वैसे तो गुरुत्वाकर्षण का बल सर्वत्र विद्यमान है जो कि काभी नष्ट नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह प्रकृति प्रदत्त है। जब हम इसे नहीं जानते थे तब भी यह इस संसार मेँ उपस्थित था और आज हम जब इसे जान गए है तब भी यह सर्वत्र विद्यमान है। परिवर्तन केवल इतना है कि हमने इसके बारे मे जानकार इसके अनुकूल कार्य करने वाले यंत्रों तथा उपकरणों का आविष्कार कर लिया है जो कि मानव जीवन को सरल बनाते है।
गुरुत्वाकर्षण की खोज का इतिहास कि बात करें तो हमे कितबों मेँ तो केवल यही पढ़ाया जाता है कि कि गुरुत्वाकर्षण बल कि खोज आइजक न्यूटन ने कि तथा इसके सार्वत्रिक नियम दिए। लेकिन यह पूरा सत्य नहीं है क्योंकि न्यूटन 1643 – 1727 ई.पू. वाले ! और हमारे पास भारतीय संस्कृति मेँ इस बात का एक नहीं बल्कि 3 प्रमाण उपस्थित है कि इसकि खोज भारत मे हुई। जानते है कि भारत मे किसने गुरुत्वाकर्षण को खोजा।
वराहमिहिर नामक एक महान खगोलशास्त्री
वराहमिहिर, जिसे वराह या मिहिर भी कहा जाता है, एक प्राचीन भारतीय ज्योतिषी, खगोलशास्त्री और बहुश्रुत थे जो उज्जैन में रहते थे। उनका जन्म अवंती क्षेत्र के कायथा में हुआ था, जो लगभग आधुनिक मालवा के आदित्यदास के अनुरूप था। उनके अपने कार्यों में से एक के अनुसार, उनकी शिक्षा कपित्थक में हुई थी।
आइजैक न्यूटन के जन्म से सैकड़ों साल पहले हमारे भारतीय गुरुत्वाकर्षण के बारे में जानते थे। प्राचीन काल में 505-587 के समय में वराहमिहिर नामक एक महान खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे, जिन्होंने वर्षों पहले गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या की थी, लेकिन उन्होंने न्यूटन की तरह गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को कोई नाम नहीं दिया। इस कारण सारा श्रेय सर आइजैक न्यूटन को जाता है।
ब्रह्मगुप्त द्वारा गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान!
ब्रह्मगुप्त एक भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। वह गणित और खगोल विज्ञान पर दो प्रारंभिक कार्यों के लेखक हैं: ब्रह्मस्फुशसिद्धांत, एक सैद्धांतिक ग्रंथ, और खकखाद्यक, एक अधिक व्यावहारिक पाठ। शून्य से गणना करने के नियम देने वाले पहले ब्रह्मगुप्त थे।
अगर हम वराहमिहिर को भी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों का जनक न माने तो भी न्यूटन से पहले भारत के सन 598-670 के काल में महान ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त थे। ब्रह्मगुप्त ज्योतिष शास्त्र के बहुत बड़े ज्ञाता तो थे ही साथ ही उन्हें गणित का भी बढ़िया ज्ञान था। ब्रह्मगुप्त की गिनती भारत के मशहूर ज्योतिषियों और गणितज्ञों में होती थी उन्होंने भी गुरुत्वाकर्षण के बारे में बताया था।
ब्रह्मगुप्त के अनुसार धरती गोल है और चीज़ों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
अगर हम न्यूटन के सिद्धांतों को पढ़े तो उसमे भी यही लिखा है की धरती आकर में गोल है। और अगर कोई भी चीज़ अगर ऊपर की ओर भी फेंकी जाय या कही से भी गिर जाय तो वो आखिर में नीचे की ओर इसलिए आती है क्योंकि धरती चीज़ों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
लेकिन उस समय लोगों ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था क्योंकि सभी को गुरुत्वाकर्षण के बारे में महान खगोलविद वराहमिहिर पहले ही बता चुके थे। इससे ये पता चलता है की हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले ही गुरुत्वाकर्षण की खोज कर ली थी
भाष्कराचार्य का गुरुत्वाकर्षण का नियम
गुरुत्वाकर्षण: “पिताजी, हम इस धरती पर किस पर रहते हैं?” लीलावती ने यह प्रश्न अपने पिता भास्कराचार्य से सदियों पहले पूछा था। इसके जवाब में भास्कराचार्य ने कहा, “लावती!, कुछ लोग जो कहते हैं कि यह पृथ्वी शेषनाग, कछुआ या हाथी या किसी अन्य वस्तु पर आधारित है, तो वे गलत हैं। भले ही यह मान लिया जाए कि यह किसी वस्तु पर आधारित है। यह टिकी हुई है, प्रश्न बना रहता है कि वह वस्तु किस पर टिकी है और इस प्रकार कारण का कारण और फिर उसका कारण… यदि यह क्रम जारी रहता है, तो न्यायशास्त्र में इसे अनावस्था दोष कहा जाता है।
लीलावती ने कहा, अभी भी प्रश्न बना हुआ है, पिता, पृथ्वी किस पर टिकी है? तब भास्कराचार्य ने कहा, हम क्यों नहीं मान सकते कि पृथ्वी किसी चीज पर आधारित नहीं है। यदि हम कहें कि पृथ्वी अपने ही बल द्वारा समर्थित है और इसे गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं, तो इसमें दोष क्या है? इस पर लीलावती ने पूछा कि यह कैसे संभव है? तब भास्कराचार्य इस सिद्धांत के बारे में कहते हैं कि चीजों की शक्ति बहुत अजीब है:-
मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो
विचित्रावतवस्तु शक्त्य:॥ — सिद्धांतशिरोमणि, गोलाध्याय – भुवनकोश
आगे कहते हैं-
आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थंगुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।आकृष्यते तत्पततीव भातिसमेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे॥ — सिद्धांतशिरोमणि गोलाध्याय – भुवनकोश
यानी पृथ्वी में आकर्षण की शक्ति है। पृथ्वी अपने आकर्षण बल से भारी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वे जमीन पर गिर जाती हैं। लेकिन जब आकाश में चारों ओर से एक ही बल दिखाई दे, तो कोई कैसे गिर सकता है? अर्थात ग्रह आकाश में गतिहीन रहते हैं क्योंकि विभिन्न ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण बल संतुलन बनाए रखते हैं।