मिल्की वे स्पाइरल आकाशगंगा का एक प्रकार है जिसके अंदर हमारा सौर मंडल मौजूद है। जब आप रात के समय आकाश की ओर देखते हैं, तब आपको सफ़ेद रंग का चमकदार रौशनी नजर आती है जो मिल्की वे है।
बहुत सारे तारों की मौजूदगी होने के कारण यह इतना चमकीला एवं सफ़ेद दिखाई देता है। मिल्की वे में दो सौ बिलियन से भी ज्यादा तारे मौजूद हैं। मिल्की वे में पाए जाने वाले तारे हमारे सूर्य से कई बिलियन साल पुराने हैं ।
यह एक बड़े से भंवर (whirlpool) के आकार में है, जो 200 मिलियन सालों में एक बार चक्कर लगता है। इसके माध्यम में ब्रह्माण्ड बिंदु (galactic सेंटर) मौजूद है। वहां घने गैस एवं धूल के बादल होने के कारण उसको देख पाना बहुत मुश्किल है। इस कारण इसके केंद्र के दूसरी ओर देखना भी मुश्किल रहा है।
मिल्की वे की संरचना
जब आप रात के समय आकाश की तरफ देखते हो तो आपको सफ़ेद रंग की व्यापक पट्टी नजर आती है, जो मिल्की वे है। ये पट्टी तबसे दिखाई पड़ते रहे हैं, जबसे पृथ्वी का निर्माण हुआ है। मिल्की वे का जो भाग हम पृथ्वी से देख पाते हैं, वह इसका बाहरी भाग माना जाता है। मिल्की वे गर्म गैसों के halo से घिरा हुआ है जो कई हजार लाख प्रकाश वर्ष तक फैला हुआ है एवं घूमता लगाता रहता है।
यह 100,000 प्रकाश वर्ष तक फैला हुआ है। इसके दो arm एवं दो spur हैं। इनमे से एक spur का नाम ओरियन spur है जिसके अंदर हमारा सूर्य विराजमान है। मिल्की वे के दोनों arm का नाम Perseous एवं Saggitrus है। हमारा यह आकाशगंगा फैलता या एक्सपैंड होता रहता है। इसके मध्य में एक ब्लैक होल है जिसे Saggitrus A* नाम दिया गया है।
गैलेक्सी के चारों ओर घुमावदार arm घने गैस एवं धूल के बादलों से बने हुए हैं। इस arm में हमेशा नए तारे बनते रहते हैं। ये सब एक गोल डिस्क के अंदर बन रहे होते हैं। ये 1000 लाइट ईयर के बराबर रहते हैं।
मिल्की वे का मध्य भाग काफी उभरा हुआ है और जैसा कि पहले बताया जा चुका है, यह भाग घने गैस एवं धूल के बादलों से भरा हुआ है – इस कारण हम लोग फिलहाल यह नहीं जानते कि इसके दूसरी ओर क्या है। इस उभरे भाग में डार्क होल का भी वास है जोकि सूर्य से कई बिलियन गुना ज्यादा भारी है। इसका निर्माण एक छोटे से बिंदु के कारण शुरू हुआ था जो घने बादलों के द्वारा और बढ़ते गए एवं इनका स्वरुप भयंकर होता गया।
कुछ अध्ययनों से यह पता चला है कि मिल्की वे का भार सूर्य से 400 बिलियन से 780 बिलियन ज्यादा है। वैज्ञानिक इन बातों के शोध में लगे हुए हैं कि कैसे मिल्की वे पड़ोस में पाए जाने वाले संरचनाओं को प्रभावित करते हैं, जैसे कौन- कौन से तारे पाए जाते हैं, कितने और सौर मंडल मौजूद हैं, क्या किसी दूसरे ग्रह पर जीवन संभव है इत्यादि।