हमारे न्यूज़ पोर्टल द्वारा एक श्रृंखला प्रकाशित किया जा रहा है , जिसमे हम उन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक को स्मरण कर रहे जिनके बलिदान और त्याग का वर्तमान समय में कोई उल्लेख नहीं है |
इस शृंखला द्वारा हम समाज की स्मृति में यह बात का पुनः स्मरण करवाना चाहते है | स्वतंत्रता संग्राम में समाज के बहुत बड़े वर्ग ने जो जाति धर्म से ऊपर उठ कर एक अखंड भारत के स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया है |उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी की भारत एक खंडित स्वरुप में प्राप्त होगा | आज हम तुकाराम गानू के बारे में बात करेंगे -
तुकाराम गानू ने बॉम्बे में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और 24 अक्टूबर 1930 को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर 1908 के आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 14 की धारा 17 (1) के तहत आरोप लगाया गया। उन्हें 24 अक्टूबर 1930 को दोषी ठहराया गया और चार महीने की कठोर सजा सुनाई गई। कैद होना।
12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन का उद्घाटन किया गया। बंबई में, जुहू - विले - पार्ले, कांग्रेस हाउस, एस्प्लेनेड मैदान, गोवालिया टैंक, भाटिया बाग, केईएम अस्पताल में नमक डिपो पर छापा मारने वाले सत्याग्रहियों और पुलिस के बीच गंभीर झड़पें हुईं। , कुर्ला चर्चगेट, कोलीवाड़ा, माटुंगा, और वडाला, आदि।
सरकार ने 30 मई 1930 को धमकी निवारण अध्यादेश और गैरकानूनी उकसावे अध्यादेश दोनों को प्रख्यापित करके जवाब दिया। पत्राचार सेंसरशिप के तहत आ गया, कांग्रेस और उसके सहयोगी संगठनों को अवैध घोषित कर दिया गया, और उनके धन को जब्ती के अधीन कर दिया गया, और एक के रूप में परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में लोगों को बेरहमी से पीटा गया और पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
तुकाराम गानू उन सत्याग्रहियों में से एक थे जिन्होंने बॉम्बे में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था।
इनके जीवन का स्मरण करे तो हमें यह बात ध्यान में आती है कि समाज और देश अखंड रहे है | आज भारत विरोधी वो सारी शक्तियां हैं जो विदेशी धन से पोषित होती है एवं देश और समाज को खंडित करने के धैय से कार्य कर रही है |
आज आजादी के 75 वर्ष बाद पुनः इन विकृत मानसिकता से परिपूर्ण शक्तियों को पहचानना होगा एवं इन्हे निर्मूल करना होगा, यही इन स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी |