अवध से आरंभ हुआ था होलिकोत्सव : स्वरूप परिवर्तन के बाद भी उल्लास और सामाजिक समरसता का मूल संदेश यथावत
Date : 23-Mar-2024
होलिकाष्टक अवध से आरंभ हुआ था । अवध की होली लगभग डेढ़ माह चलती है । समय के साथ अवध की इस होली के बहुत स्वरूप बदले, मनाने का तरीका भी बदला किन्तु उत्सव की गरिमा उल्लास और सामाजिक समरसता का संदेश यथावत हैं ।लोक साहित्य में भले ब्रज की होली सर्वाधिक चर्चित और लोकप्रिय हो । लेकिन संसार में होली उत्सव का आरंभ अवध से हुआ था । अवध परिक्षेत्र में ही हरदोई है जहाँ देवि होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्निप्रवेश किया था । वहाँ प्रह्लाद कुण्ड बना है और प्रतिवर्ष मेला लगता है । हरदोई अवध राज्य का अंग रहा है । इतिहास में अवध ने बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं है । सीमाएँ भी घटी बढ़ी हैं। फिर भी आज के अवध क्षेत्र में 26 जिले आते हैं । हरदोई एक जिला केन्द्र है । हरदोई में नारायण के दो अवतार हुये । पहला भगवान नरसिंह के रूप में और दूसरा भगवान वामन के रूप में। दो अवतार के कारण क्षेत्र को "हरिद्वय" कहा गया । जो अपभ्रंश होकर नाम हरदोई हो गया । होलिकोत्सव भी यहीं से हुआ और यहाँ से आरंभ होकर संसार भर में फैला । इस उत्सव के विभिन्न आयाम हैं। इसका आरंभ आठ दिन पहले होलिकाष्टक से होता है । गाय के गोबर से मलरियाँ बनतीं हैं। और फाल्गुन पूर्णिमा को पूजन होता है । पूर्णिमा की शाम को पवित्र स्थान चयन करके एक दंड स्थापित करके पूजन करना होता है । यह स्थान घर के भीतर चौगान या ऑगन भी हो सकता है और बाहर सार्वजनिक स्थल भी ।फिर अग्नि प्रज्वलित करके गेहूँ की बालियाँ सेकीं जातीं हैं और पिछले आठ दिनों से घरों बन रहीं गोबर की मलरियाँ अग्निको समर्पित की जातीं हैं । फिर एक दूसरे को शुभ कामनाएँ देना, गले मिलना होता है । अगले दिन नृत्य गीत, चल समारोह, एक दूसरे के घर जाना, रंग डालना, गुलाल लगाना आदि । यह परंपरा पूरे संसार में एक समान है । हाँ कहीं कहीं होलिका अग्नि में नई आई फसल की बालियाँ सेकने और आठ दिन पहले से गाय के गोबर की मलरियाँ बनाने की परंपरा विलुप्त हो गई है । पर अवध के अधिकांश परिवारों में यह परंपरा अभी भी देखी जा सकती है ।
होलिकोत्सव में यह विभिन्न परंपराएँ और पूजन प्रक्रिया अतीत में घटीं विभिन्न घटनाओं का प्रतीक हैं और भविष्य में व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र निर्माण के लिये संदेश भी हैं ।
अतीत के आख्यानों में जहाँ तक दृष्टि जाती है होलिकोत्सव का विवरण मिलता है । वर्तमान सभ्यता के पहले आर्य सभ्यता के साहित्य में तो होली का विवरण है ही मोहन जोदड़ों की खुदाई कुछ चिन्ह ऐसे भी मिले हैं मानों एक दूसरे पर पानी फेका जा रहा है । लगता है यह होलिकोत्सव के ही प्रतीक चिन्ह हों । होली का वर्णन और विवरण हर युग साहित्य रचना में मिलती है । पुराणों में भी और श्रृंगार के संस्कृत साहित्य में भी । श्रीमद्भागवत के दशवें स्कंध में रास वर्णन मानो होलिकोत्सव के नृत्य का ही रूप है । हर्षचरित की प्रियदर्शिका, रत्नावली एवं कालिदास के कुमार संभवम् , मालविकाग्निमित्रम्, में होलिकोत्सव का उल्लेख आता है वहीं ऋतुसंहार में एक पूरा सर्ग ही 'वसन्तोत्सव' पर है। संस्कृत साहित्य में वसन्त के साथ होली की चर्चा है। हिन्दी साहित्य में भी चंद बरदाई, कवि विद्यापति, सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीराबाई, कबीर, बिहारी, केशव, घनानंद आदि आधिकांश कवियों का प्रिय विषय होली रहा है। भारत भ्रमण पर आने वालों के विवरण में भी होलिकोत्सव का उल्लेख है । इसमें चीनी यात्री ह्वैनसाँग और मध्य एशिया के अलबरूनी भी हैं। अंग्रेज लेखकों ने भी होली का पर्याप्त वर्णन किया है । महाकवि सूरदास ने वसन्त एवं होली पर 78 पद लिखे हैं। साहित्य की सभी प्रस्तुति में बसंत का पर्याय होली है और इसे अनुराग और प्रीति माना गया है । आगे चलकर यह सात्विक अनुराग का प्रतीक राधा कृष्ण के बीच खेली गई होली बनी । अनेक सूफी संतों और बहादुर शाह जफर शायरों ने भी होलीगीत लिखे हैं । आधुनिक हिन्दी साहित्य और फिल्मी गीतों में होली का पर्याप्त प्रस्तुतिकरण हुआ है ।
होलिकोत्सव अब भारत में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में भी मनाया जाता है । भारत के सभी पड़ौसी देशों नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, सुरीनाम, मारीशस, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, ट्ररीनाड आदि देशों के साथ अमेरिका, फ्रांस ब्रिटेन जर्मनी आदि देशों में भी प्रवासी भारतीय होलिकोत्सव मनाते हैं। काठमांडू में तो यह उत्सव एक सप्ताह तक चलता है । अनेक कैरिबियाई देशों में बिल्कुल भारत की भाँति हर्ष उल्लास और नृत्य गीतों के साथ यह होली उत्सव मनाया जाता है। यहाँ होली को फगुआ के नाम से जाना जाता है । इसकी शुरुआत करने वाले भारतीयों के वे पूर्वज हैं जो अंग्रेजीकाल में श्रमिकों के रूप में वहाँ ले जाय गये थे । विषमता और विपरीत परिस्थिति में उन लोगों ने अपनी त्यौहार परंपराएँ संजों कर रखीं और अपने त्यौहार अपने ढंग से मनाते हैं। वहाँ उनके द्वारा गाये जाने वाले गीत स्थानीय भाषा में तो हैं पर उनका मूल भाव वही है जो भारतीय होली गीतों का है । मारिशस, गुआना और सूरीनाम के महत्वपूर्ण त्यौहारों में होलिकोत्सव की गणना होती है । गुआना में होली के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है।
लेखक - रमेश शर्मा