जब भी छत्तीसगढ़ की पहचान, सम्मान और स्वाभिमान की बात होती है, तो एक नाम सबसे पहले स्मरण में आता है — खूबचंद बघेल। वे न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सक्रिय सेनानी थे, बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य के गठन की आवाज़ बनने वाले पहले व्यक्तियों में भी शामिल थे। उनका जीवन समर्पण, संघर्ष और सेवा की अद्भुत मिसाल है।
खूबचंद बघेल ने उस समय आवाज़ उठाई, जब अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ बोलना ही अपराध माना जाता था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध निडरता से संघर्ष किया और स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई। उन्होंने राष्ट्र के लिए जिस जज़्बे के साथ काम किया, वह आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा
खूबचंद बघेल को अलग छत्तीसगढ़ राज्य की माँग उठाने वाला प्रथम नेतृत्वकर्ता माना जाता है। उन्होंने बहुत पहले ही यह समझ लिया था कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ अलग हैं और इसकी अपनी पहचान होनी चाहिए। उन्होंने इस दिशा में न सिर्फ विचार रखा, बल्कि जनजागरण अभियान चलाकर लोगों में चेतना भी लाई।
राजनीतिक योगदान
1950 के दशक में वे मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने और धरसींवा विधानसभा क्षेत्र से जनता का प्रतिनिधित्व किया। उनकी राजनीति सत्ता के लिए नहीं, बल्कि सेवा के लिए थी। उन्होंने ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय को सदैव प्राथमिकता दी।
सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान
खूबचंद बघेल एक सच्चे समाजसेवी थे। उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई और छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, भाषा और परंपराओं को सहेजने का सतत प्रयास किया। वे मानते थे कि किसी भी क्षेत्र की आत्मा उसकी संस्कृति में बसती है, और उन्होंने इस आत्मा को जागरूक किया।
आज, 19 जुलाई, उनकी जयंती के अवसर पर, हम सबको यह स्मरण करना चाहिए कि कैसे एक साधारण किसान परिवार से निकले महान व्यक्ति ने छत्तीसगढ़ की आत्मा को पहचान दिलाई। उनका जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है — कि सेवा, संघर्ष और सत्य के रास्ते पर चलकर भी इतिहास रचा जा सकता है।
खूबचंद बघेल आज भी हर छत्तीसगढ़वासी के दिल में जीवित हैं — एक ऐसे जननायक के रूप में, जिन्होंने क्षेत्रवाद नहीं, बल्कि जनहित की राजनीति की।