पृथ्वी पर पानी कहां से आया इस विषय पर कई शोध हो चुके हैं| नए अध्ययन में जापान के 2010 के हायाबुसा अभियान से हासिल किए गए पुरातन क्षुद्रग्रह के नमूने का विश्लेषण किया गया | इस अध्ययन से पता चला है कि पृथ्वी पर पानी अंतरिक्ष के धूल के कणों से आया था जिनसे ग्रहों का निर्माण हुआ था | इन शोधों में अधिकांश शोध पृथ्वी पर गिरे उल्कापिंड और क्षुद्रग्रहों के टुकड़ों पर किए गए हैं |
अंतरिक्ष के कणों से कैसे बनता है पानी?
ल्यूक डेली ने कहा कि पानी ज्यादातर सौर हवा से पैदा होता है | ये कण जब सौर मंडल में तैरते धूल के बादल में ऑक्सीजन परमाणुओं के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, तब पानी के अणु बनते हैं. बाद में, जब पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, तो वह इन बादलों से होकर गुजरती है और धूल के कणों और उनके पानी को नम कर देती है | इस तरह, अध्ययन में यह तर्क दिया गया है कि पानी, अंतरिक्ष से हमारी धरती पर फिल्टर किया जाता है |
सौर पवन की भूमिका
यूके, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि धूल के कणों में पानी तब बना था जब सूर्य के आने वाले सौर पवन कहलाने वाले आवेशित कणों ने अंतरिक्ष में मौजूद धूल के कणों की रासायनिक संरचना बदल दी जिससे इनमें पानी के अणु पैदा हो सके |
महासागरों में इतना पानी
इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक स्पेस वेदरिंग कहते हैं | नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया है कि पृथ्वी की महासागरों में पानी की सरंचना पैदा करना क्षुद्रग्रह जैसे स्रोतों के पदार्थों के मिश्रण से बनाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है | लेकिन सौर पवनें इस सवाल का जवाब दे सकती हैं |
ये कारण बताए गए हैं अब तक
ग्रह विज्ञानी लंबे समय से इस बात को जानना चाह रहे हैं कि आखिर पृथ्वी के महासागरों में इतना पानी कैसे आया था| कुछ सिद्धांतों ने सुझाया है कि ऐसा पानी वाले क्षुद्रग्रहों की बारिश के कारण हुआ होगा जो 4.6 बिलियन साल (460 करोड़ साल) पहले पृथ्वी पर हुई थी | शोधकर्ताओं का मानना है कि पृथ्वी पर कुछ पानी ‘सी’ प्रकार के क्षुद्रग्रह से आया था | शोधकर्ताओं का यह भी मानना रहा कि इसके साथ ही पृथ्वी पर पानी एक और हलके आइसोटोपिक स्रोत से आया होगा जो सौरमंडल में कहीं और था| नई पड़ताल से पृथ्वी पर पानी पहुंचने और बड़ी तादाद में सतह को घेरने लायक मात्रा में होने के आसपास के कई रहस्यों का भी खुलासा हो सकेगा| वैज्ञानिक यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि इस अध्ययन के नतीजे भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में वायु रहित ग्रहों पर पानी खोजने में मददगार हो सकेंगे|
अंतरिक्ष की चट्टान के नमूनों का अध्ययन
ग्लासगो यूनिवर्सीट के वैज्ञानिकों की अगुआई में अंतरराष्ट्रीय टीम ने एटम प्रोब टोमोग्राफी के जरिए अलग-अलग प्रकार के अंतरिक्ष की चट्टानों के नमूनों का अध्ययन किया| ये चट्टानें एस प्रकार के क्षुद्रग्रह कहलाती हैं जो सी प्रकार के क्षुद्रग्रहों की तुलना में सूर्य के ज्यादा पास रहकर उसका चक्कर लगाते हैं |