गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व पर जबलपुर घटित अविस्मरणीय गाथा | The Voice TV

Quote :

सपनों को हकीकत में बदलने से पहले, सपनों को देखना ज़रूरी है – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

Editor's Choice

गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व पर जबलपुर घटित अविस्मरणीय गाथा

Date : 15-Nov-2024

 "नानक नाम जहाज है,जो जपै वो तर जाए - जैंसे कोन्डा भील तर गये, वैसे खालिस्तानी कब तरेंगे?

"एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले कौन मंदे"

गुरुनानक देव की उक्त वाणी भारतीय सामाजिक समरसता का मूल आधार है, इसका एक सुनहरा दृष्टांत जबलपुर से भी संबंधित है। गुरुनानक देव जी साहब के साथ  भाई मरदाना के साथ दो बार जबलपुर आने के प्रमाण मिलते हैं, जिनकी पुष्टि नर्मदा के ग्वारीघाट के किनारे स्थित गुरुद्वारा और मढ़ाताल स्थित गुरुद्वारा करते हैं।  कोन्डा भील की कथा पर जाने पूर्व यहां उल्लेखनीय है कि गुरुनानक देव ने हिंदुत्व के पालक बन कर 3 लोदी सुल्तानों एवं दो तथाकथित मुगल बादशाहों का निर्भीकता से सामना कर हिंदुत्व की रक्षा की।
वर्तमान संदर्भ में यह कितना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि सिख आदि गुरु -गुरु नानक देव ने सर्वप्रथम हिंदू शब्द का प्रयोग जनवाणी के रूप में किया और हिंदुत्व की रक्षा के लिए देशाटन किया, तो उनके नितांत विपरीत खालिस्तान की मांग करने वाले मतांतरित सिक्ख,ईसाइयों और मुसलमानों से मिलकर हिंदुत्व को नष्ट करने के लिए आक्रमण कर रहे हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण कनाडा से मिलता है जहां हाल ही में खालिस्तानी सिखों ने हिंदू मंदिर पर आक्रमण कर, हिंदुओं को मारा। खालिस्तानी चरमपंथी पन्नू ने अयोध्या में स्थित श्री राम मंदिर को उड़ाने की धमकी दी है। इन चरमपंथियों के शमन के लिए गुरुनानक देव जी के विचारों को व्यापक रुप से विस्तार देने की महती आवश्यकता है, तभी भटके खालिस्तानी सिख भी अपने घर लौटेंगे।
मानव मात्र के प्रति दया, करुणा प्रेम और सौहार्द्र तथा ईश्वर में अटल निष्ठा गुरुनानक के आंदोलन के केंद्र बिंदु थे। इसलिए उक्त आंदोलन को व्यापक बनाने के आलोक में गुरुनानक देव ने देश - देशांतर की यात्राएं कीं, जिन्हें सिख धर्मग्रंथों में 'उदासी' कहा गया है। इन जनसंपर्क - यात्राओं के माध्यम से उन्होंने पुनर्जागरण के प्रतिमानों को स्थापित कर आध्यात्मिक पुनरुत्थान का मार्ग प्रशस्त किया है। 
गुरुनानक देव के प्रभाव से जबलपुर में दस्यु कोन्डा भील के  संत बनने की गाथा अविस्मरणीय है , जिसने मढ़ाताल में अपनी अमिट यादें छोड़ीं। 'सूरज प्रकाश' नामक सिख ग्रंथ में एक उदासी का वर्णन आया है जिसमें सन् 1508-09 तदनुसार चैत्र संवत् 1565 तथा भादों संवत् 1566 में गुरुनानक देव ने विंध्याचल पर्वत पार कर जबलपुर पहुंचे थे, तब तत्कालीन समय गढ़ा कटंगा के नाम से गोंडवाना साम्राज्य था तथा संग्राम शाह के पिता अर्जुन दास का शासन काल था। इस उदासी के दौरान सघन वनों से निकलते समय दस्यु कोन्डा भील ने गुरुनानक देव के साथी मरदाना को पकड़ लिया और उनकी हत्या करने के लिए तत्पर हुआ तो नानक जी ने अपने अंतर्मन में इस घटना का पूर्वाभास कर लिया था। इसलिए गुरुनानक देव जी ने शीघ्र ही मरदाना और कोन्डा भील को खोज लिया और जैंसे ही उनकी दिव्य दृष्टि कोन्डा भील पर पड़ी तो कोन्डा का हृदय परिवर्तन हो गया। वह नानक देव ने चरणों गिर गया और अपने जरायम पेशा के अपराधों के लिए क्षमा मांगी तथा गुरुनानक के पीछे लिया। 
इसके बाद कोन्डा भील दस्यु से संत बन गया जिस प्रकार महर्षि वाल्मीकि बने थे।इसका उल्लेख पंजाब विश्वविद्यालय की पुस्तक "गुरु नानक देव की यात्राएं" में आया है। इसके साथ ही प्रो. सुरेंद्र सिंह कोहली ने पहली उदासी का वर्णन करते हुए इस घटना का प्रमाणीकरण किया है।प्रो. कोहली यह भी लिखते हैं कि जबलपुर में नानक देव को फूल नामक एक जंगम साधू मिले, जो अपने चमत्कारों के कारण जन मानस को प्रकारांतर से प्रभावित करते थे उन्हें यह समझाया कि धर्म के नाम पर चमत्कार नहीं दिखाना चाहिए क्योंकि आध्यात्मिक चिंतन में चमत्कारों का कोई स्थान नहीं है।
गुरुनानक देव की दूसरी उदासी के अंतर्गत दुबारा जबलपुर आने के प्रमाण मिलते हैं। यह आगमन सन् 1511 - 12 तदनुसार आषाढ़ संवत् 1568-69 के कालखंड में हुआ। नर्मदा नदी के किनारे ग्वारीघाट पर आप पहुंचे थे। इस समय भी गोंडवाना साम्राज्य के राजा अर्जुन दास ही थे। जबलपुर नगर अपने आपको धन्य मानता है कि गुरुनानक देव के चरण इस भूमि पर पड़े और उनकी चरण रज से यह नगर पावन हो गया। प्रकाश पर्व की लख लख बधाई।
 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload










Advertisement