वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वनस्पति विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने एक नई कवक प्रजाति को खोज लिया है। विभाग के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर डॉ. राघवेंद्र सिंह और उनके शोध छात्र सौम्यदीप राजवर को यह सफलता मिली है। डॉ राघवेंद्र और सौम्यदीप ने फाइटोपैथोजेनिक कवक की एक नई प्रजाति, एपिकोकम इंडिकम (एस्कोमाइकोटा, डिडिमेलेसी) की खोज की है, जो वाराणसी के क्राइसोपोगोन जिज़ानियोइड्स (वेटिवर) में एक उभरते हुए लीफ स्पॉट रोग से जुड़ी है।
शोध टीम के अनुसार इस प्रजाति की पहचान मॉर्फो-कल्चरल विशेषताओं और मल्टीजीन आणविक फ़ायलोजेनेटिक विश्लेषण के आधार पर की गई थी। फ़ायलोजेनेटिक विश्लेषण से पता चला कि एपिकोकम इंडिकम एक अलग क्लेड बनाता है, जो अन्य संबंधित प्रजातियों से अलग है, जो इसे एक नई प्रजाति के रूप में वर्गीकृत करता है। प्रजाति का नाम भारत को संदर्भित करता है जहां से इसे खोजा गया । इसका वाउचर नमूना पुणे के अजरेकर माइकोलॉजिकल हर्बेरियम में जमा किया जाता है और जिवित कल्चर एनएफसीसीआई, पुणे में संग्रहीत किया जाता है। यह खोज 19 दिसंबर, 2024 को एक प्रतिष्ठित Q1 पत्रिका फंगल डायवर्सिटी में प्रकाशित हुई जिसका इम्पैक्ट फैक्टर 24.5 है। डॉ. सिंह के अनुसार क्राइसोपोगोन जिज़ानियोइड्स, जिसे आमतौर पर वेटिवर या खस के रूप में जाना जाता है, के कई औषधीय उपयोग हैं, जिनमें दर्द, सूजन और संक्रमण के उपचार शामिल हैं। इस रोग ज़नक़ का प्रारंभिक पता लगाना, निदान और फ़ायलोजेनेटिक विश्लेषण इसकी महामारी विज्ञान को समझने और पौधे पर इसके प्रभाव को प्रबंधित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, डॉ. सिंह ने वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में भारत के महत्व पर ज़ोर दिया, जहां अनुकूल जलवायु परिस्थितियां हैं जो विविध कवक प्रजातियों का समर्थन करती है।