संत गहिरा गुरु जी छत्तीसगढ़ के 14वीं-15वीं सदी एक प्रसिद्ध संत और समाज सुधारक थे।
संत गहिरा गुरु जी ने अपने शिक्षाओं और भक्ति के माध्यम से समाज में सुधार लाने की कोशिश की। वे भक्ति और साधना के मार्ग को अपनाने के पक्षधर थे और उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष किया। उनके उपदेशों में सरलता, सच्चाई और सामाजिक समानता की बात की जाती है।
उनका जन्म 4 अगस्त 1905 को रायगढ़ जिले में हुआ था। वे अक्सर जंगलों में एकांत में ध्यान और चिंतन किया करते थे। उन्होंने लोगों को दैनिक स्नान, घर में तुलसी लगाने और उसे पानी देने, श्वेत वस्त्र पहनने, गांजा, मासाहार और शराब का सेवन छोड़ने, गोसेवा और खेती करने, और रात में सामूहिक नृत्य के साथ रामचरितमानस की चौपाई गाने की प्रेरणा दी। प्रारंभ में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे लोग उनकी बात मानने लगे और उन्हें ‘गहिरा गुरुजी’ के नाम से सम्मानित किया। वे अक्सर यह सूत्र वाक्य दोहराते थे: "चोरी, दारी, हत्या, मिथ्या का त्याग करें, सत्य, अहिंसा, दया और क्षमा का पालन करें।"
"सनातन धर्म सन्त समाज" की स्थापना कर दिन दुखियो और गरीब, असहाय लोगो की निश्चल भाव से सेवा करते थे | महान व्यकतित्व के धनी थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लोगो की सेवा में बिताया |
श्रावन मास की आमावाश्या , सन 1943 में गहिरा गुरु जी ने गहिरा ग्राम में सनातन धर्म संत समाज की स्थपना की | सुदूर वन क्षेत्रो में उनकी ख्याति ऐसी हो गयी की वनवासी उन्हें भगवन की तरह पूजने लगे थे | वनवासी समाज को सनातन धर्म के दैनिक संस्कारों से परिचित कराने का कार्य भी किया और 16 संस्कारो , वैदिक विधि से विवाह करना , शुभ्र ध्वज लगाना और उसे प्रति माह बदलना ,यह गहिरा गुरु द्वारा स्थापित सनातन धर्म संत समाज क्र प्रमुख सूत्र है|
राष्ट्रिय स्वयंसेवक से सम्बन्ध :-
संत गहिरा गुरु का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पहला परिचय अंबिकापुर के प्रचारक श्री भीमसेन चोपड़ा के माध्यम से हुआ। श्री भीमसेन चोपड़ा का अध्यात्म से जुड़ाव भी गहिरा गुरु के कारण ही हुआ था। गहिरा गुरु ने रायपुर, कांपु, मुंडेकेला, सीतापुर, प्रतापगढ़, कोतवा और अन्य कई स्थानों पर हजारों शिष्य बनाए। उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर उन्होंने दो लाख से अधिक अनुयायी जुटाए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर "श्री गुरुजी" से गहिरा गुरु का प्रथम परिचय जशपुर में कल्याण आश्रम के नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर हुआ। इस बैठक के बाद, उनके बीच अच्छे संबंध स्थापित हुए, और गहिरा गुरु ने अपना जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
गहिरा गुरु जी का आश्रम :-
संत श्री संत गहिरा गुरु जी ने जशपुर में एक आश्रम बनाया था जिसे आज कैलाश गुफा या गहिरा गुरु गुफा के नाम से जाना जाता है | अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किलोमीटर की दुरी पर स्थित सामरबार नामक स्थान है जहा पर प्राकृतिक वन सुषमा के बिच कैलाश गुफा स्थित है | इसी संत गहिरा गुरु जी ने पहाड़ी चट्टानों को तरासकर बनाया था | यहाँ पर महाशिवरात्रि के दिन महा मेले का आयोजन होता है | यहाँ पर संस्कृत का पाठशाला है , यहाँ शिवमंदिर और पार्वती का मंदिर भी स्थित है |
उनके जीवन और उपदेश आज भी छत्तीसगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किए जाते हैं। संत गहिरा गुरु जी की शिक्षाओं का प्रभाव आज भी लोगों के जीवन में दिखाई देता है।