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शक्तिशाली राष्ट्र की अवधारणा शक्तिशाली भारत के अग्रदूत - श्री गुरुजी

Date : 11-Jun-2024


श्री गुरुजी, माधव सदाशिव राव गोलवलकर शक्तिशाली भारत की अवधारणा के अद्भुत, उद्भट व अनुपम संवाहक थे। श्री गुरुजी के संदर्भ में ‘थे’ शब्द कहना सर्वथा अनुचित होगा, वे आज भी पराक्रमी भारत, ओजस्वी भारत, अजेय भारत, निर्भय भारत, संपन्न-समृद्ध-स्वस्थ भारत व राष्ट्रवाद भाव के झर-झर बहते निर्झर झरने बने हुए हैं। वे शक्तिशाली भारत के अग्रदूत, संवाहक, प्रणेता के रूप में आज भी हमारे मध्य हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के संदर्भ में शक्तिशाली भारत की अवधारणा के सबसे संवाहक- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पुस्तक “श्रीगुरूजी एक स्वयंसेवक” में लिखते हैं- “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने की थी, लेकिन इसे वैचारिक आधार द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवल ‘श्रीगुरुजी’ ने प्रदान किया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध, भारत छोड़ो आंदोलन, आजाद हिंद फौज और नेताजी का देश की आजादी में योगदान, भारत विभाजन, देश की आजादी, कश्मीर विलय, गांधी हत्या, देश का पहला आम चुनाव, चीन से भारत की हार, पाकिस्तान के साथ 1965 व 1971 की लड़ाई, भारत का इतिहास बदलने और बनाने वाली इन घटनाओं के महत्त्वपूर्ण काल में न केवल श्रीगुरुजी संघ के प्रमुख थे, बल्कि अपनी सक्रियता और विचारधारा से उन्होंने इन सबको प्रभावित भी किया था।” शक्तिशाली भारत की श्री गुरुजी की अवधारणा को अटल बिहारी वाजपेयी व नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी हुई कोई आधा दर्जन केंद्रीय सरकारों ने मात्र ही स्वीकार नहीं किया; अपितु, इस अवधारणा को उन्होंने अपना गीता-रामायण माना हुआ था।
शक्तिशाली राष्ट्र की गुरुजी की अवधारणा को स्वतंत्रता संघर्ष के मध्य ही कांग्रेस ने स्वतंत्रता के पश्चात बनी हुई जवाहरलाल नेहरू की सरकार एवं लालबहादुर शास्त्री की सरकारों ने भी स्वीकार किया है। यद्दपि नेहरू ने तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने व श्री गुरुजी को जेल में बंदी बनाने जैसा पाप भी किया था किंतु इसके बाद उन्होंने गोलवलकर गुरुजी का अभिनंदन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को वर्ष 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लेने हेतु आमंत्रित भी किया था।
वस्तुतः श्री गुरुजी के नेतृत्व काल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बढ़ती लोकप्रियता, स्वीकार्यता, मान्यता को देखकर जवाहर लाल नेहरू के मन में चिंता व कुटिलता के भाव आने लगे थे। नेहरू जिस प्रकार की छुद्र, अंग्रेज-मुस्लिम परस्त राजनीति किया करते थे, श्री गुरुजी उसके अत्यंत विरुद्ध थे। नेहरू जी ने संघ व श्रीगुरुजी के प्रति चिंता, आशंका व स्वयं हेतु खतरे के भाव से ही ग्रसित होकर ही गांधी जी की हत्या के बाद श्री गुरुजी को गिरफ्तार कर आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। गांधी जी की के ठीक एक दिन पूर्व के नेहरू के एक भाषण में भी है, जिसमें नेहरू ने संघ को कुचलने की बात कही थी। नेहरू का संघ को कुचलने वाला भाषण देना, चौबीस घंटे के भीतर गांधी जी की हत्या होना और संघ पर प्रतिबंध लगाकर श्रीगुरूजी को गिरफ्तार कर लेना, एक अनसुलझी गुत्थी ही है।
विकसित भारत की नेहरू की परिकल्पना पर श्रीगुरूजी का “शक्तिशाली भारत” की योजना कल्पक अत्यंत भारी व परिणामकारी है। तब श्री गुरुजी की यह योजना, नेहरू की, अंग्रेज व मुस्लिम परस्त नीतियों पर बहुत भारी पड़ती हुई दिखने लगी थी। सार्वजनिक चौक-चौराहों, सड़क-संसद, मठ-मंदिर, व्यावसायिक परिसरों आदि सर्वत्र स्थानों पर श्री गुरुजी की “शक्तिशाली भारत” की योजना की चर्चा में भारतीय न केवल रुचि लेने लगे थे, अपितु, श्रीगुरूजी के प्रति भारतीयों में श्रद्धा का वातावरण बनता जा रहा था। यह सब तब था जबकि, श्रीगुरूजी का प्रत्यक्ष राजनीति से कतई कोई सीधा संबंध नहीं था।
रीगुरूजी के कृतित्व को नेहरू जी व भारत की समूची जनता ने भारत-कश्मीर विलय में उनकी भूमिका से देख लिया था। प्रसिद्ध लेखक, संदीप बोमजाई “डिसइक्यिलीब्रियम: वेन गोलवलकर रेसक्यूड हरि सिंह” में लिखते हैं, “सरदार पटेल के कहने पर श्रीगुरूजी ने 18 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह से भेंट की और विलय को संभव बनाया।” महाराजा हरिसिंह ने गोलवलकर से कहा, “मेरा राज्य पूरी तरह से पाकिस्तान पर निर्भर है। कश्मीर से बाहर जाने वाले सभी रास्ते रावलपिंडी और सियालकोट से गुजरते हैं। मेरा हवाई अड्डा लाहौर है। मैं भारत से किस तरह संबंध रख सकता हूं।” 
श्री गुरुजी ने उनसे कहा, “आप हिंदू राजा हैं। पाकिस्तान के साथ विलय के बाद आपकी हिंदू प्रजा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा। सही है कि आपका भारत के साथ इंफ्रा विकसित नहीं है किंतु इसे बनाया जा सकता है। कश्मीर के हित में अच्छा यही होगा कि आप भारत के साथ अपने राज्य का विलय कर लें।” आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर में जो इंफ्रा निर्मित कर रहे हैं, वह श्री गुरुजी के इन विचारों का क्रियान्वयन ही है। अरुण भटनागर की पुस्तक, “इंडिया: शेडिंग द पास्ट, एम्ब्रेसिंग द फ्यूचर, 1906-2017” में भी श्रीगुरुजी की कश्मीर विलय में भूमिका, का उल्लेख है।
स्वातंत्र्योत्तर भारत में तो फिर जैसे श्रीगुरुजी की “शक्तिशाली भारत” की अवधारण से लोग ऐसे प्रभावित होने लगे थे कि उनके प्रति श्रद्धा का ज्वार उमड़ने लगा था। 1965 के “भारत चीन युद्ध” में भी गुरुजी से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नीतिगत व सामरिक विषयों पर परामर्श करके कुछ नीतियां तय की थी। जनप्रिय प्रधानमंत्री अटल जी तो श्री गुरूजी के समकक्ष कभी कुर्सी पर नहीं बैठते थे व नीचे ही स्थान ग्रहण करते थे।
 
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