जयंती विशेष:- भारतीयता का भाव जागृत करने वाले एकनाथ रानडे
Date : 19-Nov-2024
जैसे बोधगया का बोधीवृक्ष गौतम बुद्ध से जुड़ा हुआ है, वैसे ही कन्याकुमारी में स्थित विवेकानंद शिला (जहां आज विवेकानंद शिला स्मारक है) स्वामी विवेकानंद से जुड़ी हुई है |
स्वामी विवेकानंद ने यहां 25-27 दिसंबर 1892 को 3 दिन 3 रात साधना की थी और यहीं उनको अपने जीवन का उद्देश्य मिला था. उस शिला पर आज एक भव्य राष्ट्र स्मारक है जिससे हम सब विवेकानंद शिला स्मारक के नाम से जानते हैं. स्मारक को 2020 में 50 वर्ष पूर्ण हुए हैं. इस स्मारक के निर्माण के पीछे एक प्रेरणादायी और रोचक कथा है |
स्मारक को बनने में लगभग 6 वर्ष का समय लगा था और यह कार्य इसलिए व्यवस्थित रूप से पूर्ण पूर्ण हुआ क्योंकि इसके पीछे एक ऐसा चरित्र था जिनका उनके काम से परिचय होता है. वह है विवेकानंद शिला स्मारक के निर्माता और विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के संस्थापक एकनाथ रानडे |
विवेकानंद शिला स्मारक के निर्माण के दौरान चाहे प्रशासनिक और राजनैतिक अनुमति लेने का कार्य हो या 3 दिन में 323 सांसदों के स्मारक के समर्थन में हस्ताक्षर करवाना हो, हर राज्य के मुख्यमंत्री से सफलतापूर्वक सहयोग राशि लेनी हो या सम्पूर्ण भारत से 30 लाख लोगों (उस समय भारत की 1 प्रतिशत युवा जनसंख्या) से 1, 2, या 3 रुपए भेंट सवरूप लेकर उनको स्मारक से जोड़ना हो, एकनाथ रानडे ने हर कार्य निपुणता के साथ किया |
स्मारक के निर्माण के पूर्व में जब एकनाथ रानडे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर काम कर रहे थे तब तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने उनके बारे में कहा था, ‘लोग मुझे लौह पुरुष कहते हैं लेकिन मुझे एकनाथ जी में फौलादी पुरुष नज़र आता है’ |
एकनाथ रानडे का जन्म 19 नवंबर 1914 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के टिमटाला गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था. 1926 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये
1948 में महात्मा गांधी की हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. संघ के सभी प्रमुख अधिकारियों को सरकार ने जेल में डाल दिया था. ऐसे में देशव्यापी सत्याग्रह की जिम्मेदारी एकनाथ रानडे को दी गयी. उन्होंने इतनी सफलता से सत्याग्रह का नेतृत्व किया कि वह विश्व का सबसे ‘बड़ा सत्याग्रह’ कहलाया.
यह सत्याग्रह 9 दिसंबर 1948 से शुरू हुआ और 20 जनवरी 1949 को समाप्त हुआ. इसी दौरान तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से उनका लंबा संवाद चला और आखिरकार सरकार को ‘सच्चाई’ समझ में आयी और प्रतिबंध हटा लिया गया
एकनाथ रानडे कहते थे, ‘यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मेरे जीवन में न आता, तो मेरा जीवन दिशाहीन ऊर्जा का प्रवाह मात्र बनकर रह जाता
एकनाथ रानडे का जब 22 अगस्त 1982 को स्वर्गवास हुआ तो लाख कोशिश करने के बाद भी उनका एक चित्र भी उस समय नहीं मिला था. इतना विशाल कार्य करने वाले एकनाथ रानडे के चित्र ना मिलने का अगर सबसे बड़ा कोई कारण था तो वह है कि उन्होंने कभी अपना नाम अपने काम से बड़ा नहीं होने दिया. राष्ट्र और समाज के हित के कार्य के लिए सबकुछ करना और अपने लिए कुछ ना करना यह उन्होंने जीवन भर जीकर दिखाया. वह बीज की तरह मिट्टी में मिल गए जिसके कारण विशाल वृक्ष रूपक विवेकानंद शिला समारक और विवेकानद केंद्र- आध्यात्मिक प्रेरित सेवा संगठन हम सबके सामने है |
एकनाथ रानडे के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. वह कहते थे, ‘यदि संपूर्ण धार्मिक भावना को लोकहित के कार्यों में रूपांतरित कर दिया जाए तो राष्ट्रीय पुनर्निर्माण हो सकता है.’ उनके अनुसार, ‘प्रत्येक व्यक्ति में भारतीयता को जागृत करना है, उन्हें कार्य में लगाना है. उनको यह पूर्ण विश्वास था कि यदि आप गहराई में उतरकर देखेंगे तो प्रत्येक व्यक्ति में भारतीयता और हिंदुत्व की जाग्रति पायेंगे
एकनाथ रानडे ने सैकड़ो कार्यकर्ताओं के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया है |