भारतीय वैज्ञानिकों ने कोशिकाओं की एक अत्यंत महत्वपूर्ण जैविक प्रक्रिया ऑटोफैगी से जुड़ी एक अब तक अज्ञात कड़ी का पता लगाया है, जो भविष्य में अल्जाइमर, पार्किंसंस और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज को नई दिशा दे सकती है। यह शोध बेंगलुरु स्थित जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (JNCASR) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
ऑटोफैगी को आम भाषा में कोशिकाओं की “स्व-भक्षण” या सेल्फ-क्लीनिंग प्रक्रिया कहा जाता है। इसके तहत कोशिकाएं अपने भीतर मौजूद क्षतिग्रस्त और अवांछित हिस्सों को हटाकर खुद को स्वस्थ बनाए रखती हैं। जब यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है, तो कोशिकाओं में कचरा जमा होने लगता है, जिससे विशेष रूप से दीर्घकालिक न्यूरॉन्स प्रभावित होते हैं। यही स्थिति अल्जाइमर, हंटिंगटन और पार्किंसंस जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों से जुड़ी मानी जाती है।
कैंसर के मामले में ऑटोफैगी की भूमिका दोहरी होती है। शुरुआती चरण में यह ट्यूमर को रोकने में मदद करती है, क्योंकि यह जीनोम की अखंडता बनाए रखती है और क्षतिग्रस्त माइटोकॉन्ड्रिया व प्रोटीन के ढेर को साफ करती है। हालांकि, बाद के चरणों में कुछ कैंसर कोशिकाएं इसी प्रक्रिया का उपयोग अपने अस्तित्व और तेजी से बढ़ने के लिए करने लगती हैं। इसलिए प्रभावी उपचार विकसित करने के लिए ऑटोफैगी के सटीक नियमन को समझना बेहद जरूरी है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अधीन एक स्वायत्त संस्थान JNCASR की टीम ने पाया कि एक्सोसिस्ट कॉम्प्लेक्स नामक प्रोटीनों का समूह, जो अब तक कोशिका के भीतर अणुओं के परिवहन के लिए जाना जाता था, ऑटोफैगी प्रक्रिया में भी अहम भूमिका निभाता है। इस कॉम्प्लेक्स में कुल आठ प्रोटीन होते हैं, जिनमें से सात ऑटोफैगोसोम यानी कोशिकीय “कचरा थैले” के निर्माण में सहायता करते हैं।
जब एक्सोसिस्ट कॉम्प्लेक्स अनुपस्थित होता है, तो कोशिका की यह कचरा-सफाई प्रणाली ठीक से काम नहीं कर पाती और दोषपूर्ण ऑटोफैगोसोम बनने लगते हैं, जिससे कोशिकीय संतुलन बिगड़ जाता है।
प्रोफेसर रवि मंजिथया के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने इस प्रक्रिया को समझने के लिए सरल खमीर कोशिकाओं (yeast cells) का उपयोग किया। इससे यह स्पष्ट हुआ कि ऑटोफैगोसोम का निर्माण कैसे होता है और यह प्रक्रिया उच्च जीवों में किस तरह संचालित होती है।
शोध में यह भी स्पष्ट किया गया कि एक्सोसिस्ट कॉम्प्लेक्स, जिसे पहले केवल स्राव (secretion) से जुड़ा माना जाता था, वास्तव में ऑटोफैगी मार्ग में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह खोज कोशिकीय स्वास्थ्य को बनाए रखने की हमारी समझ को और गहरा करती है।
चूंकि ऑटोफैगी में गड़बड़ी कई न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों और कैंसर से जुड़ी होती है, इसलिए Proceedings of the National Academy of Sciences (PNAS) में प्रकाशित यह अध्ययन ऑटोफैगी मार्ग को लक्षित कर नई चिकित्सीय रणनीतियां विकसित करने की संभावनाएं खोलता है। यह खोज भविष्य में कोशिकीय संतुलन बहाल करने और प्रभावी उपचार विकसित करने में सहायक साबित हो सकती है।
