त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत|
आचार्य चाणक्य यहां क्रम से श्रेष्ठता को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को चाहिए कि कुल के लिए एक व्यक्ति को त्याग दें| ग्राम के लिए कुल को त्याग देना चाहिए| राज्य की रक्षा के लिए ग्राम को तथा आत्मरक्षा के लिए संसार को भी त्याग देना चाहिए|