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सोपान- एक समीक्षा

Date : 17-Sep-2022

 

महाकवि डाॅ हरिवंशराय बच्चन

 

 

बीसवीं सदी के प्रख्यात हिन्दी कवि स्व. डाॅ हरिवंशराय बच्चन का जन्म 26 नवंबर 1906 को प्रयागराज (इलाहाबाद)  में श्री प्रताप नारायण श्रीवास्तव व श्रीमती सरस्वती देवी श्रीवास्तव के घर हुआ था। उनकी शाला स्तर की पढ़ाई इलाहाबाद की विभिन्न शालाओं में हुई थी इसके पश्चात् उन्होने शासकीय कालेज इलाहाबाद, इलाहाबाद विश्वविद्यालय व काशी विश्वविद्यालय मे अध्ययन किया। उनका विवाह 1926 में सुश्री श्यामादेवी के साथ हुआ। वे 1926 मे उनका साथ छोड़ स्वर्ग सिधार गयी। 1949 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक थे। 1959 मे उन्होने सुश्री तेजी सूरी के साथ दूसरी बार विवाह किया। 1952 से 1954 तक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। स्वदेश लौटने के पश्चात् उन्होने एक वर्श तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। कुछ समय तक इलाहाबाद आकाशवाणी में कार्य किया। 1955 मंे वे विदेश मंत्रालय भारत सरकार में हिन्दी विशेषज्ञ नियुक्त हुये। शासकीय कार्यों में अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी के प्रयोग हेतु वे कार्यरत रहे।   साहित्य मे उन्होने श्रीवास्तव के स्थान पर बच्चन लगाया। उन्होने एम.ए. व पी.एच.डी. अंग्रेजी मे की थी किन्तु साहित्य सृजन हिन्दी में किया। 1932 मे उनका प्रथम कविता संग्रह “तेरा हार” प्रकाशित हुआ था। इस कविता संग्रह में उनकी प्रारंभिक कविताये संग्रहित हैै। उनकी प्रारंभिक कविता उपवन की पंक्तियाँ देखिए।

 

 माली उपवन का खोलद्वार।

बहु तरूबर हवज से फहराना।

 बहु पत्र-पत्रो के लहराना।

 

 

 पुश्पों के तोरण हराना।

 

 यह उपवन दिखना एक बार। 

 

माली उपवन का खोलद्वार।

 

 कोकिल के कूजन से कूजिन,

 

 

म्रमरों के गुंजन से सूंजित,

 

 

 मधुक्रष्तु के सालों से सज्ज्ति

 

 

यह उपवन दिखना एक बार।

 

 

 सन् 1967 में उनकी कविता मधुषाला प्रदर्षित हुई। इस कविता ने उनकी ख्याति मेंचार चांद लगा दिये। यह कविता पूरे देष में पसंद की गई। इसकी कुछ पंक्तियाँ निम्न है।

 

 

 मदिरायाले जाने को घर से ,

 

 

 चलता है पीने

 

किस पथ से जाऊँ असभंव

 

 

 में है वह भोलाभला

 

 

अलग-अलग पथ बतालाने सब

 

 

पर मैं यह बतलाता हूँ

 

 

यह पकड़ एक चरण-चरण

 

 

वा जायेगा मधुषाला।

 

 

 मधुषाला से उनका आषय लक्ष्य से है। उनकी मदिरा आषा का पुंज है। ब्रिट्रिष भारत में स्वत्रंता  आंदोलन की अग्नि सर्व प्रज्जवलित हो रही थी। क्रांतिकारी दल सषस्त्रा क्रांति में विष्वास रखने थे। गांधी जी पर गोलियां चलाकर उनकी नृषंस हत्या कर दी।  बच्चन जी ने अपनी न्यथा सूत्र की माला व खादी के फूल में व्यक्त की।

 

 

सूत की माला की कुछ पंक्तियाँ देखिये।

 

पड़ गया सूर्य क्या ठंडा हिम के पात्ते से

 

 

क्या बैह गया गिरि मे

 

 प्रभु पाहि देष प्रभुषहि जाति स्त्रुर के मन को

 

 

अपने मुँह में

 

 

लघु नरक कीट ने

 

 

लिया दवा  ।

 

 

खारी के फूल की कुछ पंक्तियाँ देखिये।

 

 

 वह जगा क्या उध्र्व उन्नति पथ हुआ

 

 

 आलोक का आधार

 

 

वह जगा क्या मानवों का स्वर्ग से

 

 

उश्कर किया आव्हान

 

 

 हो गया क्या देष के

 

 

 सबसे सुनहारे दीप का निर्माण।

 

 

 उसकी प्रारंभिक रचनाओं का पहला और दूसरा भाग 1943 में हुआ। तीसरा भाग 1946 में प्रकाषित हुआ था। कविता  समुह में उनकी 1958-60 में रचित कवितायें सग्रहित्त है।

 

 

 चार खैमें चैंसठ खूटे में उनकी 1960-62 में रचित कवितायें संग्राहित है।

 

 

 उनके अन्य कविता संग्रह पुण्य पत्रिका (1952),घर के इधर-उधर (1956), मिलन यामिनी (1951), संभाग का काल(1946), हत्नाहत्न (1946) ,समहंगी (1951) ,आकुल अंतर (1943) एकांत संगीत (1965) ,निषा निमंत्रण (1965),  मधुषाला  (1964),  मधुबाला (1936) , मधुकलष (1939),  दो चटानें (1965)  हैं। चार खेने चैसठ खूँटे  की एक कविता मीतरी काँटा की कुछ  पंक्तिया निम्न है।

 

 

   मीनटी काँटे उगे है

 

 

 और मीतर चुअरहे हैं

 

 

 और मीतर ही पड़ेगा दर्द सहना,

 

 

 दूसरों से व्यर्थ कहना।

 

 

यह कविता व्याख्या सहित 1961 में आकाषवाणी के दिल्ली केन्द्र  से प्रसारित हुई थी। उन्होंने सपादन न अनुवाद भी किया था। आज के लोकप्रिय कवि ‘‘ सुमित्रानंदन पंत’’ उनका संपादित ग्रन्थ  है। इस ग्रंथ का प्रकाषन 1962 में हुआ था। चैंसठ सूखी कविताओं का उन्होंने हिन्दी में अनुवाद किया था, इसका प्रकाषन 1964 में हुआ। रवैयान की मधुषाला व उमर रवैयाम की रवाइयाँ इन दोनों कृतियों का अनुवाद उन्होंने हिन्दी में किया। आज के लोकप्रिय कवि ‘‘हरिवंष राय बच्चन‘‘ चंद्रगुप्त विद्यालंकार द्वारा संपादिन पुस्तक है। कवियों में सौ संत सुमित्रानंदन पंत उनका समीसा ग्रन्थ है। अनिमन सोपान (1964) में की अवीध में उनके द्वारा रचित स्त्रोत कविताओं का संकग्न है। 1966 में उन्हें संसद के उच्च सदन राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। 1962 में उन्हें  भारत सरकार द्वारा पद्मविभूशण से सम्मानित किया गया। उन्हें प्रदिषिंक राश्ट्रीय व अंर्तराश्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कार मिले। पोलैंड के ब्रोकला षहर में एक चैक का नामकरण उनके नाम पर (हरिवंष राय बच्चन चैक) किया गया है। प्रसिद्ध कवि सुमित्रा नंदन पंत उन्हें पुषवन मानते थे। उनके कविता संग्रह अभिमन सोपान की भूमिका सुमित्रा नंदन पंत जी ने लिखी है। पंत जी के अनुसार बच्चन के बिना सही बोली के कारण का एक बहुत बड़ा अंतरग अंग अधूरा रह जाता ।

 
 

 उन्होनें हम लोगों के घर चलने को एक रिक्षे वाले से कहा। रिक्षा वाला मेरे पितामह को जानता था। वह बच्चन जी को हम लोगों के घर छोड़ गये। स्टेषन पर लोग उन्हें खोज रहे थे। उनके न मिलने पर मेरे पितामह के पास आये। वहाँ बच्चन जी मेरे पितामह से बातें कर रहे थे। उस समय भारतेन्दु साहित्य समिति के प्रदान सचिव स्व पं. द्वाविका प्रसाद तिवारी ‘‘विपु‘‘ न समिति के अन्य सदस्य बच्चन जी के स्वगत हेतु उपस्थित थे। कल्यकान में मुझे उनके  स्वगतका अवसर मिला। उन क्षणों की स्मृति आज भी मेरे जेहन में है। मेरे पितामह के पांडनो के अषालवास पर आधारित महाकव्य को उन्होनें द्विवेदी युग की अविधा षैली में लिखा गया दोशरहित काण्य बतलाया था। जीवन के अंतिम दिनों में अपने कहे पुत्र श्री अभिताभ बच्चन (बालीबुड स्टार) के साथ मुम्बई में थे। 15 जनवरी 2002 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

 
 
लेखक -सतेंद्र तिवारी  
 

 

 
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