कहा जाता है किसी जननी ने अगर शूरवीर को जन्म दिया है तो जरुर वह जननी ख़ास होगी. शिवाजी जैसे शूरवीर को जन्म देने वाली जननी को ‘जीजाबाई’ के नाम से जाना जाता
जीजाबाई एक महान देशभक्त थी, जिनके रोम-रोम में देश प्रेम की भावना प्रज्जवलित थी। इसके अलावा वे भारत की वीर राष्ट्रमाता के रुप में भी मशहूर थी। क्योंकि उन्होंने अपने वीर पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज को ऐसे संस्कार दिए और उनके अंदर राष्ट्रभक्ति और नैतिक चरित्र के ऐसे बीज बोए जिसके चलते छत्रपति शिवाजी महाराज आगे चलकर एक वीर, महान निर्भिक नेता, राष्ट्रभक्त कुशल प्रशासक बने।
राजमाता जीजाबाई का पूरा जीवन साहस, त्याग और बलिदान से परिपूर्ण रहा। भारत की वीर प्रसविनी माता जीजाबाई ने अपने जीवन में विपरीत परिस्थियों में भी तमाम तरह की कठिनाइयों का डटकर सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और धैर्य नहीं खोया और हमेशा अपने लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने अपने पुत्र शिवाजी को भी समाज के कल्याण के प्रति समर्पित रहने की सीख दी।
जीजाबाई का जीवन
जीजाबाई (जिजाऊ) का जन्म 12 जनवरी 1598 ई. में महाराष्ट्र के बुलढाणा में हुआ. इनके पिता लखुजी जाधव सिंदखेड नामक गांव के राजा हुआ करते थे. उन्होंने जीजाबाई का नाम उस वक्त ‘जिजाऊ’ रखा था. कहते हैं की जीजाबाई अपने पिता के पास बहुत कम रही और उनकी बहुत ही छोटी उम्र में शादी कर दी गई थी. उस वक्त बचपन में ही शादी करवा दी जाती थी.
जीजाबाई और शाहजी के विवाह के बाद जब वह बड़े हुए तब शाहजी बीजापुर दरबार में राजनयिक थे. बीजापुर के महराज ने शाहजी की मदद से अनेक युद्ध में विजय प्राप्त की, इसी ख़ुशी में बीजापुर के सुलतान ने उन्हें अनेक जागीर तोहफे में दी थी. उन्ही तोहफों में एक जागीर शिवनेरी का दुर्ग भी शामिल है. यहाँ जीजाबाई और उनके बच्चे रहा करते थे. जीजाबाई ने 6 पुत्री व दो पुत्रों को जन्म दिया था. उन्ही पुत्रों में से एक शिवाजी थे.। उन्होंने सदैव अपने पति का राजनीतिक कार्यो मे साथ दिया। शाहजी ने तत्कालीन निजामशाही सल्तनत पर मराठा राज्य की स्थापना की कोशिश की थी। लेकिन वे मुगलों और आदिलशाही के संयुक्त बलों से हार गये थे। संधि के अनुसार उनको दक्षिण जाने के लिए मजबूर किया गया था। उस समय शिवाजी की आयु 14 साल थी अत: वे मां के साथ ही रहे। बड़े बेटे संभाजी अपने पिता के साथ गये। जीजाबाई का पुत्र संभाजी तथा उनके पति शाहजी अफजल खान के साथ एक लड़ाई में मारे गये। शाहजी मृत्यु होन पर जीजाबाई ने सती (अपने आप को पति के चिता में जल द्वारा आत्महत्या) होने की कोशिश की, लेकिन शिवाजी ने अपने अनुरोध से उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
जीजाबाई शिवनेरी के दुर्ग में दिया शिवाजी को जन्म
शाहजी ने अपने बच्चों एंव जीजाबाई की रक्षा के लिए उन्हें शिवनेरी के दुर्ग में रखा, क्योंकि उस वक्त शाहजी को अनेक शत्रुओं का भय था. यहाँ शिवनेरी के दुर्ग में ही शिवाजी का जन्म हुआ और बताया जाता है की शिवाजी के जन्म के वक्त शाहजी जीजाबाई के पास नहीं थे. शिवाजी के जन्म के बाद शाहजी को मुस्तफाखाँ ने उन्हें बंदी बना लिया था. उसके 12 वर्ष बाद शाहजी और शिवाजी की भेंट हुई. इस बीच जीजाबाई और शाहजी का संपर्क दुबारा हुआ.
मराठा साम्राज्य की शुरुआत
इतिहास को जितनी बार भी पढ़ा जाए तो मराठा साम्राज्य में अगर किसी का नाम सबसे पहले आता है तो वह है जीजाबाई और उनके पुत्र शिवाजी का. कहते है की शाहजी से अलग होने के बाद जीजाबाई ने शिवाजी को ऐसी शिक्षा दी कि उन्होंने मराठा साम्राज्य ही स्थापित कर दिया. जीजाबाई बहुत ही चतुर और बुद्धिमानी महिला थी, उन्होंने मराठा साम्राज्य के लिए अनेक ऐसे फैसले लिए जिनकी वजह से स्वराज स्थापित हुआ. एक प्रसंग मिलता है कि राज्य में महिलाओं के साथ होते अत्यचार को देखते हुए जीजाबाई ‘माँ भवानी’ के मंदिर जाती है, माँ से पुकार करती है कि स्त्रियों की इन दुर्दशा को दूर करने के लिए कोई उपाय बतायें, तो माँ खुश होकर जीजाबाई को वरदान देती है की उनके पुत्र के द्वारा अबलाओं की लाज, एंव उनपर हो रहे अत्याचारों को रोका जाएगा.
यही वजह है कि शिवाजी हमेशा भवानी माँ को पूजते थे और अपनी माँ के द्वारा मिली शिक्षा का निर्वहन करते हुए माँ को हमेशा पूजते रहे. इतिहास में लिखा है कि शिवाजी महाराज के पास एक ऐसी तलवार थी जिसका नाम ‘भवानी’ था यह भी माँ भवानी के वरदान से प्राप्त की गई थी.
जीजाबाई ने मराठा सम्राज्य के लिए अपने पुत्र शिवाजी को ऐसी कहानियाँ सुनाई, जिनसे उन्हें अपने धर्म और अपने कर्म का ज्ञान हुआ एंव लोगों की रक्षा कैसे करनी है इसका भी ज्ञान हुआ. यही वजह है कि शिवाजी ने 17 वर्ष की आयु में मराठा सेना का निर्माण किया और अनेक पराक्रमियों से लोहा लिया और विजय प्राप्त की. एक समय ऐसा भी आया जब जीजाबाई को शिवनेरी का दुर्ग दोबारा मिल गया था.
जीजाबाई के संस्कारों से निर्मित हुए छत्रपति शिवाजी महाराज
अपने जीवन की सभी परेशानियों को भूलते हुए ‘जीजाबाई’ ने अपने पुत्र शिवाजी को ऐसी शिक्षा दी, ऐसे संस्कार दिए जिनकी वजह से उनके पुत्र ने अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीना शुरू किया. उन्होंने अपने धर्म के लिए लड़ना शुरू किया. यही वजह है की शिवाजी को आज बड़े ही गौरव के साथ याद किया जाता है और उन्हें ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ के नाम से संबोधित किया जाता है.
शिवाजी ने हिन्दू सम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत की और उन्होंने अपने जीवनकाल में हिन्दू सम्राज्य को स्थापित करने में कामयाबी हासिल की और अनेक अत्याचारियों का वध किया. यह सब कुछ संभव हुआ था ‘जीजाबाई’ के संस्कारों, उनके द्वारा दी गई शिक्षा की वजह से.
प्रेरक मातृत्व
वीर माता जीजाबाई छत्रपति शिवाजी की माता होने के साथ-साथ उनकी मित्र, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत भी थीं। उनका सारा जीवन साहस और त्याग से भरा हुआ था। उन्होने जीवन भर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी धैर्य नहीं खोया और अपने ‘पुत्र ‘शिवा’ को वे संस्कार दिए, जिनके कारण वह आगे चलकर हिंदू समाज का संरक्षक ‘छात्रपति शिवाजी महाराज’ बना। जीजाबाई यादव उच्चकुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली थी। जीजाबाई यादव वंश की थी और उनके पिता एक शक्तिशाली सामन्त थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओँ को भली प्रकार समझने लगे थे।
जीजाबाई की मृत्यु
जीजाबाई की मृत्यु 17 जून 1674 को पचाड़ (मराठा साम्राज्य का क्षेत्र, वर्तमान महाराष्ट्र) में हुई थी। जीजा बाई की मृत्यु के समय उनकी उम्र 76 वर्ष थी। उनकी मृत्यु से 10 साल पहले यानी कि 1664 को उनके पति शाहजी का देहांत हो गया था।
जीजाबाई मराठा साम्राज्य की राजमाता के नाम से जाना गया। उन्होंने शिवाजी महाराज को एक योग्य शासक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
जीजाबाई के जीवन से जुड़ी अनसुनी बातें
हम जानते हैं की किसी का भी जीवन ऐसा नहीं होता जो एक ही शब्द में बता दिया जाए. हर एक इंसान के जीवन की एक ना एक कहानी जरुर होती है. जीजाबाई के जीवन में भी अनेक ऐसी कहानियाँ एंव ऐसे प्रसंग मौजूद है, जिन्हें बहुत कम सुनाया या पढाया जाता है. हम कुछ ऐसे ही प्रसंग उनके जीवन से जुड़े यहाँ लिख रहे हैं.
जीजाबाई स्वंय ऐसी महिला थी जिन्हें उनकी दूरदर्शिता एंव युद्ध नीतियों के लिए याद किया जाता था.
जीजाबाई ने हमेशा महिलाओं की रक्षा एंव मान-सम्मान को बचाने की बात की थी और अपने बेटों को सिखाई थी.
जीजाबाई का दूसरा बेटा यानि शिवाजी के भाई संभाजी की हत्या अफजल खान ने की थी. जीजाबाई ने शिवाजी को उसका बदला लेने के लिए प्रेरित किया.
शिवाजी खुद जीजाबाई से युद्ध नीतियाँ सिखा करते थे और उन्ही की प्रेरणा से उन्होंने अनेक जंग में जीत हासिल की थी.
जीजाबाई का निधन शिवाजी महाराज के राज्यअभिषेक के 12 दिन बाद हुआ. उन्होंने अपने हिंदुत्व के सपने को साकार करने के बाद अपने प्राण त्यागे थे.
जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन में बाल राजा, महाभारत एंव रामायण की कहानियाँ सुनाकर उन्हें धर्म के प्रति प्रेरित किया था.
छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में जीजाबाई का अहम योगदान रहा है. यही वजह है की शिवाजी को याद करने से पहले उनकी माता ‘जीजाबाई’ को याद किया जाता है. उन्ही के द्वारा बनाई गई नीतियों के अनुसार शिवाजी ने अनेक युद्ध में विजय प्राप्त की और वह मराठा साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुए. शिवाजी ने हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अपनी माँ ‘जीजाबाई’ को दिया है. इतिहास में जीजाबाई के इस योगदान को हिन्दुस्तान कभी भुला नहीं पायेगा.