स्वामी विवेकानंद जी 19वीं शताब्दी में जन्में एक महान एक महान अभिव्यक्ति थे जिन्होंने दुनिया को भारत की महानता का परिचय दिया और जिन्होंने अपने ज्ञान से संपूर्ण विश्व को प्रभावित किया एक युवा क्रांतिकारी के रूप में स्वामी विवेकानंद जी ने कई महान कार्य किए तथा उन्होंने संपूर्ण विश्व के युवाओं के मन में एक नई विचारधारा पैदा की स्वामी विवेकानंद युवाओं के लिए आज भी एक प्रेरणा का स्रोत है ।
स्वामी विवेकानंद का जन्म :-
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1869 को कोलकाता में एक कुलीन उदार परिवार में हुआ स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कोलकाता हाई कोर्ट में प्रसिद्ध वकील थे उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी। स्वामी विवेकानंद के कुल 9 भाई-बहन थे। स्वामी विवेकानंद के दादा दुर्गा दत्त फारसी और संस्कृत के विख्यात विद्वान थे जिन्होंने 25 वर्ष की उम्र में ही परिवार और घर त्याग कर सन्यास ले लिया था।
स्वामी विवेकानंद का बचपन :-
स्वामी विवेकानंद बचपन से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के स्वामी थे साथ ही वे काफी नटखट भी थे बचपन में वे अपने सभी दोस्तों के साथ काफी शरारत किया करते थे।
स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धार्मिक और अध्यात्मिक वातावरण में पले-बड़े उनके घर में प्रत्येक दिन नियमपूर्वक पूजा-पाठ होता था स्वामी विवेकानंद की माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थी जिसके चलते उन्हें पुराण, रामायण, महाभारत आदि धार्मिक कथा सुनते थे जिसके चलते कथावाचक प्राय: इनके घर आते रहते थे।
स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण बचपन धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण में गुजरा जिसके कारण उनके मन पर धर्म एवं अध्यात्म का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा धीरे-धीरे यहां पर बावरा होता चला गया अपने माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण स्वामी विवेकानंद के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और सत्य का ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हो गई। ईश्वर को जानने की लालसा ने धीरे धीरे उनके मन को अध्यात्म की और ले गया और वे संन्यासी हो गये ।
स्वामी विवेकानंद की प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा
स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बड़े तीव्र थे उन्होंने 8 वर्ष की आयु में सन् 1871 में ‘ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन संस्थान’ में दाखिला लिया इसके प्रश्चात उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। 1879 में, स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज की इंट्रेंस परीक्षा पास की इसके साथ ही वे कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से इंट्रेंस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले पहले विद्यार्थी बने ।
उन्होंने पश्चिमी तट जीवन और यूरोपीय इतिहास की पढ़ाई जनरल इंस्टिट्यूट असेंबली से की 1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा पास की और 1884 में उन्होंने स्नातक की डिग्री पूरी की नरेंद्रनाथ दत्त ने डेविड ह्यूम इमैनुएल कैंट और चार्ल्स डार्विन जैसे महान वैज्ञानिकों का अध्ययन कर रखा था इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद हरबर्ट स्पेंसर के विकास सिद्धांत से भी काफी प्रभावित थे जिसके कारण उन्होंने हरबर्ट स्पेंसर की किताब को बंगाली में परिभाषित किया।
स्वामी विवानंद का अपने गुरु से मिलन
ब्रह्म समाज से जुड़ने के बाद नरेन्द्र को ब्रह्म समाज के प्रमुख देवेन्द्रनाथ टैगोर से मिलने का मौका मिला और अपनी आदत के अनुसार उनसे पूछा कि “क्या उन्होंने ईश्वर को देखा हैं?”, तब देवेन्द्रनाथजी ने उनके प्रश्न का उत्तर देने की बजाय उनसे कहा कि “बेटे, तुम्हारी नज़र एक योगी की हैं”, और इसके बाद भी उनकी ईश्वर की खोज जारी रही.
ब्रह्म समाज से जुड़ने के बाद, परन्तु अपने अध्ययन के दौरान ही सन 1881 में वे दक्षिणेश्वर के रामकृष्ण परमहंस से मिले. श्री रामकृष्ण परमहंस माँ काली के मंदिर में पुजारी हुआ करते थे. वे बहुत बड़े विद्वान तो नहीं, परन्तु एक परम भक्त अवश्य थे. जब नरेन्द्र उनसे पहली बार मिले तो अपनी आदत और जिज्ञासा वश उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से भी पूछा कि “क्या उन्होंने ईश्वर को देखा हैं ?” तो रामकृष्ण परमहंस ने उत्तर दिया कि “हाँ, मैंने ईश्वर को देखा हैं और बिल्कुल वैसे ही जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ.” नरेन्द्र को ऐसा उत्तर देने वाले वे प्रथम व्यक्ति थे और नरेन्द्र उनकी बात की सच्चाई को महसूस भी कर पा रहे थे. उस समय वे पहली बार किसी व्यक्ति से इतना प्रभावित हुए थे. इसके पश्चात् उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से कई मुलाकातें की और अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने में सक्षम इस व्यक्ति [रामकृष्ण परमहंस] को अपना गुरु बना लिया. इस प्रकार नरेन्द्र ने अपने गुरु की छत्र – छाया में 5 सालों तक ‘अद्वैत वेदांत’ का ज्ञान प्राप्त किया.
रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु और मठवासी बनने का निर्णय
सन 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गयी, वे गले के कैंसर से पीड़ित थे. उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नरेन्द्र को बनाया था. अपने गुरु की मृत्यु के पश्चात् वे स्वयं और रामकृष्ण परमहंस के अन्य शिष्यों ने सब कुछ त्याग करके, मठवासी [Monk] बनने की शपथ ली और वे सभी बरंगोर [Barangore] में निवास करने लगे.
स्वामी विवेकानंद की यात्राएं -:
सन 1890 में नरेन्द्र ने लम्बी यात्राएँ की, उन्होंने लगभग पूरे देश में भ्रमण किया. अपनी यात्राओं के दौरान वे वाराणसी, अयोध्या, आगरा, वृन्दावन और अलवर आदि स्थानों पर गये और इसी दौरान उनका नामकरण स्वामी विवेकानंद के रूप में हुआ, उनके अच्छे और बुरे में फर्क करके अपने विचार रखने की आदत के कारण यह नाम उन्हें खेत्री के महाराज ने दिया था. इस यात्रा के दौरान वे राजाओं के महल में भी रुकें और गरीब लोगों के झोपड़ों में भी. इससे उन्हें भारत के विभिन्न क्षेत्रों और वहाँ निवास करने वाले लोगों के संबंध में पर्याप्त जानकारी मिली. उन्हें समाज में जात – पात के नाम पर फैली तानाशाही के बारे में जानकारी मिली और इस सब से अंततः उन्हें ये समझ आया कि यदि उन्हें एक नये विकसित भारत का निर्माण करना हैं तो उन्हें इन बुराइयों को ख़त्म करना होगा.
अपनी यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद के साथ उनका कर्मकुंडल [वाटर पॉट], उनका स्टाफ और 2 किताबें -: श्रीमद् भगवत गीता और दी इमिटेशन ऑफ़ क्रिस्ट हमेशा रहती थी. इस भ्रमण के दौरान उन्होंने भिक्षा भी मांगी.
स्वामी विवेकानंद के द्वारा शिकागो में दिया गया प्रसिद्ध भाषण
1993 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म परिषद का आयोजन किया गया जहां उन्होंने इतिहास का सबसे चर्चित भाषण दिया इस धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद भारत के प्रतिनिधि बनकर गए लेकिन उस समय यूरोप में भारतीयों को हीन दृष्टि से देखा जाता था लेकिन कहते हैं ना कि उगते सूरज को कौन रोक सकता है शिकागो में लोगों के विरोध के बावजूद एक प्रोफेसर के प्रयास से स्वामी जी को बोलने का अवसर प्राप्त हुआ स्वामी जी ने अंग्रेजी में “My all American Brother and Sister” कहकर उस सभा को संबोधित किया जिसके बाद उस भाषण सभा में उपस्थित विश्व के 6000 से भी अधिक विद्वानो ने करीब 2 मिनट तक लगातार तालियां बजायी ।
इस भाषण में उन्होंने सर्वप्रथम कहा कि मेरे सभी अमेरिकी भाइयों और बहनों आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मे आपको धन्यवाद देता हूँ इसके साथ ही धर्मों की माता सभी भारतीय सम्प्रदायों एवं सभी मतों के कोटि – कोटि हिन्दुओं की ओर से इस सभा में बैठे हुए सभी आदरणीय को मे धन्यवाद देता हूँ।
में इस मंच पर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया हैं कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने कहा कि में एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संपूर्ण संसार को सहिष्णुता और सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम भारतीय सभी धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, अपितु समस्त धर्मों को सच्चा मानकर उन्हें स्वीकार भी करते हैं।
मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और समू और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैं। मुझे आपको यह बताते हुए गर्व हो रहा हैं कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था । ऐसे धर्म का अनुयायी होने में में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा हैं ।
स्वामी विवेकनन्द के अन्य आध्यात्मिक कार्य
· स्वामी विवेकानंद जी को वहाँ की प्रेस ने “Cyclonic Monk from India” का नाम दिया था. उन्होंने ऐसी ही कई जगहों, घरों, कॉलेजों में अपने व्याख्यान दिए और उनके वक्तव्य के विषय होते थे -: भारतीयता, बुद्धिज्म और सामंजस्य.
· स्वामी विवेकानंदजी ने लगभग 2 साल पूर्व एवं मध्य यूनाइटेड स्टेट्स में लेक्चर देने में व्यतीत किये, जिनमे मुख्य रूप से शिकागो, न्यू यॉर्क, डेट्रॉइट और बोस्टन शामिल हैं. सन 1894 में न्यू यॉर्क में उन्होंने ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की.
· सन 1895 तक उनके व्यस्त कार्यक्रमों और दिनचर्या का असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ने लगा था और इसीलिए अब उन्होंने अपने लेक्चर टूर को विराम दिया और वेदांत और योग के संबंध में निजी कक्षाएं [प्राइवेट क्लास] देने लगे. इस वर्ष में नवम्बर माह में वे एक आयरिश महिला मार्गरेट एलिज़ाबेथ से मिले, जो आगे जाकर उनकी प्रमुख शिष्यों में से एक रही और बाद में उन्हें भगिनी निवेदिता के नाम से जाना गया.
· सन 1896 में वे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के मैक्स मुलर से मिले, जो एक इंडोलोजीस्ट थे और पश्चिम में स्वामी विवेकानंदजी के गुरु रामकृष्ण परमहंसजी की जीवनी लिखने वाले प्रथम व्यक्ति थे. उनके ज्ञान और विद्वता को देखते हुए उन्हें हॉवर्ड यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अकादमिक पद का प्रस्ताव दिया गया, परन्तु अपने मठवासी जीवन के बन्धनों के कारण स्वामीजी ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया.
स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा-दर्शन
विवेकानन्द उस समय मैकाले द्वारा प्रतिपादित प्रचलित अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ/विरोधी थे। क्योंकि स्वामी विवेकानंद का मानना था कि इस अंग्रेजी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य केवल सरकारी नौकर तथा बाबुओं की संख्या बढ़ाना है इसलिए विवेकानंद जी ऐसी शिक्षा व्यवस्था का विकास करना चाहते थे जिससे प्रत्येक बालक का सर्वांगीण विकास हो सके ।
स्वामी विवेकानन्द ने इस शिक्षा व्यवस्था को ‘निषेधात्मक शिक्षा’ की संज्ञा दिया और कहा कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, चरित्र का निर्माण नहीं करती समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती ऐसी शिक्षा का कोई लाभ नहीं।
स्वामी जी सैद्धान्तिक शिक्षा के पक्षधर नहीं थे वह मानव विकास के लिए व्यावहारिक शिक्षा को उपयोगी मानते थे। स्वामी विवेकानंद जी कहते है कि व्यक्ति की शिक्षा ही उसके भविष्य को तक्ष करती है इसलिए उनका कहना था कि शिक्षा में ऐसे तत्वों का होना अनिवार्य है जो मानव के सम्पूर्ण विकास के लिए महत्वपूर्ण हो।
स्वामी विवेकानंद का शिक्षा दर्शन व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित हैं, न कि केवल किताबी ज्ञान पर।
स्वामी विकानंद का भारत आगमन और रामकृष्ण मिशन की स्थापना
पश्चिमी देशों की 4 साल लम्बी भ्रमण यात्रा के बाद सन 1897 में स्वामी विवेकानंद भारत लौट आये. अपनी यूरोप यात्रा के बाद स्वामी विवेकानंद हमारे देश के दक्षिणी क्षेत्रों -: पंबन, रामेश्वरम, रामनाद, मदुरै, कुम्बकोनाम और मद्रास में भी अपने लेक्चर देने गये. वे अपने लेक्चर्स में हमेशा निम्न श्रेणी के लोगों के उत्थान की बात कहते थे. इन सभी स्थानों पर सामान्य जनता और राज घरानों ने इनका उत्साह पूर्वक स्वागत किया. इस दौरान वे ये अनुभव कर चुके थे कि यदि भारत में विकास की नई लहर शुरू करनी हैं तो जातिवाद को ख़त्म करना होगा, धर्म का सही अर्थ लोगों को समझाना होगा और उनका आत्मिक विकास [Spiritual Development] करना होगा और ये सब एक मिशन की स्थापना से ही संभव हैं. तब उन्होंने अपने गुरु के नाम पर ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की और इसके सिद्धांत और लक्ष्य निश्चित किये, जो कि कर्म योग पर आधारित थे.
अगले 2 साल में वे गंगा नदी के किनारे एक जमीन खरीदने और वहाँ एक भवन का निर्माण कराने में व्यस्त रहें और यहाँ ‘रामकृष्ण मठ’ की स्थापना की. रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ दोनों का ही प्रमुख केंद्र बेलूर मठ हैं. इनके अलावा स्वामी जी ने अन्य 2 मठों की और स्थापना की, जिसमे से एक ‘अद्वैत आश्रम’ हैं, जो हिमालय में अल्मोड़ा के पास मायावती में स्थित हैं और दूसरा मद्रास में स्थित हैं. इसके साथ ही 2 जर्नल्स की भी शुरुआत की -: अंग्रेजी भाषा में ‘प्रबुद्ध भारत’ और बंगाली में ‘उद्बोधन’.
विवेकानंद जी ने शिकागो में प्रथम विज़िट की यात्रा के दौरान जमशेद टाटा को अन्वेषण और शिक्षण संस्थान खोलने के लिए प्रेरित किया. इसकी स्थापना के बाद जमशेदजी टाटा ने उन्हें इस संस्थान के प्रमुख पद को ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया, परन्तु उन दोनों के बीच ‘आध्यात्मिक विचार’ न मिलने के कारण स्वामी विवेकानंदजी ने उनके इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया.
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा के आधारभूत सिद्धांत
स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा के कुछ आधारभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं –
· बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा प्राप्त है ।
· एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था हो जिसमें बच्चों का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।
· पाठ्यक्रम में पारलौकिक एवं लौकिक दोनों प्रकार के विषयों का स्थान हो।
· देश की आर्थिक विकास के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था हो।
· धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा दिया जाए।
· शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो और बालक आत्मनिर्भर बने।
· शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अत्यन्त गहरा एवं निकट होना चाहिए।
· शिक्षा ऐसी हो जो सीखने वाले को जीवन संघर्ष से लड़ने की शक्ति दे।
· सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये ।
स्वामी विवेकानंद के राजनीतिक विचार
स्वामी विवेकानंद एक राजनीतिक विचारक नहीं थे लेकिन उन्होंने अपने भाषणो और रचनाओं के माध्यम से जो विचार व्यक्त किए उसके आधार पर कहा जा सकता है कि वे भारतीय राष्ट्रवाद के एक धार्मिक नियमों का निर्माण करना चाहते थे।
राष्ट्रवाद के प्रमुख सिद्धांत:-स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जिस प्रकार संगीत के एक प्रमुख स्वर होते हैं उसी प्रकार प्रत्येक राष्ट्र के जीवन में एक प्रधान तत्व हुआ करता है इसलिए उन्होंने राष्ट्रवाद के एक धार्मिक सिद्धांत की नींव का निर्माण करने के लिए कार्य किया।
स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायक विचार
स्वामी विवेकानंद एक महान अभिव्यक्ति थे उनके विचारों में एक अलग ही जोश था। उनके विचारों से सभी के मन में एक अलग ही प्रकार का जोश भर जाता है वे कहते हैं कि उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए स्वामी विवेकानंद सभी युवाओं के लिए आज भी एक प्रेरणा का स्रोत है आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करके स्वामी विवेकानंद जी की कुछ अनमोल और प्रेरणादायक विचारों को पढ़ सकते हैं ।
स्वामी विवेकानंद का पश्चिम का दूसरा दौरा और अंतिम वर्ष
सन 1899 में अपने गिरते स्वास्थ्य के बाबजूद, स्वामी जी ने दूसरी बार अपने पश्चिम के दौरे का निश्चय किया और इस बार उनके साथ उनके शिष्य भगिनी निवेदिता और स्वामी तुरियानंद जी थे. इस दौरान उन्होंने सेन फ्रांसिस्कों और न्यू यॉर्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की और केलिफोर्निया में ‘शांति स्थापित किया. सन 1900 में वे ‘धर्म सभा’ हेतु पेरिस चले गये. यहाँ उनका लेक्चर ‘लिंगम की पूजा’ और ‘श्रीमद् भगवद की सत्यता’ पर आधारित था. इस सभा के बाद भी वे अनेक स्थानों पर गये और अंत में 9 दिसंबर 1900 को कलकत्ता वापस लौट आए और फिर बेलूर में स्थित बेलूर मठ गये. यहाँ उनसे मिलने वालों में जन साधारण जनता से लेकर राजा और राजनैतिक नेता भी शामिल होते थे. सन 1901 में उन्होंने कुछ तीर्थ यात्राएँ की, जिनमे उनका बोध गया और वाराणसी जाना, शामिल था. गिरते स्वास्थ्य के कारण वे अस्थमा, डायबटीज और नींद न आने जैसी बिमारियों से ग्रसित हो गये
स्वामी विवेकानंदजी की मृत्यु
जुलाई 4 सन 1902, अपनी मृत्यु के दिन वे प्रातः जल्दी ही उठ गये थे. वे बेलूर मठ गये और वहाँ 3 घंटों तक ध्यान [Meditation] किया और फिर अपने शिष्यों को शुक्ल – यजुर्वेद, संस्कृत व्याकरण और योग की फिलोसोफी का ज्ञान दिया. शाम को 7 बजे वे अपने कमरे में गये और किसी को भी डिस्टर्ब करने से माना किया. रात 9.10 बजे ध्यान के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी. उनके शिष्यों के अनुसार उन्होंने ‘महा–समाधी’ ली थी. उनका अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया.
स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित पुस्तकें एवं रचनाएं जो उनके जीवित रहते लिखी गई –
· संगीत कल्पतरु – (प्रकाशित वर्ष –1887)
· कर्म योग – (प्रकाशित वर्ष –1896)
· Lectures from Colombo to Almora – (प्रकाशन वर्ष – 1897)
· ज्ञान योग – (प्रकाशित वर्ष 1899)
· राज योग – (प्रकाशित वर्ष 1899)
· Seeing beyond the Circle – (प्रकाशित वर्ष – 2005)
स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित कुछ पुस्तकें एवं रचनाएं जो उनके मरणोपरांत लिखी गई –
· भक्ति योग
· Inspired Talks – (प्रकाशनवर्ष –1909)
· The East and the West – (प्रकाशन वर्ष – 1909)
· Para Bhakti or Supreme Devotion
· Practical Vedanta
· Speeches and writings of Swami Vivekananda: A Comprehensive Collection
स्वामी विवेकानंद का योगदान
अपने जीवनकाल में स्वामीजी ने जो भी कार्य किये और इसके द्वारा जो योगदान दिया गया, उसके क्षेत्र को हम निम्न 3 भागों में बाँट सकते हैं -:
वैश्विक संस्कृति के प्रति योगदान
स्वामी विवेकानंद ने धर्म के प्रति नई और विस्तृत समझ विकसित की,
उन्होंने सीख और आचरण के नये सिद्धांत स्थापित किये,
उन्होंने सभी लोगों के मन में प्रत्येक इन्सान के प्रति नया और विस्तृत नज़रिया रखने की प्रेरणा दी,
उन्होंने पूर्व और पश्चिम के देशों के बीच जुड़ाव [Bridge] का कार्य किया.
भारत के प्रति योगदान
· उन्होंने भारत के साहित्य को अपनी रचनाओं द्वारा समृद्ध बनाया,
· उनके प्रयासों से सांस्कृतिक जुड़ाव उत्पन्न हुआ,
· उन्होंने हमारी प्राचीन धार्मिक रचनाओं का सही अर्थ समझाया,
· भारतीय संस्कृति का महत्व समझाया और पश्चिमी सभ्यता के दुष्प्रभावों को भी वर्णित किया,
· देश में जातिवाद को ख़त्म करने के लिए उन्होंने निचली जातियों के कार्यों का महत्व समझाया और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ा.
हिंदुत्व के प्रति योगदान
· सम्पूर्ण विश्व के सामने हिंदुत्व की महानता और इसके सिद्धांत प्रतिपादित करके इसकी वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई.
· हिन्दुओं की विभिन्न जातियों के बीच होने वाले भेदभाव और मनमुटाव को कम करने का उल्लेखनीय प्रयास किया और इसमें बहुत हद तक सफल भी रहें.
· क्रिस्चियन मिशनरी द्वारा हिंदुत्व के संबंध में फैलाई जा रही गलत धारणाओं को समाप्त किया और इसका सही अर्थ समझाया.
· प्राचीन धार्मिक परंपराओं और नवीन सोच का उचित समन्वय स्थापित किया.
· हिन्दू फिलोसोफी और हिन्दू धार्मिक सिद्धांतों को एक नवीन और स्पष्ट रूप दिया.
विवेकानंद मेमोरियल
अपने जीवनकाल के दौरान 24 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे थे और समुद्र पर एक एकांत पहाड़ी पर जाकर ध्यान किया था, जो 3 दिनों तक चला था. यह पहाड़ी आज ‘विवेकानंद मेमोरियल’ के रूप में जानी जाती हैं और बहुत प्रसिद्ध दार्शनिक स्थल बन चुकी हैं.
स्वामी विवेकानंद अनमोल वचन
· उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
· हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं, किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है।
· एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क,दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।
· एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
· पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
· एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
· खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
· सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
· बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
· विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
· शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
· जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
· जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
· विवेकानंद ने कहा था - चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
· हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।