छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध त्रिवेणी संगम राजिम में ऐतिहासिक राजिम कुंभ कल्प मेला का राज्यपाल रमेन डेका ने बुधवार की देर शाम भव्य शुभारंभ किया। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलने वाले 15 दिवसीय इस मेले के उद्घाटन पर मुख्य मंच पर राज्यपाल और अन्य अतिथियों तथा संतों ने भगवान राजीव लोचन की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर आशीर्वाद लिया और प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की। महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के संगम स्थल पर आयोजित इस मेले में देशभर से साधु-संत, श्रद्धालु और पर्यटक बड़ी संख्या में पहुंचे हैं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि राजिम सदियों से संतों और भक्तों का केंद्र रहा है। यह कुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और परंपरा के संरक्षण का संदेश भी देता है। उन्होंने कहा, "राजिम का प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, हमारी आस्था का प्रमुख प्रतीक है। इसके अलावा, भगवान कुलेश्वर महादेव, रामचंद्र पंचेश्वर महादेव, भूतेश्वर महादेव, सोमेश्वर महादेव जैसे प्राचीन मंदिर हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का गहना हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला हमारे समृद्ध इतिहास को दर्शाती है।"
राज्यपाल ने यह भी कहा, "प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है, वहीं राजिम में महानदी, पैरी और सोंढूर का संगम है, इसीलिए इसे छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहा जाता है।" उन्होंने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन रहा है। राजिम कुंभ केवल अध्यात्म का नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास का भी केंद्र है। यह मेला प्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करेगा।
राज्यपाल ने शास्त्रों में माघ मास को पुण्य माह मानते हुए कहा कि सदियों से त्रिवेणी संगम में स्नान की परंपरा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ में महामाया मंदिर, बम्लेश्वरी माता, दंतेश्वरी माई, मडकू आइसलैंड जैसे कई ऐतिहासिक और धार्मिक केंद्र हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं।
उन्होंने संतों के आशीर्वाद का महत्व बताते हुए कहा कि जहां संतों के चरण पड़ते हैं, वह भूमि स्वयं पवित्र हो जाती है। उनके आशीर्वाद से समाज में ज्ञान, समरसता और सकारात्मक ऊर्जा फैलती है। संतों का जीवन हमेशा परोपकार और मानवता की सेवा के लिए समर्पित रहता है, और उनके प्रभाव से कई जीवन बदलते हैं, जैसे वाल्मीकि, अजामिल और अंगुलिमाल के उदाहरणों से सिद्ध है।
राज्यपाल ने सभी श्रद्धालुओं और पर्यटकों से हमारी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का आह्वान किया, क्योंकि यह हमारी पहचान है और इसे संरक्षित करना हमारा दायित्व है।
शुभारंभ कार्यक्रम में दंडी स्वामी डॉ. इंदुभवानंद जी महाराज, महंत साध्वी प्रज्ञा भारती जी, बालयोगेश्वर बालयोगी रामबालक दास महाराज सहित कई प्रमुख साधु-संत भी उपस्थित रहे। यह आयोजन छत्तीसगढ़ सरकार, धर्मस्व विभाग, पर्यटन मंडल और स्थानीय प्रशासन की देखरेख में हो रहा है, और इसमें लाखों श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है।