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झारखंड के चतरा में आज भी भीख मांग कर छठ पूजा करते हैं कई परिवार, सदियों से चली आ रही है परंपरा

Date : 06-Nov-2024

चतरा । सामाजिक परंपरा में भीख मांगना एक कुरीति मानी जाती है और समाज में इसे हेय दृष्टि से देखा जाता है लेकिन सूर्य उपासना का महापर्व छठ में भीख मांग कर पूजा करना समाज के लिए सुखद माना गया है। इस परंपरा का निर्वहन आज भी गांवों में की जाती है। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा में कई परंपराएं और मान्यताएं सदियों से चली आ रही है।

नेम और निष्ठा के इस महापर्व में भीख मांग कर पूजा-अर्चना करने वालों की संख्या भी काफी है। मनौती पूरी होने के बाद सदियों से चतरा में भीख मांग कर छठ महापर्व करने की परंपरा चली आ रही है। आज भी जिले में इस परंपरा का निर्वहन कई परिवार कर रहे हैं। खरना पूजा के एक दिन पहले व्रती ढोल बाजा के साथ घर-घर जाकर भीख मांगते हैं। श्रद्धालु जो भी स्वेच्छा से देते हैं, उसे व्रती पूजन सामग्री खरीद कर पूजा-अर्चना करते हैं।

मनौती पूरी होने पर भीख मांग कर छठ करने की परंपरा यहां प्राचीन काल से चली आ रही है। मनोकामना पूरी होने के बाद व्रती भीख मांगते हैं। वे दउरा या सूप लेकर आसपास के घरों में जाते हैं। यह संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। भीख मांगना जहां सामाजिक कलंक माना जाता है, वहीं छठ पूजा में भीख मांगने की प्रथा सुखद मानी जाती है। कई व्रती ढोल बाजे के साथ परिवार के अन्य सदस्यों के साथ कई घरों में जाते हैं। लोग स्वेच्छा से नकदी और चावल भिक्षा स्वरूप देते हैं। इस चावल का प्रसाद बनाते हैं और पैसे से पूजन की सामग्री खरीदने हैं।

माना जाता है कि छठी मईया मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। उनपर लोगों की अटूट आस्था है। सामाजिक समरसता और समाज में एकरुपता बनाए रखने की इस परंपरा की लोग काफी सराहना भी करते हैं। व्रती नियम और निष्ठा के साथ घरों की सफाई करने के बाद पारंपरिक गीतों से छठी मईया का आवाहन करते हैं। इसके बाद घर-घर जाकर भीख मांगते हैं। कहा जाता है कि छठी मैया से लोग मनौती मांगते हैं और जब उनकी मनौती पूरी होती है तो वे भीख मांग कर पूजा अर्चना करते हैं। सोमवार को पत्थलगडा के कई गांव में व्रती व उनके परिजन घर-घर जाकर भीख मांग कर इस परंपरा का निर्वहन करते दिखे।

 
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