बेंगलुरु, 14 नवंबर। पर्यावरण संरक्षण को अपने जीवन का ध्येय बनाने वाली कर्नाटक की पद्मश्री से सम्मानित ‘वृक्षमाता ’ सालूमरदा थिमक्का का बुधवार दोपहर निधन हो गया। वह 114 वर्ष की थीं। सांस लेने में तकलीफ के बाद पिछले कुछ दिनों से उन्हें बेंगलुरु के जयनगर स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां आज करीब 12 बजे उन्होंने अंतिम सांसें ली।
राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि थिमक्का का जीवन पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने कहा, "हालांकि थिमक्का आज हमें छोड़कर चली गईं, लेकिन प्रकृति के प्रति उनका प्रेम उन्हें अमर बना गया है।"
विपक्ष के नेता आर. अशोक ने भी संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि थिमक्का का निधन हरित विरासत के लिए एक बड़ी क्षति है और उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बने रहें।
तुमकुर जिले के गुब्बी तालुका के हुलिकल गांव में 1911 में जन्मी थिमक्का ने अपने पति चिक्कैया के साथ मिलकर सड़क किनारे सैकड़ों बरगद के पेड़ लगाए और उन्हें बच्चों की तरह पाला। संतान न होने के बावजूद उन्होंने इन पौधों को ही अपनी संतान माना, जिसके कारण उन्हें ‘सालूमरदा थिमक्का’ के नाम से ख्याति मिली।
थिमक्का को पर्यावरण संरक्षण में उनके असाधारण योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें राज्योत्सव पुरस्कार, आर्ट ऑफ लिविंग का विशालाक्षी पुरस्कार, 2010 का नादोजा सम्मान, 2019 का पद्मश्री पुरस्कार और 2020 में कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय की मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रमुख हैं।
बहरहाल, देशभर में थिमक्का के निधन से शोक की लहर है, लेकिन उनके प्रेरक जीवन को आने वाली पीढ़ियां सदैव याद रखेंगी। उनकी विरासत में सैकड़ों बरगद के वृक्ष, पर्यावरण संरक्षण का अमूल्य संदेश और "पेड़ मेरे बच्चे हैं" का प्रेरक विचार हमेशा याद रखा जाएगा।
बेंगलुरु, 14 नवंबर (हि.स.)। पर्यावरण संरक्षण को अपने जीवन का ध्येय बनाने वाली कर्नाटक की पद्मश्री से सम्मानित ‘वृक्षमाता ’ सालूमरदा थिमक्का का बुधवार दोपहर निधन हो गया। वह 114 वर्ष की थीं। सांस लेने में तकलीफ के बाद पिछले कुछ दिनों से उन्हें बेंगलुरु के जयनगर स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां आज करीब 12 बजे उन्होंने अंतिम सांसें ली।
राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि थिमक्का का जीवन पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने कहा, "हालांकि थिमक्का आज हमें छोड़कर चली गईं, लेकिन प्रकृति के प्रति उनका प्रेम उन्हें अमर बना गया है।"
विपक्ष के नेता आर. अशोक ने भी संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि थिमक्का का निधन हरित विरासत के लिए एक बड़ी क्षति है और उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बने रहें।
तुमकुर जिले के गुब्बी तालुका के हुलिकल गांव में 1911 में जन्मी थिमक्का ने अपने पति चिक्कैया के साथ मिलकर सड़क किनारे सैकड़ों बरगद के पेड़ लगाए और उन्हें बच्चों की तरह पाला। संतान न होने के बावजूद उन्होंने इन पौधों को ही अपनी संतान माना, जिसके कारण उन्हें ‘सालूमरदा थिमक्का’ के नाम से ख्याति मिली।
थिमक्का को पर्यावरण संरक्षण में उनके असाधारण योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें राज्योत्सव पुरस्कार, आर्ट ऑफ लिविंग का विशालाक्षी पुरस्कार, 2010 का नादोजा सम्मान, 2019 का पद्मश्री पुरस्कार और 2020 में कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय की मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रमुख हैं।
बहरहाल, देशभर में थिमक्का के निधन से शोक की लहर है, लेकिन उनके प्रेरक जीवन को आने वाली पीढ़ियां सदैव याद रखेंगी।
उनकी विरासत में सैकड़ों बरगद के वृक्ष, पर्यावरण संरक्षण का अमूल्य संदेश और "पेड़ मेरे बच्चे हैं" का प्रेरक विचार हमेशा याद रखा जाएगा।
