महाकुम्भ नगर, 29 दिसम्बर । इस बार जगदगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती के मोरी मार्ग और संगम लोवर मार्ग स्थित ज्योतिर्मठ शिविर में 324 कुण्डीय पंचदेव महायज्ञ के दर्शन होंगे। इसके लिए तैयारियां जोरों पर है। ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती 09 जनवरी को कुंभ क्षेत्र में पहुंचेंगे। कुंभ में पधारे करोड़ों श्रद्धालुओं को उनका पावन सानिध्य में 09 जनवरी से 14 फरवरी तक मिलेगा।
यह जानकारी शंकराचार्य के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शैलेन्द्र योगिराज सरकार ने दी। कुम्भ में ज्योतिर्मठ शिविर में अनेकों कार्यक्रम सम्पन्न होंगे। उन्होंने बताया कि गो प्रतिष्ठा हेतु महाकुंभ में 324 कुण्डीय पंचदेव महायज्ञ के दर्शन और सेवा का सुन्दर अवसर मिलेगा। इस दौरान 1100 ब्राह्मणों द्वारा महायज्ञ के दर्शन की अद्भुत झांकी निकाली जायेगी। श्रद्धालुओं को जगद्गुरुकुलम के वैदिक छात्रों के विहंगम दृश्य देखने का अवसर मिलेगा। इस महायज्ञ में प्रत्येक कुण्ड में यज्ञमान बनने के लिए श्रद्धालु रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इस शिविर में प्रतिदिन विशाल भण्डारे का आयोजन भी होगा।
उन्होंने बताया कि सभी धार्मिक विषयों पर निर्णय के लिए परमधर्मसंसद का 21 दिवसीय विशेष सत्र होंगे। यह परमधर्मसंसद सेक्टर—12 गंगेश्वर चौराहा, संगम लोवर मार्ग के गंगा सेवा अभियानम् शिविर में आयोजित होगा। इस धर्मसंसद में पूरे देश से 1008 लोग प्रतिभाग करेंगे। जिसके लिए धर्मसंसद में 1008 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है।
उन्होंने बताया कि परमधर्म संसद सनातन धर्म संसद का आयोजन है। इसमें संत-महंत, महामंडलेश्वर और कथाकार शामिल होते हैं। इस संसद में धर्म से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा होती है। उन्होंने बताया कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती छतनाग स्थित 'भारतीयम' शिविर में रात्रि विश्राम करेंगे।
दिल्ली से जिम कॉर्बेट तक रेल द्वारा:
कॉर्बेट लिंक एक्सप्रेस - पुरानी दिल्ली से 2245 बजे प्रस्थान कर 0530 बजे रामनगर पहुँचती है
काठगोदाम एक्सप्रेस - पुरानी दिल्ली से 2245 बजे प्रस्थान करती है और 0715 बजे काठगोदाम पहुँचती है
दिल्ली से जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान सड़क मार्ग से:
रूट: दिल्ली-हापुड़-गजरौला-मुरादाबाद-काशीपुर-रामनगर-कॉर्बेट
पिकनिक का मौसम आते ही खिलने लगे हैं खूंटी के ग्रामीणों के चेहरे
खूंटी । झारखंड के खूंटी जिले में पर्यटन स्थलों के आसपास रहने वाले ग्रामीणों के चेहरे खिलने लगे है। नवंबर माह से ही जिले के पेरवांघाघ, पंचघाघ, सप्तधारा, रानी फॉल, पांडूपुड़िंग, चंचला घाघ, बाघलता सहित अन्य पर्यटन स्थलों में सैलानियां की भीड़ जुटने लगती है। भारी संख्या में पर्यटकों के आने से स्थानीय लोगों को अच्छा खासा रोजगार मिल जाता है। पर्यटन स्थलों के आसपास रहनेवाले ग्रामीणों को पिकनिक के इस मौसम का बेसब्री सेे इंतजार रहता है। पर्यटन समितियों और उनके सदस्यों को नवंबर से फरवरी तक लाखों रुपये की कमाई हो जाती है।
गुलगुला से लेकर चिकन-मटन तक की लगती हैं दुकानें-
नवंबर से लेकर फरवरी महीने तक खूंटी जिले के सभी पर्यटन स्थलों में हर दिन सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक स्थानीय ग्रामीण गुलगुला, चाय-पकौड़ी, मुरही, चाट मसाला, गोलगप्पे, चिकन, म्टन, होटल, तेल-साबुन, इडली, मड़ुवा रोटी, हस्तशिल्प से लेकर लगभग जरूरत की हर चीज की दुकानें लगाते हैं। पेरवांघाघ जलप्रपात में चने की दुकान लगाने वाली फिलोमिना टोपनो कहती हैं कि धनकटी खत्म होने के बाद हमें चार महीने तक अच्छा रोजगार मिल जाता हे। उन्होंने बताया कि सभी तरह की दुकानें यहां लगती है। अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार लोग दुकानें लगाते हैं। उन्होंने कहा कि पूरा परिवार मिलकर दुकान का संचालन करते हैं। पेरवांघाघ में ही तेल-साबुन और अन्य मनिहारी की दुकान लगाने वाले मरकुस भेंगरा कहते हैं कि पिकनिक के मौसम का उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता है। उन्होंने कहा कि खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड कों प्रकृति ने पेरवांघाघ, पांडुपूड़िंग, सप्तधारा, चंचला घाघ, सिड़िंग सहित गई पर्यटन स्थल उपहार के रूप में दिये हैं। इस क्षेत्र में रोजगार के अच्छे अवसर हैं, लेकिन प्रखासन इन पर्यटन स्थलों के विकास पर ध्यान नहीं दे रही है। तपकारा निवासी प्रदीप केसरी कहते हैं कि तोरपा और रनिया प्रखंड के पर्यटन स्थलों में सुविधा के अभाव में लोग कम आते है। उन्होंने कहा कि किसी भी पिकनिक स्पॉट में जाने के लिए अच्छी पड़क तक नहीं है। यदि आवागमन की सुविधा हो तो सालों भर सैलानी यहां आयेंगे और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
उमड़ रही है सैलानियों की भीड़-
तोरपा प्रखंड के प्रमुख पर्यटन स्थल पेरवांघाघ, पांडुपूड़िंग तथा चंचलाघाघ में पर्यटक पहुंचने लगे है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में सैलानी यहां पहुंच रहे हैं। रविवार सहित अन्य छुट्टी के दिनों में सैलानियों की संख्या ज्यादा रहती है। फटका पंचायत में स्थित पेरवांघाघ प्रखंड का प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहां के जलप्रपात की सुंदरता देखते ही बनती है। हरे-भरे जंगलों के बीच कारो नदी पर स्थित यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। इस जलप्रपात के पास बोटिंग की व्यवस्था पर्यटक मित्रों द्वारा की जाती है। देसी तकनीक से लकड़ी का बोट बनाया जाता है, जिसमें बैठक सैलानी बोटिंग के रोमांच का लुत्फ उठाते हैं। जलप्रपात को देखने के लिऐ नदी की दूसरी तरफ जाने के लिए लकड़ी का अस्थाई पुल भी पर्यटक मित्रों द्वारा बनाया जाता है।
थर्मोकोल के प्रयोग पर है प्रतिबंध, पर्यटकों को मिलता है गार्बेज बैग-
पेरवांघाघ में थर्मोकोल का प्रयोग प्रतिबंधित है। इसकी जगह पर पत्ते से बने दोना पत्तल का प्रयोग सैलानी कर सकते हैं। दोना पत्तल की बिक्री पेरवां घाघ में की जाती है। गंदगी रोकने के लिए पर्यटक समितियों द्वारा कई कदम उठाये जाते हैं। पेरवांघाघ के पर्यटन मित्र इंद्र सिंह ने बताया कि पेरवां घाघ में गंदगी रोकने के लिए पर्यटन मित्र इस बार पर्यटकों को गारबेज बैग निःशुल्क देंगे। पार्किंग शुल्क के साथ ही यह बैग उन्हें निःशुल्क दिया जायेगा। पर्यटक इसमें अवशेष चीजों जमा कर एक निर्धारित जगह पर जमा करेंगे, ताकि गंदगी न फैले।
उन्होंने बताया कि हर वर्ष की भांति प्रतिदिन यहां की सफाई की जायेगी। तोरपा प्रखंड के पांडूपुड़िंग, चंचला घाघ, रनिया प्रखंड के उलूंग जलप्रपात, मुरहू प्रखंड के पंचघाघ जलप्रपात, रिमिक्स फॉल, रानी फॉल में सैलानियों की अच्छी खासी भीड़ जुटने लगी है। इससे स्थानीय लोग काफी खुश हैं।
शिवसागर (असम), 25 दिसंबर । पानीदिहिंग महोत्सव-2024 का शुभारंभ बुधवार की सुबह पक्षी अवलोकन से हुआ। शिवसागर जिलांतर्गत डिमौ के सरोगुआ क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध पानीदिहिंग पक्षी अभयारण्य में यह महोत्सव पहली बार आयोजित किया गया है। इस अभयारण्य को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का विशेष प्रयास किया जा रहा है, जहां हर साल स्थानीय और प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है।
स्थानीय युवाओं की एक उत्साही टीम ने पानीदिहिंग को एक नई पहचान दिलाने के लिए कई पहल की है। इस महोत्सव में पक्षी अवलोकन के अलावा कैनवास पेंटिंग जैसी आकर्षक गतिविधियों का भी आयोजन किया गया है। अभयारण्य की शांत और सुरम्य वातावरण ने पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित किया है।
बुधवार की सुबह पक्षी विशेषज्ञों के नेतृत्व में टूरिस्ट गाइड और स्थानीय युवा-युवतियों ने पक्षी अवलोकन कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यह आयोजन पक्षियों के व्यवहार और उनकी प्रजातियों की विविधता को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि लंबे समय से प्रचार, प्रसार और संरक्षण के अभाव के कारण पानीदिहिंग पक्षी अभयारण्य को अपेक्षित महत्व नहीं मिला। लेकिन इस महोत्सव के आयोजन के कारण अब यहां न केवल असम बल्कि देश-विदेश से भी कई पर्यटक और प्रकृति प्रेमी आ रहे हैं।
इस पहल से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलने के साथ-साथ अभयारण्य की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा।
मध्यप्रदेष और राजस्थन के बीच पार्वती, कालीसिंध और चंबल का पानी एक बड़े जलस्रोत के रूप में बहता है। मध्यप्रदेष में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की षुरूआत के बाद अब उपरोक्त नदियों को जोड़े जाने की आधारषिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयपुर में रख दी है। इसके प्रतीकस्वरूप तीनों नदियों के पानी को एक घड़े में भरा गया। तत्पष्चात भारत सरकार और राजस्थान एवं मध्यप्रदेष राज्य सरकारों के बीच एक त्रिपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। 72000 करोड़ रुपए इस परियोजना पर खर्च होंगे। इसमें 90 प्रतिषत राषि केंद्र सरकार देगी। इस राषि में से 35000 करोड़ रुपए मध्यप्रदेष और 37000 करोड़़़ रुपए राजस्थान सरकार खर्च करेगी। इसमें मध्यप्रदेष के 13 जिलों के 3217 ग्रामों की सूरत बदल जाएगी। दोनों प्रदेषों में मिलाकर 27 नए बांध बनेंगे और 4 पुराने बांधों पर नहरों की जलग्रहण क्षमता बढ़ाई जाएगी। इसी के साथ 64 साल पुरानी ग्वालियर-चंबल संभाग की चंबल-नहर प्रणाली का उद्धार नए तरीके से किया जाएगा। तय है, ये नदियां निर्धारित अवधि में जुड़ जाती हैं, तो सिंचाईं के लिए कृशि भूमि का रकबा बढ़ने के साथ अन्न की पैदावार बढ़ेगी। किसान खुषहाल होंगे और उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा।
नदियों की धारा मोड़ने का दुनिया में पहला उदाहरण ऋग्वेद में मिलता है। इंद्र ने सिंचाई और पेयजल की सुविधा सुगम कराने की दृश्टि से सिंधु नदी की धारा को मोड़ा था। इसके बाद अरुणाचल प्रदेष में ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को पहाड़ तोड़कर भगवान परषुराम ने मोड़ा था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी ने नदी जोड़ो अभियान की जो परिकल्पना की थी, उसे नरेंद्र मोदी ने साकार करने की षुरूआत केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के साथ कर दी थी। ये परिययोजनाएं जल-षक्ति अभियान ‘कैच द रन‘ के तहत अमल में लाई जा रही हैं। बाढ़ और सूखे से परेषान देष में नदियों के संगम की परियोजना मूर्त रूप ले रही हैं, यह देषवासियों के लिए प्रसन्नता की बात है। इन परियोजनाओं को जोड़ने का अभियान सफल होता है तो भविश्य में 57 अन्य नदियों के मिलन का रास्ता खुल जाएगा। दरअसल बढ़ते वैष्विक तापमान, जलवायु परिवर्तन और बदलते वर्शा-चक्र के चलते जरूरी हो गया है कि नदियों के बाढ़ के पानी को इकट्ठा किया जाए और फिर उसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में नहरों के जरिए भेजा जाए। ऐसा संभव हो जाता है तो पेयजल की समस्या का निदान तो होगा ही, सिंचाई के लिए भी किसानों को पर्याप्त जल मिलने लग जाएगा। वैसे भी भारत में विष्व की कुल आबादी के करीब 18 प्रतिषत लोग रहते हैं और उपयोगी जल की उपलब्धता महज 4 प्रतिषत है। हालांकि पर्यावरणविद् इन परियोजनाओं को यह कहकर विरोध कर रहे हैं कि नदियों को जोड़ने से इनकी अविरलता खत्म होगी, नतीजतन नदियों के विलुप्त होने का संकट बढ़ जाएगा।
कृत्रिम रूप से जीवनदायी नर्मदा और मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदियों को जोड़ने का काम मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान पहले ही कर चुके थे। चूंकि ये दोनों नदियां मध्य-प्रदेष में बहती थीं, इसलिए इन्हें जोड़ा जाना संभव हो गया था। केन और बेतवा नदियों को जोड़ने की तैयारी में मध्य प्रदेष और उत्तर प्रदेष की सरकारें बहुत पहले से जुटी थीं। इस परियोजना को वर्श 2005 में मंजूरी भी मिल गई थी, लेकिन पानी के बंटवारे को लेकर विवाद बना हुआ था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दोनों राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें होने के कारण एकमत नहीं हुईं। कालांतर में केंद्र समेत उप्र और मप्र में भी भाजपा की सरकारें बन गईं। नतीजतन परियोजनाओं पर सहमति बन गई। केन नदी जबलपुर के पास कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर 427 किमी उत्तर की और बहने के बाद बांदा जिले में यमुना नदी में जाकर गिरती है। वहीं बेतवा नदी मध्य-प्रदेष के रायसेन जिले से निकलकर 576 किमी बहने के बाद उत्तर-प्रदेष के हमीरपुर में यमुना में मिलती है। केन-बेतवा नदी जोड़ो योजना पर भूमि अधिग्रहण के साथ तेज गति से बांधों एवं नहरों का काम षुरू हो गया है।
जीवनदायी नदियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। नदियों के किनारे ही ऐसी आधुनिकतम बढ़ी सभ्यताएं विकसित हुईं, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं। सिंधु घाटी और सारस्वत (सरस्वती) सभ्यताएं इसके उदाहरण हैं। भारत के सांस्कृतिक उन्नयन के नायकों में भागीरथी, राम और कृष्ण का नदियों से गहरा संबंध रहा है। भारतीय वांगमय में इंद्र और कुबेर विपुल जलराशि के प्राचीनतम वैज्ञानिक-प्रबंधक रहे हैं। भारत भूखण्ड में आग, हवा और पानी को सर्वसुलभ नियामत माना गया है। हवा और पानी की शुद्धता और सहज उपलब्धता नदियों से है। दुनिया के महासागरों, हिमखण्ड़ों, नदियों और बड़े जलाशयों में अकूत जल भण्डार हैं। लेकिन मानव के लिए उपयोग जीवनदायी जल और बढ़ती आबादी के लिए जल की उपलब्धता का बिगड़ता अनुपात चिंता का बड़ा कारण बना हुआ है। ऐसे में भी बढ़ते तापमान के कारण हिमखण्डों के पिघलने और अवर्षा के चलते जल स्त्रोतों के सूखने का सिलसिला जारी है। वर्तमान में जल की खपत कृषि, उद्योग, विद्युत और पेयजल के रूप में सर्वाधिक हो रही है। हालांकि पेयजल की खपत मात्र आठ फीसदी है। जिसका मुख्य स्त्रोत नदियां और भू-जल हैं। औद्योगिकिकरण, शहरीकरण और बढ़ती आबादी के दबाव के चलते एक ओर नदियां सिकुड़ रही हैं, वहीं औद्योगिक कचरा और मल मूत्र बहाने का सिलसिला जारी रहने से गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां इतनी प्रदूषित हो गईं हैं कि यमुना नदी को तो एक पर्यावरण संस्था ने मरी हुई नदी तक घोषित कर दिया है।
प्रस्तावित करीब 120 अरब डालर अनुमानित खर्च की नदी जोड़ों परियोजना को दो हिस्सों में बांटकर अमल में लाया जाएगा। एक प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोड़ना और दूसरे, हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना। प्रायद्वीप भाग में 16 नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है। इसमें महानदी, गोदावरी, पेन्नार, कृष्णा, पार, तापी, नर्मदा, दमनगंगा, पिंजाल और कावेरी को जोड़ा जाएगा। पशिचम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा। इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है। केरल और कर्नाटक की पशिचम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी। यमुना और दक्षिण की सहायक नदियों को भी आपस में जोड़ा जाना इस परियोजना का हिस्सा है। हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल को संग्रह करने की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इकट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भंयकर बाढ़ का सामना करने से छुटकारा मिले। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेत्र में कोसी, घांघरा, मेच, गंड़क, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दमोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा। करीब 13,500 किमी लंबी ये नदियां भारत के संपूर्ण मैदानी क्षेत्रों में अठखेलियां करती हुईं मनुष्य और जीव-जगत के लिए प्रकृति का अनूठा और बहुमूल्य वरदान बनी हुईं हैं। 2528 लाख हेक्टेयर भू-खण्डों और वनप्रांतरों में प्रवाहित इन नदियों में प्रति व्यक्ति 690 घनमीटर जल है। कृषि योग्य कुल 1411 लाख हेक्टेयर भूमि में से 546 लाख हेक्टेयर भूमि इन्हीं नदियों की बदौलत प्रति वर्ष सिंचित की जाकर फसलों को लहलहाती हैं।
दरअसल बढ़ते वैष्विक तापमान, जलवायु परिवर्तन, अलनीनो और बदलते वर्शा चक्र के चलते जरूरी हो गया है कि नदियों के बाढ़ के पानी को इकट्ठा किया जाए और फिर उसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में नहरों के जरिए भेजा जाए। ऐसा संभव हो जाता है तो पेयजल की समस्या का निदान तो होगा ही, सिंचाई के लिए भी किसानों को पर्याप्त जल मिलने लग जाएगा। वैसे भी भारत में विष्व की कुल आबादी के करीब 18 प्रतिषत लोग रहते हैं और उपयोगी जल की उपलब्धता महज 4 प्रतिषत है। इसलिए नदी जोड़ो परियोजनाओं को भवश्यि के लिए लाभदायी माना जा रहा है।
लेखक - प्रमोद भार्गव
झारखंड के खूंटी जिले में पर्यटन स्थलों के आसपास रहने वाले ग्रामीणों के चेहरे खिलने लगे है। नवंबर माह से ही जिले के पेरवांघाघ, पंचघाघ, सप्तधारा, रानी फॉल, पांडूपुड़िंग, चंचला घाघ, बाघलता सहित अन्य पर्यटन स्थलों में सैलानियां की भीड़ जुटने लगती है। भारी संख्या में पर्यटकों के आने से स्थानीय लोगों को अच्छा खासा रोजगार मिल जाता है। पर्यटन स्थलों के आसपास रहनेवाले ग्रामीणों को पिकनिक के इस मौसम का बेसब्री सेे इंतजार रहता है। पर्यटन समितियों और उनके सदस्यों को नवंबर से फरवरी तक लाखों रुपये की कमाई हो जाती है।
गुलगुला से लेकर चिकन-मटन तक की लगती हैं दुकानें-
नवंबर से लेकर फरवरी महीने तक खूंटी जिले के सभी पर्यटन स्थलों में हर दिन सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक स्थानीय ग्रामीण गुलगुला, चाय-पकौड़ी, मुरही, चाट मसाला, गोलगप्पे, चिकन, म्टन, होटल, तेल-साबुन, इडली, मड़ुवा रोटी, हस्तशिल्प से लेकर लगभग जरूरत की हर चीज की दुकानें लगाते हैं। पेरवांघाघ जलप्रपात में चने की दुकान लगाने वाली फिलोमिना टोपनो कहती हैं कि धनकटी खत्म होने के बाद हमें चार महीने तक अच्छा रोजगार मिल जाता हे। उन्होंने बताया कि सभी तरह की दुकानें यहां लगती है। अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार लोग दुकानें लगाते हैं। उन्होंने कहा कि पूरा परिवार मिलकर दुकान का संचालन करते हैं। पेरवांघाघ में ही तेल-साबुन और अन्य मनिहारी की दुकान लगाने वाले मरकुस भेंगरा कहते हैं कि पिकनिक के मौसम का उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता है। उन्होंने कहा कि खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड कों प्रकृति ने पेरवांघाघ, पांडुपूड़िंग, सप्तधारा, चंचला घाघ, सिड़िंग सहित गई पर्यटन स्थल उपहार के रूप में दिये हैं। इस क्षेत्र में रोजगार के अच्छे अवसर हैं, लेकिन प्रखासन इन पर्यटन स्थलों के विकास पर ध्यान नहीं दे रही है। तपकारा निवासी प्रदीप केसरी कहते हैं कि तोरपा और रनिया प्रखंड के पर्यटन स्थलों में सुविधा के अभाव में लोग कम आते है। उन्होंने कहा कि किसी भी पिकनिक स्पॉट में जाने के लिए अच्छी पड़क तक नहीं है। यदि आवागमन की सुविधा हो तो सालों भर सैलानी यहां आयेंगे और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
उमड़ रही है सैलानियों की भीड़-
तोरपा प्रखंड के प्रमुख पर्यटन स्थल पेरवांघाघ, पांडुपूड़िंग तथा चंचलाघाघ में पर्यटक पहुंचने लगे है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में सैलानी यहां पहुंच रहे हैं। रविवार सहित अन्य छुट्टी के दिनों में सैलानियों की संख्या ज्यादा रहती है। फटका पंचायत में स्थित पेरवांघाघ प्रखंड का प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहां के जलप्रपात की सुंदरता देखते ही बनती है। हरे-भरे जंगलों के बीच कारो नदी पर स्थित यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। इस जलप्रपात के पास बोटिंग की व्यवस्था पर्यटक मित्रों द्वारा की जाती है। देसी तकनीक से लकड़ी का बोट बनाया जाता है, जिसमें बैठक सैलानी बोटिंग के रोमांच का लुत्फ उठाते हैं। जलप्रपात को देखने के लिऐ नदी की दूसरी तरफ जाने के लिए लकड़ी का अस्थाई पुल भी पर्यटक मित्रों द्वारा बनाया जाता है।
थर्मोकोल के प्रयोग पर है प्रतिबंध, पर्यटकों को मिलता है गार्बेज बैग-
पेरवांघाघ में थर्मोकोल का प्रयोग प्रतिबंधित है। इसकी जगह पर पत्ते से बने दोना पत्तल का प्रयोग सैलानी कर सकते हैं। दोना पत्तल की बिक्री पेरवां घाघ में की जाती है। गंदगी रोकने के लिए पर्यटक समितियों द्वारा कई कदम उठाये जाते हैं। पेरवांघाघ के पर्यटन मित्र इंद्र सिंह ने बताया कि पेरवां घाघ में गंदगी रोकने के लिए पर्यटन मित्र इस बार पर्यटकों को गारबेज बैग निःशुल्क देंगे। पार्किंग शुल्क के साथ ही यह बैग उन्हें निःशुल्क दिया जायेगा। पर्यटक इसमें अवशेष चीजों जमा कर एक निर्धारित जगह पर जमा करेंगे, ताकि गंदगी न फैले।
उन्होंने बताया कि हर वर्ष की भांति प्रतिदिन यहां की सफाई की जायेगी। तोरपा प्रखंड के पांडूपुड़िंग, चंचला घाघ, रनिया प्रखंड के उलूंग जलप्रपात, मुरहू प्रखंड के पंचघाघ जलप्रपात, रिमिक्स फॉल, रानी फॉल में सैलानियों की अच्छी खासी भीड़ जुटने लगी है। इससे स्थानीय लोग काफी खुश हैं।
चमोली जिले के पोखरी में आयोजित सात दिवसीय हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल खादी ग्रामोद्योग मेला शनिवार को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम और पुरस्कार वितरण के साथ संपन्न हो गया है। मेले में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व राज्य सभा सांसद महेंद्र भट्ट के साथ ही केदारनाथ के पूर्व विधायक मनोज रावत ने भी शिरकत की। मेले में पहुंचे राज्य सभा सांसद के अंतिम दिवस शनिवार को मुख्य अतिथि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्य सभा सांसद महेंद्र भट्ट एवं केदारनाथ के पूर्व विधायक मनोज रावत का मेला कमेटी की ओर से विधायक लखपत बुटोला ने अंग वस्त्र और स्मृति चिह्न देकर स्वागत किया। मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद ने कहा कि विधायक ने जिस तरह से मेले का आयोजन किया है वह सराहनीय है। मेले के आयोजन से संस्कृति का आदान प्रदान होता है। उन्होंने कहा मेलों में खेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से नयी प्रतिभाओं को उभरने का मौका मिलता है राज्य सांसद ने तहसील के अन्तर्गत वकीलों के भवन निर्माण को लेकर दस लाख की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि सड़कों को जोड़ने का में हर सम्भव प्रयास करूंगा। विधायक लखपत बुटोला ने कहा कि राज्य सभा सांसद ने राजनीतिक से ऊपर उठकर हमेशा इस क्षेत्र की जो सेवा की है वह सराहनीय है। उन्होने मेले में सहयोग के लिए जनप्रतिनिधि एवं महिलाओं युवाओं और शासन प्रशासन आभार व्यक्त किया। सैरा मालकोटी मोटर मार्ग निर्माण और पालिटेक्निक पोखरी भवन का सुधारीकरण की मांग की गई। कार्यक्रम में विभिन्न खेल प्रतियोगिता एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं मेला समिति के सदस्यों को उत्कृष्ट कार्य के लिए अंग वस्त्र और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर केदारनाथ के पूर्व विधायक मनोज रावत, भाजपा जिलाध्यक्ष रमेश मैखुरी, निवर्तमान नपं अध्यक्ष लक्ष्मी प्रसाद पंत आदि मौजूद थे।
