वैसे तो साय सरकार छत्तीसगढ़ को ऊँचाइयों में ले जाने के लिए अनेकों प्रयास कर रहे हैं | उन्हीं प्रयासों में से एक, बिलासपुर केरिवर व्यू पर श्री रामसेतु मार्ग का उद्घाटन मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने किया। श्री रामसेतु मार्ग के उद्घाटन को लेजर शो और आतिशबाजी के माध्यम से मनाया गया, जो बिलासपुर विकास दीप महोत्सव भी था। 10 हजार दीपक इस अवसर पर अरपा नदी में छोड़े गए। इस मौके पर, शहर के दोनों छोरों को जोड़ने वाले अरपा के दोनों पुलों को आकर्षक रोशनी से सजाया गया था।
अरपा नदी के समागम निर्धारण के पूर्व मान्यताओं के अनुसार पुराणों में वर्णित कृपा नदी को अरपा नाम से पहचानी गई है। पुराणों में कृपा नदी का उद्गम शुक्तिमत पर्वत (मेकल श्रेणी) में उल्लेखित किया गया है जो इस नदी के मुख या समागम स्थल से सबसे दूर का स्थान है। अरपा नदी का उद्गम पेण्ड्रा पठार की पहाड़ी से हुआ है। यह महानदी की सहायक नदी है। यह बिलासपुर जिला में प्रवाहित होती है और बरतोरी के निकट ठाकुर देवा नामक स्थान पर शिवनाथ नदी में मिल जाती है।
अरपा की लंबाई लगभग 147 किमी है और औसत जल प्रवाह 400 मीटर है। अरपा नदी का जलग्रहण क्षेत्र 2022 वर्ग किमी है। नदी अपने किनारे के कई नदी समुदायों को आजीविका प्रदान करती है, और इसका पानी पीने, सिंचाई, मत्स्य पालन और औद्योगिक उपयोग के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
देवी, देवताओं की तरह नदियों की अपनी खासियत होती है। प्रकृति की अनुपम कृति, वरदान मानी जाती हैं नदियां। पेड़, पौधों से लेकर जीव, जंतुओं और मानव जीवन के लिए यह संजीवनी है। बगैर पानी के कुछ नहीं हो सकता। भगीरथ ने धरती पर लोगों के कल्याण के लिए गंगा को लाया। अमरकंटक की नर्मदा भगवान शिव के स्वेद से उत्पन्न हुई और हमारी अरपा अन्न उपजाने वाले खेत से निकली। आप समझ सकते हैं कि अरपा जिले भर के लिए साक्षात अन्नपूर्णा से कम नहीं है। अरपा की कहानी दुखांत मोड़ पर पहुंच गई है। उसकी यह दशा उस पर आश्रित आबादी ने की है। बेटा जब अपनी मां की भावनाओं का निरादर करता है, तो वह उसकी वृष्टि छाया से वंचित हो जाता है। यही हालत पेंड्रा से बिलासपुर तथा संगम मंगला पासीद तक आने वाले शहर, गांवों में निवास करने वाले लाखों लोगों की है। यही हालत पेंड्रा से बिलासपुर तथा संगम मंगला पासीद तक आने वाले शहर, गांवों में निवास करने वाले लाखों लोगों की है।
अरपा में घाट की संस्कृति आबादी, बसाहट की तरह पुरानी है। घाट व्यवस्था सामाजिक तौर पर की जाती थी। पचरीघाट के पास जनकबाई घाट अपनी पुरातन संस्कृति की याद दिलाती है। हालांकि इसके लोकार्पण का पत्थर गायब हो चुका है। वक्त के निर्मम थपेड़ों ने घाट को जीर्ण जीर्ण दशा में पहुंचा दिया है। ब्रितानीराज में इसकी स्थापना शंकर राव बापते, गोविंद राव बापते(अब स्वर्गीय) के परिवार ने की। इसके लोकार्पण पर अरपा तट की साज सज्जा की तस्वीर बापते परिवार के पास वर्षों तक रही। दिनचर्या से लेकर समस्त संस्कारों के दौरान जमाने से यह घाट एक समाज के मिलन स्थल बने रहे। पचरीघाट जूना बिलासपुर की स्थाई पहचान बन चुका है। जिस नदी के घाट लोगों को मिलाने का काम करते रहे हों, उसकी सुरक्षा तो लोग ही करेंगे।
डा. पालेश्वर शर्मा अपने जीवनकाल में अरपा की कहानी लिखते वह इसकी चिंता कर गए कि जीवनदायिनी अरपा मैंया कहीं कहानियों में न रह जाए। 2001 में डा.सोमनाथ यादव द्वारा प्रकाशित पुस्तिका” बिलासा और बिलासपुर ’में डा.शर्मा ने अरपा के बारे में छत्तीसगढ़ी लोककथा का जिक्र किया। इसके अनुसार जेठ की तपती दोपहर में एक स्त्री अपने शिशु के साथ भाठा जमीन को पार कर रही थी। भयानक तपन से उसके पांव जल रहे थे। फफोले फूटने पर उसे सहन नहीं हुआ, तो उसने नन्हें शिशु को कंधे से नीचे उतारकर उसे तपती हुई धरती पर रखकर उस पर खड़ी हो गई। उसी समय पार्वती मां ने उस स्त्री को क्रोधवश श्राप दे दिया कि जा आज से तू नदी बन जा, किंतु तू मात्र नाम की नदी रहेगी। डा.शर्मा ने आगे लिखा कि लोककथा कुछ भी हो किंतु यह निर्विवाद सत्य है कि अरपा में हमेशा अपार जलराशि थी। उन्होंने आने वाली पीढ़ी के लिए अरपा को पुर्नजीवित करने का आह्वान किया था।
मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने बिलासपुर में ’श्री रामसेतु मार्ग’ के लोकार्पण के इस अवसर पर कहा कि बिलासपुर, छत्तीसगढ़ की राजधानी, के विकास के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है, जहां कई विकास कार्यों की घोषणा की गई है। इन क्रियाओं से बिलासपुर शहर की अधोसंरचना मजबूत होगी। इन सभी प्रयासों से बिलासपुर शहर की अधोसंरचना और नागरिक सुविधाओं को बल मिलेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अरपा मइया छत्तीसगढ़ की संस्कृति की धारा है, न सिर्फ एक नदी। अरपा मइया को बचाने के लिए हम संकल्पित हैं। अरपा उत्थान और तट संवर्धन परियोजना के अंतर्गत आज श्रीराम सेतु मार्ग का उद्घाटन किया गया है। अरपा नदी को सुधारने के लिए और भी काम चल रहे हैं। इंदिरा सेतु से शनिचरी रपटा तक लगभग दो किलोमीटर की फोर लेन की सड़क दोनों किनारों पर बनाई जा रही है। नदी के किनारे एक नाला है, जो शहर के गंदे पानी को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ का दूसरा सबसे बड़ा शहर बिलासपुर है। इस शहर को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दिए लक्ष्य के अनुरूप विकसित भारत-विकसित छत्तीसगढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देना होगा। इस दौरान, मुख्यमंत्री ने एक बड़ी घोषणा की: मल्हार महोत्सव को बिलासपुर में फिर से शुरू करने और 20 लाख रुपये का बजट देने की घोषणा की।
अरपा उत्थान और तट संवर्धन परियोजना के एक भाग के तहत, अरपा नदी के दांयी ओर की सड़क को रामसेतु मार्ग नाम दिया गया है। यह 49 करोड़ 98 लाख रुपये का खर्च करेगा, जिसमें फ़ुटपाथ, डिवाइडर, सड़क प्रकाश, रिटेनिंग वॉल और सौंदर्यीकरण कार्य शामिल हैं। इस सड़क के उद्घाटन से शहर में यातायात सुगम होगा। इससे शहरवासियों को नेहरू चौक से गोल बाजार-सदर बाजार और शनिचरी बाजार की ओर जाने के लिए एक सुविधाजनक विकल्प मिला है।
डा.जे आर सोनी का कहना है कि बिलासपुर को बिलासा केंवटिन ने बसाया, लेकिन शहर बसने से पहले अरपा के तटवर्ती गांवों पर कई डोंगाघाट थे। वस्तुओं का आदान प्रदान इन्हीं के जरिए होता था। किसान अपनी उपज धान, चावल, तिवरा, कोदो, कुटकी, गन्ना, चना, मसूर, धनिया, सब्जियां, घी, दूध, चार, तेंदू, महुआ आदि के बदले जूना बिलासपुर से नमक, तेल, गुड़, कपड़े,सोने, चांदी, लोहे के सामान आदि का क्रय विक्रय करते थे। अरपा के तटवर्ती डोंगाघाट कोनी, चांटीडीह, जूना बिलासपुर, तोरवा दर्रीघाट और लालखदान के घाटों की नीलामी की जाती थी। इससे राजकीय कर प्राप्त होता था। अरपा नदी के डोंगाघाट एक व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित थे। अरपा नदी बिलासपुर से नीचे बहकर शिवनाथ नदी में मिल जाती है। शिवनाथ महानदी में और महानदी पश्चिम बंगाल की खाड़ी(महासागर) में मिलती है। जल मार्ग से बिलासपुर, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल से व्यापारिक संबंध थे।