धनिया खचेडू की इस बंदर घुड़की को जानता था। उसने अपने साथियों से चाकू जेब में रखने को कहा और
बोला- "अरे ताऊ खचेडू, झगड़ा काहे का है। तू हमारा ताऊ है, इसलिए चोरी में एक हिस्सा तेरा भी सही... बोल मंजूर?"
खचेडू तो चाहता ही था हिस्सा लेना। अंधे को क्या चाहिए दो आंखें, बस वह मुस्करा दिया। चोरों की बात बन गई। जब खचेडू ने शर्त रखी कि वह भी उनके साथ चलेगा और मेहनत का हिस्सा लेगा। चोरों को उसे ले जाना ही पड़ा।
चोर दीवार कूदकर एक घर में घुसे। एक कमरे का ताला तोड़कर वे सामान ढूंढ़ रहे थे। खचेडू भी उनके साथ था। चोरों ने सोना, चांदी और सुंदर वस्त्रों की अपनी-अपनी गठरी बांध कर रख ली। खचेडू सोचने लगा कि सोना-चांदी रखने के लिए संदूक उसके घर में नहीं है।
उसने चोरों से कहा- "मैं तो अपने हिस्से में यह संदूक लूंगा। इस बड़े संदूक को उठाकर ले चलो।"
चोर आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे। धनिया ने चोरों से कहा- "भाइयो! इसकी बात नहीं मानी तो सारा माल हाथ से जाता रहेगा।"
चोर को अपनी गठरी की कम और खचेडू के संदूक की चिंता अधिक कर रहे थे। भागते-भागते वे एक वृक्ष के नीचे आ गए।
यह एक वट वृक्ष था। इसकी शाखाएं बहुत फैली हुई थीं। चोर थककर चूर हो गए थे। संदूक के बिना भी उनसे नहीं भागा जा रहा था। गांव के लोग लाठियां और टॉर्च लेकर उन्हें खेतों में ढूंढ़ते चले आ रहे थे। खचेडू उनके सामने दीवार बनकर खड़ा था।
धनिया ने सलाह दी "अब भागना कठिन है। हम इस वृक्ष पर चढ़ जाते हैं। जब गांव वाले चले जाएंगे, तब उतरकर - अपने घर भाग लेंगे।"
सबने धनिया की बात मानी, पर समस्या थी खचेडू का संदूक । खचेडू का संदूक देखकर गांव वालों को चोरों का पता चल जाएगा। चोरों को अपने साथ संदूक भी पेड़ पर चढ़ाना पड़ा। गांव वालों की टॉर्चे उसी ओर आ रही थीं। चारों चोर वट वृक्ष की डालियों में छिपकर बैठ गए। खचेडू एक बड़े गुद्दे पर रखे संदूक को पकड़कर बैठा था। टॉर्चे अब समीप आ गईं। यह क्या! खचेडू के खर्राटे शुरू हो गए। धनिया ने खचेडू को जगाया। खर्राटे बंद हुए। चोरों को चैन आया। गांव वाले चोरों को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते थक गए। वे भी उसी वट वृक्ष की नीचे पहुंचकर आराम करने लगे। और खचेडू फिर खर्राटे लेने लगा। खर्राटों की आवाज सुनकर एक ने कहा- "चोर यहीं कहीं हैं।"
धनिया ने खचेडू के बाल खींचकर उसे जगाया।
दूसरे गांव वाले ने कहा--"खर्राटा भूत का भी हो सकता है। मैंने सुना है कि इस पेड़ पर भूत रहता है।" भूत का नाम सुनकर गांव वालों के मन में डर पैदा हो गया।
खचेडू फिर सो गया। खर्राटे की आवाज फिर आई। उसी गांव वाले ने कहा- "हो-न-हो, पेड़ पर भूत सो रहा है। मुझे डर लग रहा है।"
इस बार धनिया को गुस्सा आ गया। उसने एक घूंसा खचेडू पर चलाया। घूंसा सोते हुए खचेडू की नाक पर लगा। वह जाग तो गया, परंतु उसे छींक आ गई। गांव वालों में हलचल मच गई। वे उठ खड़े हुए। उनमें से कुछ समझ रहे थे कि पेड़ पर भूत है।
गांव के प्रधान ने आवाज दी-"कौन है, कौन है, पेड़ पर?"