाहन मोर है और गणेश जी का वाहन चूहा है लेकिन भगवान गणेश बहुत ही बुद्धिमान थे। जब कार्तिकेय परिक्रमा के लिए वहां से चले गए तब गणेश ने कुछ विचार किया उसके बाद फिर अपने माता पिता से एक स्थान पर बैठने का आग्रह किया। उसके बाद अपने माता पिता का 7 बार परिक्रमा किया जिससे पृथ्वी की परिक्रमा से मिलने वाले फल की प्राप्ति की और शर्त जीत गए।
उनकी यह बुद्धि देखकर भगवान शिव और पार्वती बहुत ही प्रसन्न हुए और गणेश जी का विवाह कराया पृथ्वी की परिक्रमा पूरा कर जब कार्तिकेय जी वापस आए तो गणेश जी का विवाह देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। तब उसी समय कार्तिकेय जी ने अपने माता-पिता के चरण छू कर वहां से चले गए। जब माता पार्वती और भगवान शिव को पता चला कि कार्तिकेय जी नाराज हो कर चले गए तब उन्होंने नारद जी को मनाने के लिए भेजें और बोले कार्तिकेय जी को मना कर घर वापस लाएं। क्रौंच पर्वत पर नारद जी कार्तिकेय जी को मनाने पहुंचे और मनाने का बहुत प्रयत्न किया। कार्तिकेय जी ने नारद जी की एक न सुनी अंत में निराश होकर नारद जी वापस चले गए और माता पार्वती और भगवान शिव से सारा वृत्तांत सुनाया।
यह सुन माता पार्वती भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर कार्तिकेय जी को मनाने पहुंची। माता पिता के आगमन को सुन कार्तिकेय जी 12 कोस दूर चले गए तब भगवान शिव वहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से वह स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से प्रसिद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि वहां पर पुत्र स्नेह में माता पार्वती हर पूर्णिमा और भगवान शिव हर अमावस्या के दिन वहां आते हैं।
इस स्थान पर माता सती का एक अंग गिरने से यह स्थान शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यहां मंदिर में महालक्ष्मी के रूप में अष्टभुजा मूर्ति स्थापित है यह स्थान बहुत ही पवित्र माना गया है यहां भक्तों की लंबी कतार दर्शन के लिए लगता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व-
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारत के आंध्र प्रदेश में शैल पर्वत पर स्थापित है। इस विशाल पर्वत को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। शैल पर्वत से निकलने वाली कृष्णा नदी के तट पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत, शिव पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। जिसके अनुसार यहां दर्शन करने मात्र से अभीष्ट फल मिलता है। यहां सावन के महीने में भक्तों की अधिक भीड़ लगती है दर्शन के लिए यहां भक्तों की लंबी कतार में लाइन लगती है।