घड़ी हमारे जीवन में कितना महत्व रखती है। सुबह उठने से लेकर सोने तक हम सभी घड़ी के अनुसार ही सारे काम करते है। अगर घड़ी ना हो तो समय का पता नहीं चल पाएगा और कोई भी कार्य सही ढंग से नहीं हो पाएगा जैसे ऑफिस जाना हो, लंच करना हो, ट्रेन से सफर करना हो हम सभी काम घड़ी के में समय देखकर ही करते है। वर्तमान समय में कई तरह के घड़ी का अविष्कार हो चुका हैं। आज हमारे पास समय का पता लगाने के कई सारे साधन उपलब्ध हैं। पर जब घड़ी का अविष्कार नहीं हुआ था तब समय का पता लगाने के लिए लोग सूर्य की रोशनी का सहारा लेते थे। जबकि बरसात में जब सूर्य नहीं निकलता था तब लोग पानी से भी समय का अनुमान लगा लेते थे। पानी वाली घड़ी के आविष्कार का श्रेय चीन के सु संग नामक व्यक्ति को जाता है लेकिन यह प्रभावी नहीं हुआ करती थी क्योंकि इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं ले जा सकते थे।ऐसे में इन्वेन्टर को पोर्टेबल वॉच बनाने का विचार आया जिसे लोग अपने साथ ले जाने के साथ कभी भी समय देख सके। आज घड़ी डिजिटल हो गयी है लेकिन यहाँ तक पहुँचने के लिए घड़ी को सैकड़ों साल लग गए हैं। आज आप जो भी वॉच देखते हैं वह शुरुआत में ऐसी नहीं थी। इसे काफी बदलावों के बाद ऐसा बनाया गया है किसी ने पहले घंटे वाली तो किसी ने मिनिट वाली घड़ी को बनाया था इस तरह इसका निर्माण कई चरणों में हुआ है। आइए जानते हैं
घड़ी का आविष्कार किसने किया था
घड़ी का आविष्कार जर्मनी के न्यूरमबर्ग शहर में Peter Henlein ने 1505 में क्लॉक वॉच का आविष्कार किया था। यह ऐसी वॉच थी जिसे लोग अपने साथ ले जा सकते थे और यह बिलकुल आज की तरह सटीक समय बताती थी। इस घड़ी को आज भी काफी अच्छी तरह से संभाल कर रखा गया है जिसे आप म्यूजियम में देख सकते हैं। पीटर हेनलेन की बनाई घड़ी की तकनीक का उपयोग करके आज की एडवांस वॉच बनाई गयी हैं।
पीटर हेनले के द्वारा क्लॉक वॉच के अविष्कार के बाद ही 1577 में स्विजरलैंड के जॉस बर्गी ने मिनट की सुई वाली घड़ी का आविष्कार किया। इसके बाद पॉकेट वॉच का आविष्कार हुआ और 1650 के आसपास लोग अपनी जेबों में घड़ियां लेकर घूमा करते थे। इसके बाद साल 1988 में Steve Mann ने पहली लिनक्स स्मार्ट वॉच का आविष्कार किया जो सेल से चलती थी।
भारत में घड़ी का आविष्कार
भारत में अंग्रेजी हुकूमत से पहले 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने जयपुर, नई दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में कुल मिलाकर पांच जंतर मंतरों का निर्माण कराया था। इनका निर्माण 1724 और 1735 के बीच पूरा कर दिया गया था यह सभी सूर्य की रोशनी से समय बताते हैं। बात करे पीटर हेनलेन के द्वारा बनाई गयी घड़ी की तो यह एक डिब्बी के आकार की थी इसके निचले हिस्से में छोटे छोटे कलपुर्जे लगे हुए हैं। जबकि ऊपरी हिस्सा एक ढक्कन से ढका रहता है जिसे खोला और बंद किया जा सकता है। यह घड़ी तांबे और सोने की बनाई गयी थी।