दिव्य कर्तव्य, मानवतावादी सोच, सबके उदय की कामना, चिन्मयी पुरुषार्थ और तेजोमय शौर्य से मानव की चेतना को झंकृत करने एवं धरती को जय जगत का सन्देश देने वाले युगपुरूष संत विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर 1895 को हुआ था। इस महापुरूष ने भूदान,डाकूओं के आत्मसमर्पण तथा जय जगत के विचारों द्वारा वैश्विक समास्याओं के अहिंसक तरीके से समाधान निकालने के जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत किये थे। वे हमारे लिये एक प्रकाश स्तंभ, राष्ट्रीयता, नैतिकता एवं अहिंसक जीवन ,पीड़ितों एवं अभावों में जी रहे लोगों के लिये आशा एवं उम्मीद की एक मीनार थे, रोशनी उनके साथ चलती थी। वे संतों की उत्कृष्ट पराकाष्ठा थे, भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, विशिष्ट उपदेष्टा, महान विचारक नेता थे। उनका मूल नाम विनायक नरहरी भावे था। वे भारत में भूदान तथा सर्वोदय आन्दोलन प्रणेता के रूप में सुपरिचित थे।आज हम उनकी 128वी जयंती मना रहे है |
आज हम उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे प्रसंग के बारे मे बातकरेंगे जो उनके महान विचार को दर्शाता है और हमे यह सीख देता है कि एकता से सब कुछ संभव है | यहाँ किस्सा उस समय का है जब आचार्य विनोबा भावे को एक बार किसी विद्यालय में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया | विनोबा जी का मानना था की छात्रों को सही दिशा दी जाये तो देश का विकास भी उचित दिशा में होता है | वे खुश होकर उस विद्यालय में गए और छात्रों को अत्यंत प्रेरक उदबोधन दिया| छात्र विनोबा जी को सुनकर काफी प्रभावित हुए | जब उनका व्याख्यान समाप्त हुआ तो कुछ उनसे मिलने आए | सहज बात-चीत के दौरान विनोबा भावे ने छात्रों को कागज का
एक युवक वही पास मे बैठकर यह सब देख रहा था | वह उठकर विनोबा भावे जी के समक्ष आया और कहने लगा की मै भारत का नक्शा बना सकता हूँ |अनुमति मिलने पर युवक ने सभी टुकड़ो को जोड़कर भारत का नक्शा बना दिया | विनोबा भावे जी ने पुछा की यहाँ तुमने इतनी जल्दी सभी टुकड़ो को जोड़ दिया ,युवक ने कहा की कागज के इन टुकड़ो में एकओर भारत का नक्शा बना हुआ है जबकि दूसरीओर व्यक्ति का चित्र है | जब मैंने व्यक्ति के चित्र को कागज के टुकड़ो के जोड़ा तो भारत का नक्शा स्वतः बन गया |
तब आचार्य विनोबा भावे जी ने कहा यदि हमे देश में एकता लानी है तो सर्वप्रथम देशवासियो को जागृत कर एक करना होगा | जब स्वम् देश वासी एक हो जायेंगे तो देश स्वतः एक हो जायेगा | यदि हम सर्व धर्म सम भाव की अवधारणा को ले कर सभी धर्म ,संप्रदाय व वर्ग एक दूसरे को देशबंधु के रूप में देखे तो हमारा राष्ट्र उन्नति एवं एक महाशक्ति शाली राष्टीय के रूप में स्थापित होगा |
यदि हम चाहते हैं कि हमारा स्वभाव स्वतंत्र और आनंदमय हो, तो हमें अपनी गतिविधियों को उसी क्रम में लाना चाहिए - आचार्य विनोबा भावे