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इसरो के वैज्ञानिक ने बताया, चंद्रयान की सफल लैंडिंग में कैसे छिपी है भविष्य के अंतरिक्ष मिशन की कुंजी

Date : 24-Aug-2023

  चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग ने दुनिया भर में भारत के अंतरिक्ष तकनीक का परचम लहरा दिया है। वैसे तो चांद पर पहुंचा मिशन केवल सॉफ्ट लैंडिंग और वन लूनर डे यानि धरती के 14 दिनों तक वहां वायुमंडल और सतह के अंदर खगोलीय गतिविधियों के अध्ययन को केंद्रित कर ही भेजा गया है लेकिन इसकी सफल लैंडिंग में भविष्य में भारत के कई महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों की कुंजी छिपी हुई है। इस बारे में इसरो के पूर्व वयोवृद्ध वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने "हिन्दुस्थान समाचार" को विस्तार से बताया।

तपन मिश्रा कहते हैं, "इसरो की स्थापना 15 अगस्त 1969 को आज से महज 54 साल पहले हुई थी। सिर्फ आधी सदी के सफर में हमने चांद पर वह कर दिखाया जो विज्ञान के क्षेत्र में खुद को चौधरी साबित करने वाले अमेरिका, रूस, चीन और जापान जैसे देश नहीं कर पाए।"

उन्होंने चांद की सतह पर चहलकदमी कर सैंपल एकत्रित कर रहे प्रज्ञान रोवर की तकनीक के बारे में कहा कि उसमें केवल बैटरी लगी है जो रोवर पर लगे सोलर पैनल से चार्ज होकर काम कर रही है। उसी से रोवर आगे बढ़ते हुए चंद्रमा पर हमारे रिसर्च अभियान को आगे बढ़ा रहा है। देखने वाली बात यह होगी कि 14 दिनों बाद जब चांद पर रात होती है तब वहां तापमान 200 डिग्री सेल्सियस के नीचे उतर जाता है। अमूमन -40 डिग्री सेल्सियस के बाद बैटरी डेड हो जाती है, काम नहीं करती। लेकिन रोवर के अंदर मौजूद बैटरी के आसपास के तापमान को सामान्य 23 डिग्री के करीब बनाए रखने के लिए हमने कई सारे केमिकल्स और तत्वों के जरिए इंसुलेशन बनाया है। अगर चांद के -200 डिग्री तापमान को झेल कर भी 14 दिनों की रात के बाद बैटरी दोबारा चार्ज होकर रोबोट दोबारा काम शुरू कर देता है तो यह भविष्य में अंतरिक्ष की दुनिया में भारत का सबसे सफल तकनीकी प्रयोग के तौर पर सामने आएगा।

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चांद से मिट्टी-चट्टान लाने का होगा सफल अभियान

- इसके अलावा 150 क्विंटल फ्यूल जो अभी भी बचा हुआ है वह यूं ही नहीं बचा है। बल्कि इसके जरिए भविष्य के अंतरिक्ष मिशन को वैज्ञानिक परखना चाहते थे। दरअसल 1,696.4 किलो फ्यूल चंद्रयान-3 में इस्तेमाल किया गया था। सबसे अधिक फ्यूल का इस्तेमाल धरती की सतह से एस्केप वेलोसिटी प्राप्त करने तक यानी धरती की कक्षा से बाहर निकलने तक खर्च होता है। उसके बाद थोड़ा बहुत फ्यूल चांद तक पहुंचने में और बहुत कम फ्यूल उसकी ऑर्बिट के चक्कर लगाते हुए सतह पर उतरने में खर्च होता है। अभी भी 150 किलो फ्यूल बचे होने का मतलब है कि अगर भविष्य में हम ऐसा मिशन करना चाहें जिसमें चांद की सतह की मिट्टी, पत्थर और अन्य सैंपल्स को वापस ले आना चाहते हैं तो यह तकनीक अचूक और कारगर साबित होगी। इसलिए चंद्रयान-3 की लैंडिंग केवल चंद पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं बल्कि वहां से सैंपल वापस लेकर आने के भी एक कदम को दर्शाता है।

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एआई की जीरो एरर तकनीक भविष्य के अंतरिक्ष मिशन का भविष्य

- चंद्रयान-3 की लैंडिंग की टेलिमेटरी पर नजर डालें तो आखिरी के कुछ मिनट चंद्रयान में लगी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक पर आधारित थी। इसरो ने जो ग्राफ जमीन पर गणितीय आकलन से बनाए थे ठीक उसी ग्राफ को फॉलो करते हुए एआई के द्वारा चंद्रयान-3 ने चांद की सतह पर जीरो एरर के साथ लैंडिंग की। भविष्य में किसी भी खगोलीय पिंड पर अंतरिक्ष मिशन के लिए यह तकनीक सबसे कारगर है जो हमारे सबसे निकट के चांद पर जांचनी जरूरी थी।

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अब अंतरिक्ष में मानव भेजने के लिए तैयार है भारत

- तपन मिश्रा आगे बताते हैं कि अगर 14 दिनों बाद जब चांद पर रात होगी। उसके अगले 14 दिन बाद अगर दोबारा रोवर की बैटरी चार्ज होकर दोबारा काम करना शुरू करती है तो यह किसी भी दूसरे खगोलीय पिंड पर वर्षों तक भारत के रिसर्च कार्य की रूपरेखा होगी। क्योंकि इससे गर्म से गर्म और ठंडी से ठंडी जगह पर तापमान मैनेजमेंट की हमारी तकनीक दुनिया के लिए अचूक रहेगी। इसके अलावा अगले एक या दो साल में भारत अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का मिशन शुरू करेगा। अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित वापस लाना मिशन की पहली प्राथमिकता होती है। इसके लिए इसरो ने पहले ही परीक्षण कर लिए हैं।

तपन मिश्रा उत्साह से आगे कहते हैं, "जो सबसे महत्वाकांक्षी बात है वह यह है कि अब जबकि चांद पर हमने सफल सॉफ्ट लैंडिंग कर ली है तो इसका मतलब है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वह तकनीक हमारी अचूक हो गई है जो धरती से लाखों करोड़ों किलोमीटर दूर के भी किसी खगोलीय पिंड पर हमारे भविष्य के स्पेस क्राफ्ट को पहुंचने के बाद सुरक्षित लैंडिंग और रिसर्च का रास्ता साफ करेगी। इसीलिए चांद के दक्षिणी ध्रुवीय हिस्से पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग को केवल सॉफ्ट लैंडिंग की तकनीक का प्रदर्शन नहीं बल्कि अंतरिक्ष की दुनिया में भारत को रूस, अमेरिका और चीन से भी आगे सबसे बड़े खिलाड़ी के तौर पर स्थापित कर चुका है। यह बात दुनिया भर का वैज्ञानिक समुदाय कल समझ चुका है।"

 
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