रविवार को मनाए जाने वाले दीपावली को लेकर हर ओर उत्साह का माहौल है। बाजार सजे हुए हैं, गांव में कुम्हार चक पर बनाए गए मिट्टी के दीप को सुखाकर रंग कर लगातार बाजार भेज रहे हैं। बाजारों में भारतीय ही नहीं चाइनीज लाइटें भी भर गई है। लोग चाइनीज, प्लास्टिक और थर्मोकोल से बने सामानों की जमकर खरीदारी कर रहे हैं।
दीपावली में हम धड़ल्ले से चाइनीज और आर्टिफिशियल दीप, दीया, लाइट सजावट आदि लाइटिंग का जबरदस्त प्रयोग करते हैं तो अगली सुबह अनगिनत कीट पतंगों को मृत पाए जाते हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं होता था, जिसका सबसे बड़ा कारण था ग्रीन या इक्को दीपावली। आज हम आधुनिक भावावेष से ग्रसित होकर पर्यावरण प्रदूषित दिवाली मनाते हैं। तो क्यों नहीं इस बार पूर्वजों की तरह दीपावली मनाएं और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दें।
हरित और पर्यावरण अनुकूल दीपावली रोशनी के त्योहार के समान है। हरित दीपावली एक ऐसा त्योहार है, जिसमें लापरवाही से बचते हैं और अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करते हैं। दीपावली पर पटाखे जलाने से पर्यावरण खतरनाक स्तर तक प्रदूषित होता है, इसलिए ग्लोबल वार्मिंग की संभावना बढ़ जाती है। पर्यावरण-अनुकूल दीपावली मनाने के पीछे मुख्य विचार पर्यावरण की स्थिरता को बनाए रखना और ग्रह-पृथ्वी की रक्षा करना है।
सभी जानते हैं कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए कितना हानिकारक है। यह एक गैर-बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है जो हवा, पानी और पृथ्वी को अत्यधिक प्रदूषित करता है। इसलिए हमें स्थानीय कुम्हारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीयों और दीयों का उपयोग करना चाहिए। मिट्टी के दीयों के उपयोग के दो फायदे हैं, इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा और इससे कुम्हारों को मदद मिलेगी, जिनकी आजीविका इन वस्तुओं की बिक्री पर निर्भर करती है।
समाजिक कार्यकर्ता कौशल किशोर क्रांति कहते हैं कि भागदौड़ की जिंदगी और आधुनिकता से वशीभूत होकर हम अपनी पारंपरिक एवं पौराणिक संस्कृति को दरकिनार करते जा रहे हैं। जो कहीं ना कहीं हमारे पूर्वजों के द्वारा पूर्णता की कसौटी कसा था, जो हमारे जीवन रक्षार्थ बना रहता था। लेकिन आज हम उसे भूलते जा रहे हैं, जिनके परिणाम दूरगामी और भयंकर होता प्रतीत हो रहा है।
अक्सर हम शादी, विवाह, पार्टी सहित दीपावली की रात में जबरदस्त लाईटिंग करते हैं, जिस पर कीट-पतंगों का झुंड मंडराते नजर आते हैं, जबकि दिन के समय ऐसा नहीं होता है। खासकर आर्टिफिशियल लाइट पर कीट-पतंग का अप्रत्याशित झुंड जम जाती है। वैज्ञानिकों ने थ्री-डी काइनेमेटिमीक्स के पुनर्निर्माण के लिए लैब में रिजोल्यूशन मोशन कैप्चर और स्टीरियो वीडियोग्राफी का प्रयोग कर रिसर्च किया तो पाया कि कीट पतंगे अंतिम मोड़ों में खुले आसमान के आसपास से आने वाली रोशनी में अनियमित उड़ान का रास्ता अपनाते हैं।
दीपावली की रात घर को रोशन करने के लिए मिट्टी के दीये बेहतरीन और सदियों पुराना रिवाज हैं। लेकिन आज कल लोग दीपावली में घरों में मोमबत्तियां जलाते हैं जो पेट्रोलियम पदार्थ युक्त होते हैं और पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना चाहते हैं तो मिट्टी के दीयों से घर को सजाएं। दीया जलाकर त्योहार मनाने से जमीन से जुड़ाव महसूस करेंगे। झालर और लाइटिंग से बिजली की भी ज्यादा खपत होती है
दीपावली रोशनी का त्योहार है जो सभी के लिए सौभाग्य, खुशी और समृद्धि लाता है। जलाए गए दीये ना केवल पर्यावरण को रोशन करते हैं, बल्कि गरीबी और अज्ञानता के अंधेरे को भी दूर करते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि हम इस वास्तविक तथ्य को कितना समझ और सराह पा रहे हैं कि हम प्रकाश के उत्सव की वास्तविक भावना से दूर होते जा रहे हैं। यह त्योहार लगातार लेकिन निश्चित रूप से लोगों की लापरवाही के कारण पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है।
दीपावली पर पटाखे जलाने से बचना चाहिए, क्योंकि हमारे पास त्योहार मनाने के कई अन्य तरीके हैं। त्योहारों के दौरान पटाखे जलाना बच्चों के लिए सबसे अच्छी गतिविधियों में से एक है। इसके लिए बाजार में उपलब्ध पर्यावरण-अनुकूल पटाखों का उपयोग कर सकते हैं। ऐसे पटाखों का निर्माण पर्यावरण संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखकर किया गया है। यह कम जहरीली गैसें छोड़ते हैं और स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा पैदा नहीं करते।
पटाखों में कॉपर और कैडमियम जैसे जहरीले यौगिक रहता है और मौसम में बदलाव के कारण इसके कण प्रदूषण-कोहरे के साथ मिलकर स्मॉग बन जाता है। जिससे अस्थमा का दौरा, ब्रोंकाइटिस, नाक बहना और सिरदर्द सहित एलर्जिक राइनाइटिस के लक्षण होते हैं। स्मॉग हवा में जहरीले कणों को लंबे समय तक रोककर स्थिति को और खराब कर देता है। अब समय आ गया है कि हम लोगों को समस्या को पहचानना चाहिए और एक रास्ता बनाना चाहिए जिससे हम एक स्वस्थ और संतुलित वातावरण बना सकें।
देश में जल मुक्त होली और पर्यावरण अनुकूल गणेश चतुर्थी जैसी सफल पहल के बाद अधिकांश लोग ग्रीन दीपावली मनाने लगे हैं। यह हरित दीपावली पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव के साथ त्योहार मनाने का एक तरीका है। तेज आवाज वाले पटाखे फोड़ने से देश में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है जिससे बुजुर्गों, बच्चों और पालतू जानवरों को परेशानी होती है। प्रदूषण में इस वृद्धि के साथ अस्थमा के मामले अधिक संख्या में सामने आते हैं। सब एक साथ आएं और इस दीपावली पर समाज के लिए कुछ करें।
कौशल किशोर क्रांति कहते हैं कि पारंपरिक दीपावली उत्सव के महत्व और सार को समझना हमारी बुनियादी तथा सबसे महत्वपूर्ण निष्ठा है। इस दीपावली को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए कुछ कदम आगे बढ़ाएं। सजावट के लिए स्थानीय रूप से बने मिट्टी के दीयों का उपयोग करें। घर की सजावट के लिए सस्ती प्लास्टिक की रोशनी को त्यागें और सजावट के लिए कारीगर हस्त निर्मित मिट्टी के बर्तन और दीयों को चुनें। इससे ना केवल पर्यावरण को मदद मिलेगी, बल्कि गरीब कारीगर परिवारों को भी मदद मिलेगी।