Quote :

" साक्षरता दुःख से आशा तक का सेतु है " — कोफी अन्नान

Science & Technology

क्या है ? इसरो का एयरो ब्रेकिंग तकनीक जो 4 करोड़ किमी दूर वीनस तक पहुंचेगा

Date : 22-Oct-2024

 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का महत्वाकांक्षी शुक्र ग्रह मिशन 2028 में लॉन्च होने वाला है। इस मिशन में पहली बार एयरो-ब्रेकिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा, जिससे इसरो 4 करोड़ किलोमीटर दूर वीनस तक पहुँच सकेगा।

इसरो धरती के जुड़वां ग्रह, वीनस, तक जाएगा। सरकार ने इस महत्वाकांक्षी मिशन को मंजूरी दे दी है, और यह तब लॉन्च किया जाएगा जब धरती और वीनस एक-दूसरे के करीब होंगे। इस मिशन के लिए एयरो-ब्रेकिंग तकनीक का उपयोग पहली बार किया जाएगा।

धरती और वीनस के बीच की दूरी लगभग 4 करोड़ किलोमीटर है, और वीनस हमारे सबसे निकटवर्ती ग्रहों में से एक है। यह सौर मंडल का ऐसा ग्रह है जो आकार, द्रव्यमान और घनत्व के मामले में धरती के समान है, हालांकि तापमान और अन्य पहलुओं में उनके बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं।

सूरज के नजदीकी ग्रह से भी गर्म है वीनस

धरती और वीनस एक-दूसरे के समान दिखने के बावजूद, वीनस बहुत गर्म है। वैज्ञानिकों के अनुसार, वीनस का तापमान लगभग 462 डिग्री सेल्सियस है, जो सूरज के करीब स्थित बुध ग्रह से भी अधिक है। ऐसा धरती के मुकाबले वीनस पर अधिक एटमॉस्फेरिक प्रेशर होने के कारण होता है, जो समुद्र की गहराइयों में पाया जाता है। वीनस का वायुमंडल लगभग 96 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड से भरा है, और यह एक चक्कर धरती के 243 दिनों में पूरा करता है।

क्या है वीनस ऑर्बिटरी मिशन

धरती और वीनस के मास और घनत्व लगभग समान हैं, और माना जाता है कि वीनस पर कभी पानी मौजूद था। वीनस ऑर्बिटरी मिशन के माध्यम से वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि धरती में साल दर साल किस प्रकार के बदलाव हो सकते हैं। इसके लिए एक यान तैयार किया जा रहा है जो सिंथेटिक अपर्चर रडार, इन्फ्रारेड और अल्ट्रावायलेट कैमरा, सेंसर आदि से सुसज्जित होगा, जो वीनस के जलवायु, ज्वालामुखी गतिविधियों और उच्च ऊर्जा कणों पर शोध करेगा।

क्या एयरो ब्रेकिंग टेक्नीक, कब होगा लांच

एयरो ब्रेकिंग तकनीक एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे किसी स्पेस यान की स्पीड संबंधित ग्रह की ऑर्बिट में उपलब्ध वायुमंडल की मदद से कम की जाती है. इससे ईधन की बचत होती है, क्योंकि यान के थ्रस्टर्स की बजाय संबंधित वायुमंडल के फ्रिक्शन का इस्तेमाल किया जाता है. शुक्र मिशन में पहली बार इसरो एयरो ब्रेकिंग टेक्नीक प्रयोग करने जा रहा है, इसमें पहले स्पेस यान धरती के ऑर्बिट में चक्कर लगाएगा, फिर गुलेल की तरह लांच होकर धरती से शुक्र के सबसे बाहरी ऑर्बिट में पहुंचेगा. इस काम में 140 दिन लगेंगे. इसके बाद यान की एयरो ब्रेकिंग टेक्नीक शुक्र के वायुमंडल और गैसों से इसकी स्पीड कम करेगी, जिससे इसे शुक्र के सबसे नजदीकी ऑर्बिट में जाने में मदद मिलेगी. यह मिशन तब लांच किया जाएगा जब शुक्र ग्रह धरती के करीब होगा. माना जा रहा है कि इसे मार्च 2028 में लांच किया जा सकता है |

शुक्र ग्रह पर 2020 में फॉस्फीस गैस मिली थी, उसके बाद अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश शुक्र मिशनों पर फोकस लगाए हैं. दरअसल फॉस्फीन गैस मिलने का अर्थ ये है कि ग्रह पर माइक्रोब्स का जीवन हो सकता है. ऐसे में शुक्र ग्रह पर भी जीवन की संभावनाओं को देखा जा रहा है. अमेरिका, सोवियत यूनियन और यूरोपीय स्पेस एजेंसी तथा जापान पहले ही शुक्र ग्रह के लिए अपने मिशन लांच कर चुके हैं. भारत पहली बार ऐसा करने जा रहा है|

क्या है एयरो-ब्रेकिंग तकनीक, कब होगा लॉन्च

एयरो-ब्रेकिंग तकनीक एक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से किसी स्पेस यान की गति को संबंधित ग्रह के वायुमंडल की मदद से कम किया जाता है। इससे ईंधन की बचत होती है, क्योंकि यान के थ्रस्टर्स की बजाय वायुमंडल के घर्षण का उपयोग किया जाता है। इसरो अपने शुक्र मिशन में पहली बार एयरो-ब्रेकिंग तकनीक का प्रयोग करेगा। इसमें पहले स्पेस यान धरती की कक्षा में चक्कर लगाएगा, फिर गुलेल की तरह लॉन्च होकर धरती से शुक्र के बाहरी कक्षा में पहुंचेगा। इस प्रक्रिया में लगभग 140 दिन लगेंगे। उसके बाद, एयरो-ब्रेकिंग तकनीक शुक्र के वायुमंडल और गैसों की मदद से यान की गति को कम करेगी, जिससे इसे शुक्र की सबसे निकटवर्ती कक्षा में पहुंचने में मदद मिलेगी। यह मिशन तब लॉन्च किया जाएगा जब शुक्र ग्रह धरती के करीब होगा, और इसे मार्च 2028 में लॉन्च किए जाने की संभावना है।

ये देश रेस में शामिल

2020 में शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन गैस मिलने के बाद, अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों ने शुक्र मिशनों पर ध्यान केंद्रित किया है। फॉस्फीन गैस मिलने का मतलब है कि ग्रह पर माइक्रोब्स का जीवन हो सकता है, जिससे शुक्र ग्रह पर जीवन की संभावनाओं पर ध्यान दिया जा रहा है। अमेरिका, सोवियत संघ, यूरोपीय स्पेस एजेंसी और जापान पहले ही शुक्र ग्रह के लिए अपने मिशन लॉन्च कर चुके हैं, जबकि भारत पहली बार ऐसा करने जा रहा है।

 

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement