साल में आने वाली 24 एकादशियों में से पुत्रदा एकादशी का खास महत्व माना जाता है। कहते हैं इस एकादशी का व्रत रखने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इसके अलावा ये व्रत उन लोगों के लिए भी फलदायी साबित होता है जिन्हें संतान प्राप्ति में बाधाएं आ रही हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान सुख की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही संतान को लंबी आयु की भी प्राप्ति होती है।
पौष पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा अनुसार एक नगरी में सुकेतुमान नाम का राजा रहा करता था, जिसकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा-रानी की कोई संतान नहीं थी जिसे लेकर वे हमेशा दुखी रहते थे। उन्हें इस बात की हमेशा चिंता सताती थी कि उनके बाद उनका राजपाट कौन संभालेगा, उनका अंतिम संस्कार, श्राद्ध, पिंडदान आदि कौन करेगा? बस यही सब सोच-सोच कर राजा बीमार होने लगे थे। एक दिन राजा जंगल भ्रमण के लिए निकले और वहां जाकर प्रकृति की सुंदरता को देखने लगे। वहां उन्होंने देखा कि कैसे हिरण, मोर और अन्य पशु-पक्षी भी अपनी पत्नी व बच्चों के साथ जीवन का आनंद ले रहे हैं। ये सब देखकर राजा का मन और विचलित होने लगा। वह सोचने लगे कि इतने पुण्यकर्मों को करने के बाद भी मैं निःसंतान हूं।
तभी राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया। राजा को देखकर मुनियों ने कहा – हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। राजा ने पूछा – महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए।
मुनि बोले – हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। मुनियों के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।
पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। इसके अलावा व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। फिर व्रत वाले दिन प्रातःकाल उठकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। फिर भगवान का ध्यान करें। फिर शंख में जल लेकर प्रतिमा का अभिषेक करें। फिर भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद चावल, फूल, इत्र, अबीर, गुलाल आदि से भगवान की विधि विधान पूजा करें और उनकी प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं। भगवान को पीले वस्त्र अर्पित करें। भगवान को मौसमी फल का भोग लगाएं। इसके बाद खीर का भोग लगाएं। इसके बाद पुत्रदा एकादशी की कथा सुनें और साथ ही श्री हरि विष्णु भगवान की आरती करें। ये व्रत निर्जला रखा जाता है लेकिन अगर बिना पानी के व्रत रख पाना संभव न हो तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराकर ही व्रत का पारण करना चाहिए।