श्रीलंका में आज से वार्षिक कटारगामा एसाला महोत्सव का शुभारंभ ध्वजारोहण समारोह के साथ हो रहा है। यह बहु-धार्मिक त्योहार श्रीलंका के सबसे पवित्र आयोजनों में से एक माना जाता है, जिसमें हज़ारों श्रद्धालु कई सप्ताह की कठिन पदयात्रा के बाद भाग लेते हैं। इनमें से कई भक्त श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र जैसे जाफना से लगभग 500 किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर दुर्गम इलाकों से होते हुए कटारगामा पहुंचते हैं।
यह महोत्सव हिंदू, बौद्ध और मुस्लिम समुदायों द्वारा समान श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। मुख्य मंदिर महा देवल, हिंदू युद्ध देवता स्कंद (कार्तिकेय) को समर्पित है, जिन्हें छह सिर, बारह भुजाएं और दो पत्नियों के रूप में वर्णित किया जाता है। बौद्ध अनुयायी स्कंद को कटारगामा देवियो के रूप में पूजते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय का मानना है कि यह स्थल हजरत खिज्र से जुड़ा हुआ है।
त्योहार की प्रमुख झांकी महा पराहेरा (भव्य जुलूस) 10 जुलाई को निकाली जाएगी, जबकि अग्नि अनुष्ठान सहित विशेष पराहारा समारोह 7 जुलाई को आयोजित किया जाएगा। यह उत्सव भारत और श्रीलंका के सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंधों का प्रतीक भी है।
श्रीलंका में कटारगामा एसाला महोत्सव (Kataragama Esala Festival) एक बहुत ही महत्वपूर्ण और रंगारंग वार्षिक उत्सव है। यह उत्सव श्रीलंका के दक्षिणी भाग में स्थित कटारगामा के पवित्र स्थल पर मनाया जाता है।
महत्व:
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धार्मिक महत्व: यह महोत्सव विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें बौद्ध, हिंदू, मुस्लिम और वेद्दा (स्थानीय आदिवासी) समुदाय शामिल हैं। वे सभी कटारगामा देवी-देवताओं की पूजा करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां आते हैं।
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सांस्कृतिक महत्व: यह श्रीलंका की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। इसमें पारंपरिक नृत्य, संगीत, और रंगारंग जुलूस होते हैं।
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एकता का प्रतीक: यह उत्सव विभिन्न समुदायों के बीच एकता और सद्भाव को बढ़ावा देता है, क्योंकि सभी धर्मों के लोग एक साथ मिलकर इस महोत्सव को मनाते हैं।
उत्सव की विशेषताएँ:
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पद यात्रा (पदयात्रा): महोत्सव से पहले, कई भक्त श्रीलंका के उत्तरी प्रायद्वीप में जाफना जैसे सुदूर स्थानों से पैदल ही कटारगामा तक की लंबी और कठिन यात्रा करते हैं। यह यात्रा सैकड़ों किलोमीटर लंबी हो सकती है।
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जुलूस (पेराहेरा): महोत्सव के दौरान कई शानदार जुलूस निकाले जाते हैं, जिनमें सजे-धजे हाथी, पारंपरिक नर्तक, संगीतकार और मशालें शामिल होती हैं।
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अनुष्ठान: विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-अर्चना की जाती है।
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अग्नि-चलना (फायर-वॉकिंग): कुछ भक्त अग्नि-चलने जैसे कठोर अनुष्ठानों में भी भाग लेते हैं, जिसे अपनी आस्था और भक्ति को प्रदर्शित करने का एक तरीका माना जाता है।
कब मनाया जाता है?
कटारगामा एसाला महोत्सव आमतौर पर जुलाई या अगस्त के महीनों में पूर्णिमा के दिन से शुरू होकर कई दिनों तक चलता है। इसकी सटीक तारीखें हर साल चंद्र कैलेंडर के अनुसार बदलती रहती हैं।
यह श्रीलंका के सबसे लोकप्रिय और देखे जाने वाले त्योहारों में से एक है, जो देश भर से और विदेशों से हजारों आगंतुकों को आकर्षित करता है।