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Science & Technology

क्या है सूक्ष्मदर्शी

Date : 18-Jan-2023

 सूक्ष्मदर्शी क्या होता है

सूक्ष्मदर्शी एक ऐसा यांत्रिक उपकरण है जो छोटी वस्तुओं की छवि को बड़ा करता है। माइक्रोस्कोप की सहायता से हम अमीबा जैसी किसी छोटी चीज को भी असानी से देख सकते हैं। अथवा हम सूक्ष्मदर्शी की सहायता से उन जीवधारियों या उनके अंगों का अध्ययन सुगमता से कर सकते हैं, जिन्हें हम नग्न आँख से नहीं देख सकते। 


सूक्ष्मदर्शी कितने प्रकार के होते है

प्रयोगशालाओं में सामान्यतया दो प्रकार के सूक्ष्मदर्शी प्रयोग में लाये जाते हैं। 

सरल विच्छेदन सूक्ष्मदर्शी 

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी 

 

सरल विच्छेदन सूक्ष्मदर्शी

 

 

प्रयोगशाला में सूक्ष्म पौधों जीवों के अध्ययन के लिए तथा उनके विच्छेदन उनसे निर्मित स्लाइडों के अध्ययन के लिए इस प्रकार के सूक्ष्मदर्शी का उपयोग किया जाता है। इसकी सहायता से किसी भी वस्तु को उसकी वास्तविक आकृति से 4 से 40 गुना तक बड़े रूप में देखा जा सकता है। 

यह सूक्ष्मदर्शी मुख्यतः दो भागों का बना होता है 

यान्त्रिकीय भाग 

प्रकाशकीय भाग

1). यान्त्रिकीय भाग

इसमें सबसे नीचे की ओर 'V' या 'U' के आकार का आधारीय भाग होता है जिसे आधार कहते हैं। आधार से निकली एक खड़ी भुजा "स्तम्भ" होती है। स्तम्भ पर आधार से कुछ ऊपर एक परावर्ती दर्पण लगा होता है। इसके कुछ ऊपर दूसरी ओर एक समायोजन पेंज लगा होता है। स्तम्भ ऊपर से खोखली होती है और इस भुजा के ऊपर एक अन्य छोटी भुजा लगी रहती है जिसे पेंच की सहायता से पहली भुजा के अन्दर ऊपर नीचे किया जा सकता है। इस दूसरी भुजा के ऊपर एक मुड़ने वाला भुजा लगी रहती है जिसके अगले सिरे पर नेत्रिका लगी होती है। मुख्य भुजा के ऊपरी सिरे पर काँच का बना एक मंच होता है। 

2). प्रकाशकीय भाग

मंच के नीचे मुख्य भुजा से लगा हुआ दर्पण प्रकाश को परावर्तित करके यन्त्र तक पहुँचाता है। मंच पर स्लाइड को दबाने के लिए पिछले भाग में दो क्लिप लगे रहते हैं। चल भुजा से जुड़ी मुड़ने वाली भुजा के अगले सिरे पर एक उत्तल लेन्स द्वारा बनी नेत्रिका होती है।

 सरल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग

काँच के बने मंच पर क्लिप की सहायता से स्लाइड को लगाते हैं। यदि विच्छेदन करना है तो विच्छेदन वस्तु को मोम जमी पैट्रीडिश में रखकर मंच पर रखते हैं। नेत्र को लेन्स के ठीक ऊपर रखकर मुड़ने वाली भुजा को मोड़कर मंच पर रखी हुई वस्तु को लेन्स के फोकस क्षेत्र में लाते हैं। वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए पेंच की सहायता से लेन्स को ऊपर-नीचे करके फोकस करते हैं

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी 

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की परिभाषा -- संयुक्त सूक्ष्मदर्शी प्रयोगशाला का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं बहुमूल्य उपकरण होता है। एक आँख से देखने वाले इस प्रकार के संयुक्त सूक्ष्मदर्शी को मोनोकूलर संयुक्त सूक्ष्मदर्शी कहते हैं।

 

 

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का निर्माण सर्वप्रथम नीदरलैंड के निवासी वैज्ञानिक जकारियास जानसेन ने 1590 में किया था। इस यन्त्र से वस्तु का 400-600 गुणा आवर्धित प्रतिबिम्ब निर्मित होता है। प्रत्येक विद्यार्थी को इसकी रचना, प्रयोग की विधि एवं उपयोगिता का पूर्ण ज्ञान होना अति आवश्यक है।

 

 

 

 

 

सरल ढंग से अध्ययन करने के लिए इसे निम्न दो भागों में विभाजित करते हैं -

 

 

यान्त्रिकीय भाग 

प्रकाशकीय भाग

 

 

1). यान्त्रिकीय भाग

 

 

ये आधारिक तथा सहायक भाग होते हैं। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं 

 

 

1. आधार -- संयुक्त सूक्ष्मदर्शी से नीचे घोड़े की नाल सदृश अथवा अंग्रेजी के 'U' या 'V' के आकार का लोहे का भारी ढाँचा होता है।

 

2. स्तम्भ -- आधार का निचना भाग जो धरातल पर रखा जाता है पैर तथा ऊपरी उठा भाग जो सूक्ष्मदर्शी के अन्य सभी भागों को सीधे रखता है, स्तम्भ कहलाता है।

3. भुजा  -- आधार के स्तम्भ से कुछ बाहर की ओर 'C' के आकार की घुमावदार मजबूत 'भुजा' होती है। इसी को पकड़कर उपकरण को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।

 

4. नति सन्धि -- यह आधार के स्तम्भ व भुजा का जोड़ है जिस पर एक गोल पेंच भुजा को आगे पीछे झुकाने के लिए होता है।

 

 

5. स्टेज स्टेज क्लिप्स  -- आधार के समानान्तर भुजा के निचले भाग में लगी एक चौकोर लोहे की प्लेट को स्टेज कहते हैं। स्टेज के बीच एक गोल छिद्र प्रकाश के आने के लिए तथा स्टेज के किनारों पर सूक्ष्मदर्शीय स्लाइड को एक स्थान पर कसे रखने के लिए क्लिप होती हैं।

 

6. उपमंच संघनित्र -- यह स्टेज के नीचे लगा होता है। यह प्रकाश की मात्रा को नियन्त्रित करने के काम आता है।

 

7. आइरिस डायफ्राम  --  उपमंच संघनित्र के नीचे लगा रहता है। इसकी सहायता से प्रकाश के आने का छिद्र छोटा या बड़ा करके प्रकाश की तीव्रता को कम या अधिक किया जा सकता है।

 

8. नालाकार देह -- भुजा के ऊपरी भाग से लगी लगभग 16 सेमी की एक सीधी बेलनाकार व नालाकार देह होती है जिसे एक बड़े पेंज स्थूल समायोजक पेंच द्वारा तेजी से तथा एक छोटे सूक्ष्म समायोजक पेंच द्वारा धीरे-धीरे ऊपर नीचे खिसकाया जा सकता है। इस विधि को रैक और पिनियन समंजन कहते हैं। नालाकार देह के ऊपरी निकले हुए भाग को ड्रा नली कहते हैं तथा नीचे वाले गोल भाग को परिक्रामी कहते हैं।

2).  प्रकाशकीय भाग

ये वस्तु पर प्रकाश फोकस करने के लिये होते हैं इनमें निन्म भाग होते है 

 

1. दर्पण  -- उपमन्च संघनित्र के नीचे एक गोल दर्पण, लगा रहता है। दर्पण एक सतह से समतल तथा दूसरी सतह से अवतल होता है। दर्पण के द्वारा प्रकाश परावर्तित होकर स्टेज के छिद्र की ओर पहुँचता है। 

 

2. नेत्रक या आईपीस  -- नालाकार देह के ऊपरी सिरे पर स्क्रूज द्वारा सरकने वाली एक ट्यूब पर दोनों सिरों पर लगे लेन्स का निर्मित नेत्रक लगा होता है। अध्ययन करते समय इसके ऊपर बायीं आँख लगाकर तथा दाँयी आँख बन्द करके देखते हैं। लेन्स साफ करने के लिए नेत्रक को ट्यूब सहित बाहर भी निकाला जा सकता है तथा आवश्यकतानुसार आवर्धन क्षमता के अंकित नेत्रक (5X , 10X , 15X) लगाये जा सकते हैं।

 

 

3. नोजपीस -- बॉडी ट्यूब के निचले सिरे पर थोड़ा दायें बायें गतिशील एक गोल घूमने वाली नोज पीस लगी होती है। इसमें प्रायः दो या तीन अभिदृश्यक  लैन्स लगे होते हैं। लैन्स विभिन्न आवर्धक क्षमता के होते हैं।

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी क्या है

इसका निर्माण मैक्स नोल एवं अर्न्स्ट रुस्का  ने 1932 में किया। इसकी सहायता से अति सूक्ष्म वस्तुओं विशेषकर कोशिका के कोशिकांगों का अध्ययन किया जाता है इससे किसी वस्तु को दो लाख गुना बढ़ा करके देखा जा सकता है। इसमें प्रकाश किरणों के स्थान पर इलेक्ट्रॉन किरणों तथा लेन्सों के स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है। इलेक्ट्रॉन किरणें चुम्बकीय क्षेत्र से होती हुई जब किसी वस्तु में से निकलती हैं तो वस्तु के सूक्ष्म कण इन्हें परावर्तित कर देते हैं। ये परावर्तित किरणों एक चुम्बकीय क्षेत्र में होकर एक प्रतिदीप्तिशील पर्दे पर वस्तु के चित्र को प्रतिबिम्बित कर देती हैं। इस अवस्था में चित्र को देखा जा सकता है और उसका फोटो भी तैयार किया जा सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
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