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27 मार्च 1915 : सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी पंडित काशीराम का बलिदान

Date : 27-Mar-2024

 

गदरपार्टी के कोषाध्यक्ष रहे : सैनिकों से विद्रोह करने का आव्हान किया था 
 
पंडित काशीराम उन क्राँतिकारियों में एक थे जिन्होंने भारत और अमेरिका दोनों देशों में अंग्रेजों के विरुद्ध जन जाग्रति की और अंग्रेजी सेना में भारतीय सैनिकों से विद्रोह का आव्हान किया था । 
 
क्राँतिकारी पंडित काशीराम ऐसे बलिदानी हैं जिनका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे कम विवरण मिलता है । क्राँतिकारियों को फाँसी दिये जाने वाले राजनैतिक बंदियों की सूची में तो उनका नाम मिलता है पर पंजाब के जन मानस में उनकी स्मृति शून्य है । भारत में अंग्रेजों को बाहर करने केलिये बनाई गई गदर पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे । पंडित काशीराम हर दयाल और सोहन सिंह भकना से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी बने और गदर पार्टी के संस्थापक प्रमुख तीन सदस्यों में शामिल थे । वे गदर पार्टी के पहले उसके कोषाध्यक्ष थे । 
 
पंडित कांशीराम का जन्म  13 अक्टूबर 1883 को पंजाब के अंबाला में हुआ था । परिवार प्रतिष्ठित व्यवसायी था और स्वामी दयानन्द सरस्वती के संपर्क में था । वे छात्र जीवन में ही सामाजिक जाग्रति अभियान में जुड़ गये थे विशेषकर पिता के साथ आर्यसमाज के प्रवचन और अन्य आयोजनों में शामिल होते । उन्होने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और डाकघर में नौकरी कर ली । सरकारी नौकरी अवश्य की पर शासकीय कार्यालयों में अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारतीयों के साथ तिरस्कार पूर्ण व्यवहार से व्यथित रहते । वे कुछ दिन अंबाला में रहे और फिर दिल्ली स्थानांतरण हो गया । लेकिन यहाँ उनका मन न लगा । वे नौकरी छोड़कर अमेरिका चले गये । यहाँ वे सीधे क्रांतिकारी आँदोलन से जुड़े और अमेरिका में गठित 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ अमेरिका' और 'इंडियन इंडिपैंडेंट लीग' में शामिल हो गए। इस संगठन ने अमेरिका में रह रहे भारतीयों में स्वाभिमान जागरण और भारत को अंग्रेजों से मुक्ति का अभियान चलाया । भारत में क्राँतिकारी आँदोलन आरंभ करने केलिये 1913 में गदर पार्टी की स्थापना हुई पंडित कांशीराम इस ‘ग़दर पार्टी’ के पहले कोषाध्यक्ष बनाए गए।
 
यह वह समय था जब युरोप में प्रथम विश्व युद्ध के बादल घिर रहे थे । अमेरिका में रह रहे भारतीयों को अंग्रेजों से मुक्ति केलिये यह अवसर सबसे उपयुक्त लगा । इस उद्देश्य को लेकर अनेक भारतीय भारत लौटे । पंडित काशीराम भी 1914  में  भारत लौटे। यहाँ आकर उन्होंने ठेकेदारी आरंभ की । लेकिन यह ठेकेदारी दिखावे के लिये थी । उन्होने सैन्य सेवा के कार्यों का ठेका लिया । वे इस बहाने सैन्य छावनियों में संपर्क करके सेना में भारतीय सैनिकों की जाग्रति के काम में जुट गये । इसके साथ सीधे क्राँतिकारी आँदोलन आरंभ करने केलिये युवकों को संगठित करनै का काम भी आरंभ किया । इस आँदोलन को धन की आवश्यकता थी इसके लिये मोगा के सरकारी कोषागार लूटने की योजना बनाई किन्तु यह प्रयास असफल रहा । वहाँ हुई मुठभेड़ में एक इंस्पेक्टर सहित दो कर्मचारी मारे गए। पुलिस ने धरपकड़ की और सात लोग बंदी बनाये गए । मुकदमा चला एवं 27 मार्च, 1915 को लाहौर जेल में कांशीराम को फाँसी दे दी गई। गदरपार्टी के क्राँतिकारी आँदोलन में यह पहली फाँसी थी । 
शत शत नमन् ऐसे बलिदानी को


लेखक :- रमेश शर्मा
 
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