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पाकिस्‍तान से आए शरणार्थी हिन्‍दुओं पर रार , उन रोहिंग्‍याओं-बांग्‍लादेशियों का क्‍या करें जो जत्‍थों में आ रहे ?

Date : 09-Mar-2024
 
नई दिल्‍ली । देश की राजधानी दिल्‍ली  के मजनू का टीला इलाके में पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों की बस्ती में रहने वाले लोगों को भले ही कोर्ट से राहत मिल गई है और इन शरणार्थियों के घर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा फिलहाल नहीं तोड़े जा रहे हैं, किंतु इस मुद्दे ने एक बार फिर देश देश के बहुसंख्‍यक समाज को यह सोचने पर विवश किया है कि आखिर पाकिस्‍तान में हो रहे हिन्‍दू अत्‍याचार पर यहां सनातन धर्म को माननेवाले कहां जाएं ? अपने जीवन की रक्षा के लिए किस देश में शरण लेवें?, जबकि भारत के विभाजन ने समय जो दोनों देशों के बीच पालन करने के लिए आपसी सहमति बनी थी, उस पर तो अमल नहीं हुआ उल्‍टा बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज को ही सबसे अधिक आर्थ‍िक, सामाजिक और जीवन की हानि उठानी पड़ी थी। आज विभाजन को वर्षों बीत जाने के बाद भी विभाजन के दंश को झेलने के लिए  पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश का हिन्‍दू मजबूर हैं। 
यदि इस दिल्‍ली प्रकरण को समझें तो इसमें मजनू का टीला इलाके में रह रहे पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों की बस्ती को हटाने के लिए डीडीए ने अपनी ओर से इस बस्‍ती में रहनेवालों को एक नोटिस दिया था। जिसके कारण से यहां रहने वाले लोग बहुत चिंतित हो उठे, कि वे आखिर कहां जाएंगे? इसके बाद यह लोग न्‍यायालय की शरण में गए।  जहां से उन्‍हें फिलहाल राहत मिली है । 
इस संबंध में दिल्‍ली के उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से एक प्रेस रिलीज जारी करते हुए कहा गया, "मजनू का टीला में तोड़फोड़ के मुद्दे को लेकर मीडिया में जो मुद्दा उठाया गया है, वह क्षेत्र यमुना बाढ़ क्षेत्र के अंतर्गत आता है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अपने आदेश 17.10.2019 में OA NO. 622/2019 में निर्देश दिया है कि नदी के बाढ़ के मैदानों पर कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।  क्योंकि इस तरह के कब्जे से नदी की पारिस्थितिकी को नुकसान हो सकता है।  29 जनवरी 2024 के एक आदेश में एनजीटी ने कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय देते हुए गैर-अनुपालन के लिए डीडीए पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसमें विफल रहने पर वीसी डीडीए को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया गया था।  हालांकि, अभी किसी को हटाने की कार्रवाई को स्थगित कर दिया गया है।"
यहां एक बार को ठीक है कि किसी तरह से इन पाकिस्‍तान से आए हिन्‍दू शरणार्थ‍ियों को दिल्‍ली में राहत मिल गई। किंतु इसके साथ एक बड़ा प्रश्‍न सामने खड़ा है कि जो हिन्‍दू शरणार्थी हैं, उनके तो घर तोड़े जाने तक के आज आदेश निकाले जा रहे हैं लेकिन उनका क्‍या ? जोकि दूसरी तरफ लाखों नहीं बल्‍कि कहना चाहिए कि संख्‍या के अनुमान में अब तक करोड़ों तक पहुंच गए हैं, इन रोहिंग्‍या और बांग्‍लादेशी मुस्‍लिम घुसपैठियों का क्‍या किया जाए? 
आज भारत का कोई राज्‍य नहीं बचा, जहां इनकी घुसपैठ नहीं हुई है । इन पर किसी राज्‍य सरकार का कोई दबाव नहीं दिखता है।  दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात (नूह), उत्‍तराखण्‍ड के हल्‍द्वानी, बनभूलपुरा इलाके में हुए दंगों को अभी बहुत समय नहीं बीता है, इस हिंसा में रोहिंग्‍या मुसलमानों और अवैध बांग्‍लादेशी घुसपैठियों के हाथ होने की बात सामने आ चुकी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बनभूलपुरा इलाके में तकरीबन 5,000 रोहिंग्‍या मुसलमान, अवैध बांग्‍लादेशी और अन्‍य बाहरी लोग रहते हैं। बांग्लादेश के रास्ते भारत में दाखिल हुए रोहिंग्याओं ने नेपाल के बाद भारत के मैदानी और पहाड़ दोनों ही स्‍थानों पर अपनी अवैध बस्‍तियां बनाना जारी रखा है।  दलालों के माध्यम से ये हल्द्वानी एवं ऊधम सिंह नगर के रास्ते उत्तराखंड के पूरे कुमाऊं मंडल में पहुंच गए हैं। 

हरियाणा का भी हाल इसी प्रकार का है । मेवात में लोग इन रोहिंग्या मुसलमानों के शरणदाता बन गए हैं। केंद्र की तर्ज पर हरियाणा सरकार भी हालांकि इन रोहिंग्या मुसलमानों को प्रदेश में नहीं रहने देने के हक में है और बनाए जा रहे परिवार पहचान पत्रों के जरिये उनकी पहचान करने के कार्य में जुटी है, किंतु ये हैं कि स्‍थानीय कुछ मुसलमानों के माध्‍यम से अपनी जनसंख्‍या लगातार बढ़ाते जा रहे हैं । 

सवाल इन दो राज्‍यों में विदेशी घुसपैठ का नहीं है, आज सवाल देश के हर उस राज्‍य का है जहां ये विदेशी रोहिंग्‍याई और बांग्‍लादेशी मुसलमान अवैध रूप से पहुंचकर स्‍थानीय नागरिक की रोजी-रोटी खा रहे हैं और उन्‍हें बेरोजगार बना रहे हैं । सवाल यह भी है कि क्‍या भारत कोई शरण स्‍थली है, जहां जब जिसका मन करें वह अवैध रूप से आकर बस जाए? अब तक उत्‍तराखण्‍ड और हरियाणा की तरह ही इससे पूर्व पश्चिम बंगाल, उत्‍तर प्रदेश, बिहार, झारखण्‍ड, त्रिपुरा, राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, महाराष्‍ट्र, केरल, गुजरात, आंध्रप्रदेश, छत्‍तीसगढ़, दिल्‍ली, जम्‍मू-कश्‍मीर, कर्नाटक समेत अन्‍य कई राज्‍यों में भी हिंसा, बालात्‍कार, लूट, ड्रग सप्‍लाई जैसे कई अपराधिक गतिविधियों में अनेकों बार इनकी संलिप्‍तता सामने आती रही है और आज भी आ रही है। लेकिन ये हैं कि बिना किसी कानून के भय के यह आराम से देश के अलग-अलग राज्‍यों में रह रहे हैं। 

इस संबंध में विश्‍वहिन्‍दू परिषद कई बार केंद्र एवं राज्‍य सरकारों से मांग कर चुका है कि अवैध घुसपैठियों की पहचान करके सरकार उन्‍हें भारत से बारह का रास्‍ता दिखाए। लेकिन बड़ा प्रश्‍न है, क्‍या इन घुसपैठियों को भारत से बाहर निकालना इतना आसान है? यदि होता तो इन्‍हें अभी तक बाहर नहीं निकाल दिया जाता! फिर भी यह एक पक्ष है, वहीं दूसरी ओर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की मांग है, सभी राज्य अवैध रूप से बसे बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों की पहचान कर उन्हें वापस भेंजे।

विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल कहते हैं कि अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए दिल्ली, पश्चिम बंगाल समेत देश के विभिन्न हिस्सों में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों को अवैध तरीके से भाजपा विरोधी दल बसाने में लगातार मदद कर रहे हैं। ऐसे में देश के सभी राज्यों को अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने के लिए व्यापक कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए, क्‍योंकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है। 

उन्‍होंने कहा कि हाल ही में केंद्र सरकार ने भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के सामने म्यांमार की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए स्‍पष्‍ट तौर पर बताया, कि कैसे म्यांमार में खराब हालात का असर भारत में पड़ रहा है। 'म्यांमार से आए घुसपैठियों के चलते पूर्वोत्तर राज्यों में मादक पदार्थों की तस्करी और मानव तस्करी में भी वृद्धि हो रही है, भारत इस स्थिति से निपटने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।' लेकिन क्‍या केंद्र सरकार घुसपैठ से बिना राज्‍य सरकार के सहयोग के निपट सकती है, जबकि कानून राज्‍य का विषय है! इसलिए आज यह समस्‍या की गंभीरता अधिक है। रोहिंग्‍या और बांग्‍लादेशी भारत में कई रास्‍तों से होकर अंदर आ रहे हैं । इन्‍हें तुरंत राज्‍य सरकारें सख्‍ती से रोकें। 

बंसल ने कहा, हम मांग करते हैं कि सभी राज्य सरकारें घुसपैठ-रोधी प्रकोष्ठ का गठन करें और समयबद्ध तरीके उनके अधिकारक्षेत्र में पाए जानेवाले हर जिले से इन बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों की पहचान कर उन्‍हें उनके मूल देश में वापस भेजें ।  इस संबंध में वरिष्‍ठ पत्रकार अ‍रविन्‍द राय का कहना है कि बांग्‍लादेश से लगे भारतीय क्षेत्र में आज बहुत बड़ा जनसंख्‍या का परिवर्तन देखने को मिलता है, जो जिले कभी 1947 में देश विभाजन के बाद पाकिस्तान अधीनस्थ पूर्वी बंगाल और उसके बाद 1971 में बांग्लादेश अलग राष्ट्र बनने तक हिन्‍दू बहुल थे, आज वे पूरी तरह से मुस्‍लिम          जनसंख्‍यावाले हो चुके हैं। यहां से हिन्‍दू पलायन करने को मजबूर हैं और दूसरी तरफ बांग्‍लादेश से रोहिंग्‍याओं और मुसलमानों का भारत आना जारी है। आज यहां की डेमोग्राफी पूरी तरह से बदल चुकी है। 

राय कहते हैं कि एक बार भारत में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी पूरे लोकल सपोर्ट के साथ आगे बढ़ते हैं, वे भारतीय नागरिकता के प्रमाण-पत्र जैसे कि आधार कार्ड, वोटर कार्ड और पैन कार्ड तक बनवा लेते हैं। इनके बैंकों में अकाउंट तक खुल जाते हैं, जिसके बाद पुलिस एवं प्रशासन के लिए भी कई बार उन्‍हें बांग्‍लादेशी घुसपैठिया ठहराना मुश्‍किल होता है । एक बड़ा कारण भारत-बांग्लादेश सीमा पर काफी बड़े इलाकों का खुला होना भी है। दक्षिण बंगाल में भारत-बांग्लादेश की 913 किलोमीटर की लम्‍बी सीमा में से 290 किलोमीटर पर अभी तक कोई भी रोक की व्‍यवस्‍था नहीं है। केंद्र सरकार के कई बार मांगे जाने के बाद भी अभी ममता सरकार ने जमीन मुहैया नहीं कराई है। इन इलाकों में नदी वाला क्षेत्र लगभग 372 किलोमीटर का है जिसमें कई जगह कोई रोक की व्‍यवस्‍था नहीं है। जिसका पूरा फायदा घुसपैठिए उठा रहे हैं। त्रिपुरा के रास्‍ते से भी घुसपैठ हो रही है। बिहार, नेपाल-यूपी बॉर्डर, सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन्स नेक) के रास्‍ते से भी घुसपैठिए भारत आ रहे हैं । 

वरिष्‍ठ पत्रकार अरविन्‍द राय का कहना है कि असम में जिस तरह से डॉ. हिमंत बिश्व शर्मा  सरकार बांग्‍लादेशियों को  चिन्‍हित कर उन्‍हें वापिस भेजने का काम कर रही है, इसी प्रकार का कार्य आज बंगाल में ममता दीदी एवं अन्‍य राज्‍य सरकारों द्वारा किए जाने की आवश्‍यकता है। यदि वोट बैंक की राजनीति और तुष्‍टीकरण का खेल चलता रहेगा तो आनेवाले समय में भारत के लिए सीमावर्ती राज्‍य बहुत अधिक चुनौतियां पैदा करेंगे और जिसमें कि सबसे अधिक नुकसान भारत का ही होगा। 
दूसरी ओर अधिवक्‍ता आशुतोष कुमार झा इस पूरे मामले को एक दूसरे नजरिए से देखते हैं, उनका कहना है कि आज हिन्‍दू शरणार्थियों को लेकर जो विवाद आए दिन पैदा होता है  वह होना ही नहीं चाहिए। क्‍योंकि भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 (Indian Independence Act 1947) युनाइटेड किंगडम की पार्लियामेंट द्वारा पारित वह विधान है जिसके अनुसार ब्रिटेन शासित भारत को दो भागों (भारत तथा पाकिस्तान) में विभाजन किया गया था। यह अधिनियम 4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में प्रस्‍तुत हुआ और 18 जुलाई 1947 को स्वीकृत हुआ और 15 अगस्त 1947 को भारत दो भागों में बंट गया। इसमें खास बात यह है कि धर्म के आधार पर बंटवारा अविभाजित भारत में रहनेवाले मुस्‍लिम नेताओं (मुस्‍लिम लीग) ने चाहा था। 
एडवोकेट आशुतोष कहते हैं कि पहले दिन से ही यह स्‍पष्‍ट था कि विभाजन में पाकिस्‍तान मुस्‍लिम राष्‍ट्र होगा और भारत हिन्‍दू राष्‍ट्र। सभी रियासतों को यह छूट दी गई थी कि वे किसके साथ जाना चाहती हैं। यह अलग बात है कि भारत ने पंथ निरपेक्षता अपने लिए चुनी, वह पाकिस्‍तान की तरह एक मजहबी राज्‍य नहीं बना। लेकिन हमें यह समझना होगा कि भारत के विभाजन में जो मूल कारण है वह धर्म के आधार पर दो विचारों का एक दूसरे के विरोधी होना रहा है। जिसमें से      बहुसंख्‍यक हिन्‍दुओं ने भारत को अपना राष्‍ट्र माना । इसलिए भले ही अविभाजित भारत के लोग आगे पाकिस्‍तान में रह गए हों, उनकी मूल एवं पितृभूमि हमेशा से भारत ही रहेगा। 

एडवोकेट झा का कहना है, ऐसे में यदि वे इस्‍लामिक प्रताड़ना से तंग आकर पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश से हिन्‍दू भारत में आते हैं तो उन्‍हें वे सभी अधिकार दिए जाने चाहिए जोकि उनका अन्‍य भारतवासी की तरह ही मौलिक हक है, जबकि यह बात इस्‍लाम को माननेवाले मुसलमानों पर लागू नहीं होगी । क्‍यों कि वह तो पहले ही धर्म के आधार पर भारत के दो टुकड़े करवा चुके हैं। पाकिस्‍तान और आज का बांग्‍लादेश उसी का ही तो परिणाम है। इसलिए भारत से हर बांग्‍लादेशी, रोहिंग्‍या घुसपैठिया बाहर किया जाना चाहिए। यह भारतवासियों के रोजगार छीन रहे हैं और देश की अर्थव्‍यवस्‍था को कमजोर कर रहे हैं।
 
 
 
 
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