कामदा एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष की पहली एकादशी मानी जाती है, जो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। "कामदा" का अर्थ होता है "इच्छा पूर्ण करने वाली", और यह एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है जो अपने जीवन की इच्छाओं, पापों से मुक्ति, तथा सांसारिक कष्टों से छुटकारा पाना चाहते हैं। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, और इसकी महिमा पुराणों में वर्णित है।
कामदा एकादशी की पौराणिक कथा (कहानी):
पद्म पुराण के अनुसार, प्राचीनकाल में भोगीपुरी नामक एक नगर था, जहाँ गंधर्व, किन्नर और अप्सराएँ रहा करती थीं। एक गंधर्व गायक ललित और उसकी पत्नी ललिता उस नगर में रहते थे। ललित अपनी पत्नी से अत्यंत प्रेम करता था। एक दिन ललित राजा की सभा में गा रहा था, परंतु उसका ध्यान अपनी पत्नी की ओर था। इस वजह से वह गलत सुरों में गाने लगा, जिससे क्रोधित होकर राजा ने उसे राक्षस बनने का श्राप दे दिया।
ललित एक भयानक राक्षस के रूप में जंगलों में भटकने लगा। उसकी पत्नी ललिता को अत्यंत दुख हुआ। वह पति को राक्षस रूप में देखकर व्यथित हो गई। वह ऋषि श्रृंगी के पास गई और उपाय पूछा। ऋषि ने उसे चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने का निर्देश दिया। ललिता ने पूरी श्रद्धा से कामदा एकादशी का व्रत रखा, और अगले दिन द्वादशी को पुण्य फल अपने पति को अर्पण किया। इससे ललित का राक्षस रूप समाप्त हो गया और वह पूर्व गंधर्व रूप में लौट आया।
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि कामदा एकादशी से सभी पाप नष्ट होते हैं और पुनः जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है।
कामदा एकादशी एक अत्यंत पवित्र और फलदायक व्रत है। इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। यह व्रत व्यक्ति को शुद्ध करता है, पापों से मुक्ति दिलाता है, और जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। जो श्रद्धालु पूरी निष्ठा से इस व्रत को करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।