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किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

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चाणक्य नीति :- श्रेष्ठता को बचाएं

Date : 03-Apr-2024

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत|

 
आचार्य चाणक्य यहां क्रम से श्रेष्ठता को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को चाहिए कि कुल के लिए एक व्यक्ति को त्याग दें| ग्राम के लिए कुल को त्याग देना चाहिए| राज्य की रक्षा के लिए ग्राम को तथा आत्मरक्षा के लिए संसार को भी त्याग देना चाहिए|
 
आशय यह है कि यदि किसी एक व्यक्ति को त्याग देने से पूरे कुल-खानदान का भला हो रहा हो, तो उस व्यक्ति को त्याग देने में कोई बुराई नहीं है| यदि कुल को त्यागने से गाँव भर का भला होता है, तो कुल को भी त्याग देना चाहिए| इसी प्रकार यदि गाँव को त्यागने पर देश का भला हो, तो गाँव को भी त्याग देना चाहिए| किन्तु अपना जीवन सबसे बड़ा है | यदि अपनी रक्षा के लिए सारे संसार का भी त्याग करना पड़े, तो संसार का त्याग कर देना चाहिए| जान है, तो जहान है | यही उत्तम  कर्तव्य है | 
 
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