जोधपुर, 05 नवम्बर। जैसलमेर से सटे भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर पहली बार ड्रोन आर्मी उतारी गई है। त्रिशूल युद्धाभ्यास के दौरान ड्रोन ने आसमान से बम दागे और दुश्मन के ठिकानों को तबाह किया।
दरअसल, सेना ने एक ऐसा प्रोग्राम शुरू किया है, जिसका नारा है हर फौजी के पास चील (ईगल) जैसी नजर होगी। इसका मतलब है कि अब सेना खुद ही ऐसे ड्रोन बना रही है, जो जंग के मैदान में कमाल दिखा सकते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार भारतीय सेना ने त्रिशूल अभ्यास के दौरान अपनी आसमानी सेना को भी अभ्यास में उतारा है और सेना अभ्यास ड्रोन के साथ दुश्मन को हर मोर्चे पर हराने के सफल प्रयोग कर रही है। यह पहल पूरी तरह से आत्मनिर्भर भारत की सोच पर आधारित है।
दक्षिणी कमान ने इन ड्रोन को बनाने के लिए किसी और पर निर्भर न रहते हुए अपने अंदर ही एक पूरा सिस्टम तैयार कर लिया है। इसमें ड्रोन का डिजाइन बनाना, उसे विकसित करना और फिर बड़ी तादाद में बनाना (लार्ज-स्केल प्रोडक्शन) शामिल है। सेना का मकसद साफ है जंग के लिए तैयार ड्रोन को सीधे सैनिकों के हाथ में देना।
सेना की ईएमई कोर, तकनीकी हुनर और छोटे उद्योगों का साथइस काम को सफल बनाने के लिए सेना की ईएमई कोर (कोर ऑफ ईएमई) और भारत के छोटे व मध्यम उद्योगों को साथ लाया गया है। दक्षिणी कमान ने कई ड्रोन हब बनाए हैं। ये हब नई पीढ़ी के ऐसे मानव रहित हवाई सिस्टम यानी बिना इंसान वाले छोटे हवाई जहाज (ड्रोन) तैयार कर रहे हैं, जो तीन बड़े काम कर सकते हैं। सेना के अधिकारियों के मुताबिक यह सहयोग दिखाता है कि भारतीय सेना सिर्फ देश की रक्षा ही नहीं कर रही, बल्कि देश के छोटे-छोटे उद्योगों को भी मजबूत कर रही है। इन स्वदेशी ड्रोनों का असली टेस्ट हाल ही में चल रहे अभ्यास त्रिशूल में लिया जा रहा है। यह टेस्ट ऐसी मुश्किल जगहों पर किया जा रहा हैं जहां दुश्मन का खतरा ज्यादा था
