माता श्री एकादशी प्रागटय दिवस: उत्पन्ना एकादशी | The Voice TV

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सपनों को हकीकत में बदलने से पहले, सपनों को देखना ज़रूरी है – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

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माता श्री एकादशी प्रागटय दिवस: उत्पन्ना एकादशी

Date : 26-Nov-2024

उत्पन्ना एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस शुभ दिन पर उपवास करते हैं. उन्हें सभी पापों से  छुटकारा मिल जाता है और वो लोग सीधे वैकुंठ धाम ( भगवान विष्णु का निवास ) जाते हैं. इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता एकादशी की भी पूजा की जाती है पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की शक्तियों में से एक शक्ति देवी एकादशी ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था इसलिए इस एकादशी को "उत्पन्ना एकादशी" के नाम से जाना जाता है |

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा!

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! आपने हजारों यज्ञ और लाख गौदान को भी एकादशी व्रत के बराबर नहीं बताया। सो यह तिथि सब तिथियों से उत्तम कैसे हुई, बताइए।

भगवन कहने लगे- हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं। तब भगवान शिव ने कहा- हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ।

वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं। शिवजी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुँचे। वहाँ भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे‍, कि हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं।

आप इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं। सबको शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश और पाताल भी आप ही हैं। सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं। आप सर्वव्यापक हैं। आपके सिवा तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है।

हे भगवन्! दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें।

इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताअओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहाँ है? यह सब मुझसे कहो।

भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले- भगवन! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ। उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने सब देवताअओं को स्वर्ग से निकालकर वहाँ अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है।

सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए।

यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगरी जाओ। इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय जब दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था। उसकी भयानक गर्जना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे। जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े।

भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला। बहुत-से दैत्य मारे गए, केवल मुर बचा रहा। वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा। भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता। उसका शरीर छिन्न‍-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा। दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ।

10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा। थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए। यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था। विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए। मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया।

श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं।

                 

उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की { गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष }एकादशी को किया जाता है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है

बहुत कम ही लोग जानते हैं कि एकादशी एक देवी थी,जिनका जन्म भगवान विष्णु के शरीर से हुआ था | एकादशी माता मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थीं,जिसके कारण इस एकादशी का नाम 'उत्पन्ना एकादशी' पड़ा | इसी दिन से एकादशी व्रत प्रारंभ हुआ था |

उत्पन्ना एकादशी पूजन विधि 

एकादशी के दिन सुबह उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प लेना चाहिए फिर स्नान करें.भगवान का पूजन करें तथा व्रत कथा जरूर सुने. इस व्रत में भगवान विष्णु को मिठाई का भोग भी लगाया जाता है

 फ़लों का भी भोग लगाएं रात में भजन-कीर्तन करें जाने-अनजाने कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए भगवान श्रीहरि से क्षमा मांगे द्वादशी तिथि की सुबह ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करें

उत्पन्ना एकादशी के दिन करें ये उपाय  

कारोबार में तरक्की करना चाहते हैं तो उत्पन्ना एकादशी के दिन पांच गुंजाफल भगवान के सामने रखकर उनकी पूजा करें. पूजा के बाद उन गुंजाफल को अपनी तिजोरी या गल्ले में रख लें

घर की सुख-शांति बनाए रखने के लिए इस दिन अपने घर के मंदिर में दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना करनी चाहिए और उसकी रोली, धूप-दीप आदि से पूजा करें

अगर आप किसी भी तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से बचे रहना चाहते हैं तो इस दिन तुलसी की जड़ की थोड़ी-सी मिट्टी लेकर उसे पानी में डालकर उससे स्नान करना चाहिए. फिर साफ पानी से स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहने |

उत्पन्ना एकादशी के दिन न करें ये गलतियां

उत्पन्ना एकादशी के दिन तामसिक आहार और व्यवहार से दूर रहना चाहिए |

 उत्पन्ना एकादशी के दिन अर्घ्य सिर्फ हल्दी मिले जल से ही दें रोली या दूध का प्रयोग अर्घ्य में न करें |

सेहत ठीक नहीं है तो उपवास ना रखें चावल ना खाए निंदा चुगली करने वाले पापी या मांसाहारी शराबी व्यक्तियों से दूर रहे पूरे दिन और रात्रि भजन - कीर्तन, प्रभु स्मरण, मंत्र- जाप ज्यादा से ज्यादा करें बस इन नियमों का पालन करें |

जो मनुष्य जीवनपर्यन्त एकादशी का उपवास करता है, वह मरणोपरांत वैंकुण्ठ लोक जाता है एकादशी के समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है। एकादशी-माहात्म्य को सुनने मात्र से सहस्र गोदानों का पुण्यफल प्राप्त होता है एकादशी में उपवास करके रात्रि-जागरण करने से व्रती श्रीहरि की अनुकम्पा का भागी बनता है |

उपवास करने में असमर्थ व्यक्ति एकादशी के दिन कम से कम अन्न का परित्याग अवश्य करें एकादशी में अन्न का सेवन करने से पुण्य का नाश होता है तथा भारी दोष लगता है ऐसे लोग एकादशी के दिन फ़लाहार कर सकते हैं एकादशी का व्रत समस्त प्राणियों के लिए अनिवार्य बताया गया है |

मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष में एकादशी देवी के उत्पन्न होने के कारण इस व्रत का अनुष्ठान नए भक्त गणों को इसी तिथि से प्रारंभ करना उचित रहता है |

 

 

 
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