हम सबका जीवन 24 घंटे के एक दिन पर आधारित है — सुबह उठना, काम पर जाना, खाना, सोना… सब कुछ एक तय समय में बंधा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी धरती पर दिन सिर्फ 21 घंटे के हुआ करते थे? जी हां, विज्ञान कहता है कि यह पूरी तरह सच है।
धरती की रफ्तार कभी थी तेज़!
आज हम जिसे एक दिन कहते हैं, वह दरअसल पृथ्वी द्वारा अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने में लगने वाला समय है — यानी 24 घंटे। लेकिन वैज्ञानिकों की मानें तो करीब 60 करोड़ साल पहले पृथ्वी यह चक्कर सिर्फ 21 घंटे में पूरा कर लेती थी। इसका मतलब उस समय एक दिन, आज के मुकाबले 3 घंटे छोटा हुआ करता था।
क्यों घट गया था दिन का समय?
पृथ्वी की घूर्णन गति (Rotation Speed) कोई स्थिर मशीन जैसी नहीं है। समय के साथ यह धीमी होती जा रही है। इसके पीछे कई प्राकृतिक कारण ज़िम्मेदार हैं:
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चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव (Tidal Forces): समुद्रों में ज्वार-भाटे के कारण पृथ्वी की ऊर्जा धीरे-धीरे खत्म होती है, जिससे उसकी घूमने की गति कम होती जाती है।
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महासागरों में जल का प्रवाह: बड़ी मात्रा में पानी के इधर-उधर बहने से पृथ्वी के संतुलन और गति पर असर पड़ता है।
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ग्लेशियरों का पिघलना: इससे धरती का द्रव्यमान पुनः वितरित होता है, जिससे घूर्णन पर असर पड़ता है।
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आंतरिक कोर और मेंटल की गतिविधियां: पृथ्वी के भीतर चल रही गतिशील प्रक्रियाएं भी इसकी घूमने की रफ्तार को प्रभावित करती हैं।
हर सदी में बढ़ रहे हैं दिन के सेकंड!
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन सभी प्रभावों के कारण हर सदी में दिन की लंबाई लगभग 1.8 मिलीसेकंड बढ़ रही है। यह सुनने में बहुत कम लगता है, लेकिन लाखों-करोड़ों सालों में यही छोटा बदलाव धरती की रफ्तार में बड़ा अंतर ला देता है।
यह खोज सिर्फ समय की गणना को नहीं, बल्कि पृथ्वी के विकास और जीवन के इतिहास को भी एक नया नजरिया देती है। जब हम घड़ी देखते हैं, तो यह भूल जाते हैं कि समय भी एक बदलती हुई चीज़ है — और इसका राज हमारी अपनी धरती के भीतर छिपा है।