Quote :

किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

Art & Music

बॉलीवुड के अनकहे किस्से- जब धुन सोचते-सोचते नौशाद किसी और के घर में घुस गए

Date : 29-Jan-2023

 नौशाद साहब भारतीय संगीत के ऐसे सितारे हैं जिनके जिक्र के बिना हमारे फिल्मी संगीत का इतिहास अधूरा ही होगा। लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत को साथ लेकर जिस तरह का संगीत आपने पेश किया वह अपने आप में बेमिसाल है। शास्त्रीय संगीत की बंदिशों को उन्होंने इतने आसान तरीके से फिल्मी गीतों में डाला कि आम आदमी भी समझ सके। अपने समय के दूसरे संगीतकारों के मुकाबले नौशाद साहब ने हिन्दी फिल्म संगीत के लोकप्रिय ढांचे का ख्याल रखते हुए भी कलात्मक ढंग के संगीत को प्रस्तुत करने का काम किया । यह करते समय उन्होंने मेलोडी को एक ऊंचा मक़ाम हासिल कराया और भारतीय फिल्म संगीत को अमर बना दिया। उनके वक्त के बहुत कम संगीतकार इतना ऊंचा काम कर पाए। नौशाद साहब के संगीत और गानों का असर भले ही सीधा-सादा महसूस होता है फिर भी हर गीत और रचना के पीछे उनकी रात-दिन की मेहनत है। 

नौशाद साहब न तो सुनने वालों की 'चीप टेस्ट' के शिकार हुए और न ही दूसरे संगीतकारों की तरह कुछ समय बाद पश्चिमी संगीत के आदी हो गए। नौशाद साहब भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति अपने प्रेम, भारतीय लोक संगीत और खूबसूरती के फलसफे को हमेशा अपने साथ लेकर चलते रहे। स्टेशन मास्टर, रतन ,अनमोल घड़ी, शाहजहां ,अनोखी अदा, मेला , अंदाज , दुलारी, बाबुल, दास्तान, दीदार ,आन ,बैजू बावरा उड़न खटोला, मदर इंडिया, मुगले आजम,गंगा जमुना, मेरे महबूब, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम ,पालकी, आदमी, संघर्ष, धर्म कांटा और लव एंड गॉड आदि जैसी अनेकों सुपर हिट फिल्मों का संगीत आज भी उतना ही लोकप्रिय है जितना अपने समय में था। लेकिन यह सब आम जनता तक पहुंचाने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत और संघर्ष किया। एक समय वह भी था जब नौशाद साहब खाली हाथ लखनऊ से बंबई आए और जीने की सीढ़ियों, फुटपाथों पर सोए। उनकी जेब में महीने भर के खर्चे के लिए महज बीस रुपये हुआ करते थे और रुपये खत्म होने पर फाका करते हुए नौकरी की तलाश में मारे-मारे फिरते थे। स्टूडियो के सामने खड़े होने पर गेटमैन भगा दिया करते थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और फिर उन्हें कारदार प्रोडक्शन में पांच सौ रुपए महीने की नौकरी मिली।

इस दौर में वे काम में इतना मशगूल हो जाते थे कि उन्हें अपना ही होश नहीं रहता था। कोई धुन या फिर कोई गाना जैसे ही उनके दिमाग में आती तो वे अपनी सुध-बुध खो बैठते और कई अजीब-ओ-गरीब हरकतें कर बैठते। एक बार जब वे दादर में किराये पर एक फ्लैट में रहते थे तब उनके साथ एक दिन मजेदार वाकया हुआ। एक गाने की तर्ज के ख्याल में वे चलते ही चले गए और सीधे परेल की झोपड़पट्टी में पहुंच कर एक घर में घुस गए। अपना घर मानकर बड़े आराम से कोट उतारकर रख दिया और बिस्तर पर लेट गए। आंखें बन्द कर बड़ी ही मीठी और कशिश भरी तर्ज बनाने में डूब गए। तभी भीतर के कमरे में से एक औरत बाहर आई और उन्हें देख वह हैरान हो गई। फिर मराठी में चिल्ला उठी, कोण तू? इयं काय करतोस? (तुम कौन हो? यहां क्या कर रहे हो?) यह सुनकर नौशाद साहब हड़बड़ाकर उठे और अपना कोट उठाकर भागना शुरू किया। भागते-भागते बस स्टैंड पर आए और बस पकड़कर दादर पहुंचे। घर पहुंचने पर उन्हें अपने ही पागलपन पर हंसी आ रही थी और इस ख्याल से दिल कांप भी रहा था कि अकेली औरत के घर में घुसने की वजह से लोगों की तगड़ी मार भी पड़ सकती थी। 

बात यहीं खत्म नहीं हुई। जब वे दोबारा 'उसी' गाने की तर्ज के बारे में सोचते हुए इमारत की सीढ़ियां अपनी ही धुन में चढ़ते जा रहे थे तो बीच में उनके एक दोस्त ने उन्हें टोका और कहा- नौशाद, तुम जिस्म और दिमाग दोनों से थक जाते हो। तुम ओवलटीन पिया करो तभी तुम्हारी सेहत अच्छी रहेगी।” उसके कहने पर उन्होंने ओवलटीन का डिब्बा खरीदा और फ्लैट की ओर चल पड़े। अब आप उन्हें पागल कहें या बहुत काम करने की सनक का नतीजा कहें, फ्लैट के ताले को चाभी से खोलने की बजाय वे अपने ही मूड में ताले को ओवलटीन के डिब्बे से खोलने की कोशिश करने लगे। यह तमाशा लगभग आधा घंटा चलता रहा। उनके पड़ोसी भी उनकी इस हरकत को हैरत से देख रहे थे। तब उनके पड़ोस में रहने वाली भरत नाट्यम की मशहूर नर्तकी दमयन्ती जोशी ने फ्लैट खोलने में उनकी मदद की।

चलते-चलते 

नौशाद साहब पहले भारतीय संगीतकार थे जो फिल्म आन के बैक ग्राउंड म्यूजिक के सिलसिले में विदेश (लंदन) गए। इसी फिल्म के लिए नौशाद साहब ने मौसीकी की दुनिया में पहली बार सौ वाद्य यंत्रों के ऑर्केस्ट्रा का इस्तेमाल कर पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। इससे पहले किसी मौसीकार ने यह कारनामा नहीं किया था। साउंड मिक्सिंग भी हमारी फिल्म इंडस्ट्री को नौशाद साहब की ही देन है। सन 1951 में बीबीसी के ऑर्केस्ट्रा ने नौशाद साहब का बनाया हुआ संगीत प्ले किया था। यह पहला मौका था जब किसी इंडियन म्यूजिक कंपोजर के लिखे हुए म्यूजिक पर किसी वेस्टर्न ऑर्केस्ट्रा ने प्रोग्राम पेश किया हो।

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement