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किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

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राष्ट्र विरोधी वामपंथी ताकतों के हाथ का खिलौना है कांग्रेस

Date : 18-Apr-2024

देश में लोकसभा चुनाव का समय चल रहा है। 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक सात चरणों में आम चुनाव सम्पन्न होंगे। चार जून को मतगणना होगी और नतीजे सामने आएंगे। लेकिन मतदाता के मन में तो यह तय हो गया है कि किसे वोट देना है। लेकिन इस बार वोट देते समय याद रखें कि भारत को विश्व गुरु बनाना है या एक ऐसा कबीला जो जात-पात के चक्रव्यूह में उलझा रहे। यह भी याद रखना होगा कि गरीब की कोई जाति नहीं होती, गरीब केवल गरीब होता है। किसान की भी कोई जाति नहीं होती, किसान केवल किसान होता है। जात-पात के नाम पर हमें बहुत छला गया है, हमारे गली-मोहल्लों में ही नहीं हमारे दिलों में भी दीवारें तनवा दी गई। 

जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत संकल्प यात्रा को संबोधित करते हुए कहा था कि उनके लिए देश मे केवल चार जातियां हैं। ये चार जातियां गरीब, युवा, महिलाएं व किसान हैं। मैं इन चारों जातियों के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहा हूँ। जब प्रधानमंत्री यह बोलते हैं तो आंखों के सामने हाशिये पर पड़ा वह गरीब व्यक्ति दिखाई देता है, जिसके लिए कांग्रेस ने नारे तो बहुत दिए, लेकिन कभी उसकी गरीबी दूर करने का प्रयास नहीं किया। किसान हो या महिलाएं या फिर देश का युवा भविष्य, कांग्रेस के पास इन्हें देने के लिए विज़न तक नहीं है। यह बात स्वयं सिद्ध होती है, क्योंकि कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी जाति आधारित जनगणना की बात बड़े जोर-शोर से कर रहे हैं। राहुल गांधी को लगता है कि जातिगत जनगणना उनके लिए मास्टर स्ट्रोक है। पर वह यह भूल जाते हैं कि जातिगत जनगणना पर उनका जोर उनकी नीयत को बेनकाब करता है। केवल चुनाव जीतने के लिए देश को बांटना कांग्रेस की पुरानी फितरत रही है। कभी उसने धारा 370 लगाकर जम्मू कश्मीर को भारत से अलग किया तो कभी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के नाम पर देश मे दरार डाली। ईसाई मिशनरियों के जरिये कभी वनवासियों में तो जय भीम जय मीम के जरिये दलित भाइयों में फूट डाली। फूट डालो राज करो की नीति में तो कांग्रेस ने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया।
जब दुनिया सहित पूरा भारत जात-पात से ऊपर उठ रहा है। इक्कीसवीं सदी का युवा जब बिना जात पात पूछे अपने दोस्तों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार कर रहा है। जब रेलवे स्टेशनों पर, बस स्टैंड पर, रेस्टोरेंट और होटलों पर, बाजारों में, दुकानों पर लोग बिना जात पात पूछे एक दूसरे से व्यापार, व्यवहार और आहार ग्रहण कर रहे हैं। तब कांग्रेस के युवराज भारत को ना जाने कितने पीछे ले जाने को प्रतिबद्ध दिखाई दे रहे हैं। जाति जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाये घूम रहे राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस भी सोशल मीडिया पर कैम्पेन चला रही है, "गिने नहीं जाओगे, तो सुने नहीं जाओगे"। कांग्रेस के कैम्पेन की भाषा पर गौर करिए। ये वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए भारतीय समाज मे वैमनस्य भाव पैदा करने की भाषा है।
1980 में इंदिरा गांधी ने चुनावी नारा दिया था कि न जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर। तब कांग्रेस को हर जात का वोट अपने हाथ में चाहिए था। तो जात-पात से ऊपर उठकर कांग्रेस को वोट करने की अपील की जा रही थी। आज भी कांग्रेस को वोट चाहिए, तो आज कांग्रेस मतदाताओं को जात-पात में बांटकर वोट पाना चाहती है। राहुल की जाति जनगणना फॉर्मूले का विरोध उनकी पार्टी में भी शुरू हो गया है। उनकी पार्टी के दिग्गज नेता आनंद शर्मा ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर जातिवाद को चुनावी मुद्दा बनाने का विरोध किया है।
दरअसल राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस उनकी दादी यानी इंदिरा गांधी के जमाने से उधार के वामपंथी एजेंडे पर चल रही है। या यूं कहें कि कांग्रेस वामपंथियों के हाथ का खिलौना रही है तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। जब राहुल गांधी तेलंगाना में ये बोलते हैं कि हम फाइनेंशियल व इंस्टिट्यूशनल सर्वे से ये पता लगाएंगे की 'देश का धन किसके व कौन से वर्ग के हाथ में है', तो साफ पता चल जाता है कि वे मार्क्स-लेनिन और स्टालिन की नीतियों को लागू करना चाहते हैं। ये विशुद्ध वामपंथी विचार है। राहुल गांधी का विश्वास भारत को विश्व की आर्थिक शक्ति बनाने में नहीं है, बल्कि एक का माल छीनकर दूसरे को देने में हैं। बस्तर में नक्सली इसी विचार को लेकर आये और समाज मे फूट डाली। हालात आप देख सकते हैं, कि वामपंथी लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं रखते बल्कि वे हर बात हल केवल लूटपाट, हिंसा और मानव अधिकारों के हनन से निकालते हैं। वे नागरिकों से जीने का अधिकार भी छीन लेते हैं। जब कथित अवैध जनताना सरकार लगाकर नागरिकों की क्रूर हत्या करते हैं, तो उपस्थित लोगों की सात पीढियां कांप उठती है।
आपको याद होगा कि 28 सितम्बर 2015 को देश के प्रमुख अखबारों की सुर्खियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का रूपनगर में दिया गया संबोधन था, जिसमें डॉ भागवत ने कहा था कि भारत एक जाति मुक्त राष्ट्र होना चाहिए। संघ के स्वयंसेवकों की एक शाखा को संबोधित करते हुए डॉ भागवत ने कहा था कि जातीय भेदभाव के कारण राष्ट्र को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। जातीय भेदभाव देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है, जिसके परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं। संघ प्रमुख के इस व्यक्त्व्य को समझने के लिए हमें भारत के उन अनन्य महापुरुषों के विचारों को, चिंतन को, मनन को, अतुलनीय राष्ट्र प्रेम को समझना होगा,जो जीवनपर्यंत केवल और केवल अपने देश, समाज, राष्ट्र, बंधु-बांधवों की उत्तरोत्तर उन्नति के लिए प्रयास करते रहे। अपने विचार, आचार और व्यवहार से आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर गए।
“तं वर्ष भारतं नाम भारती यत्र संततिः।।“ अर्थात् हम सभी हिंदू बंधु-बांधव हैं। हमारी जाति भी एक है, क्योंकि हममें समान पूर्वजों का ही रक्त संचारित होता है, हम सभी भारतीय संतति हैं। हमारे पौराणिक श्लोकों में भी “आर्य” शब्द का तात्पर्य उन सभी लोगों से है, जो सिंधु नदी के इस पार एक जाति के अविभाज्य अंग बने थे। वैदिक-अवैदिक, ब्राह्मण-चांडाल सभी का इसमें समावेश था। उन सभी की एक ही जाति थी, एक ही संस्कृति थी और एक ही देश था। वीर विनायक दामोदर सावरकर लिखते हैं कि हम सभी रक्त की समानता के बंधनों से एकता के सूत्र में आबद्ध हैं। हम एक राष्ट्रमात्र ही नहीं अपितु एक जाति भी हैं। सावरकर इसे कुछ ऐसे समझाते हैं कि “जाति शब्द का मूल जन धातु से आरोपित है, जिसका अर्थ है जनता और इसका अर्थ है भातृसंघ। एक ही धातु से उद्भूत हुई जाति की नसों में समान रक्त का संचार होता और यह शब्द इसी का बोधक है। सभी हिंदुओं की नसों में उसी शक्तिशाली जाति का पावन रक्त प्रवाहित हो रहा है, जिसका उद्भव उन वैदिक पूर्वजों अर्थात् सिंधुओं से हुआ है।”

वैदिक काल से लेकर अब तक ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जो यह बताते हैं कि हिंदू समाज वर्ण व्यवस्था में जरूर विश्वास करता था, लेकिन जाति मुक्त था। महर्षि पाराशर ब्राह्मण थे किंतु उन्होंने एक धीवर कन्या से विवाह किया। इन्हीं दोनों की संतान के रूप में उत्पन्न हुए महर्षि वेदव्यास। महाभारत काल के कर्ण, घटोत्कच, विदुर सरीखे अति विशिष्ट व उल्लेखनीय पुरुषों की जन्म कहानियां कुछ इसी तरह की हैं। सम्राट चंद्रगुप्त ने एक ब्राह्मण कन्या से विवाह कर जो पुत्र उत्पन्न किया, वे वही बिंदुसार थे, जिन्होंने अशोक जैसे महाप्रतापी राजा को जन्म दिया। स्वयं अशोक ने एक वैश्यपुत्री को अपनी पत्नी बनाया। सम्राट हर्षवर्धन स्वयं वैश्य थे, लेकिन उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह एक क्षत्रिय से किया। व्याघकर्मा एक व्याघ के पुत्र थे, लेकिन उनकी माता ब्राह्मण कन्या थी। आगे चलकर व्याघकर्मा महाराज विक्रमादित्य के यज्ञ आचार्य की पदवी पर अधिष्ठित हुए। सावरकर कहते हैं कि“शुद्रो ब्राह्मण-तामेति ब्रह्मणाश्चेति शुद्रताम्” अर्थात् यह भी संभव है कि किसी जाति विशेष में जन्म ग्रहण करने वाला व्यक्ति अपने सद्कार्य या दुष्कर्मों की वजह से किसी अन्य जाति में शामिल हो जाए।
स्वामी विवेकानंद भी कहते हैं कि हम सब की संस्कृति, पूर्वज, राष्ट्र सब कुछ एक है। आर्य, द्रविड, तमिल सभी हिंदू हैं। अतऋ वर्ष विद्वेष की आग भड़काने में अपनी शक्ति व्यय मत करो। समस्त हिंदुओं का आह्वान करते हुए स्वामी जी कहते हैं कि यह मत भूलो कि तुम्हारा जन्म व्यक्तिगत उपभोग के लिए नहीं है। भूलो मत कि ये शूद्रवर्ण, अज्ञानी, निरक्षर, गरीब, यह मछुआरा, यह भंगी, ये सारे तुम्हारे ही अस्थिमांस के हैं। ये सारे तुम्हारे भाई हैं। अपने हिंदुत्व का अभिमान धारण करो। स्वाभिमान से ये घोषणा करो कि मैं हिंदू हूं, प्रत्येक हिंदू मेरा भाई है। अशिक्षित हिंदू, गरीब और अनाथ हिंदू, ब्राह्मण हूं, अस्पृश्य हिंदू, प्रत्येक हिंदू मेरा भाई है।
हमारे संपूर्ण इतिहास के एक-एक पन्ना यही तथ्य प्रस्तुत करता है कि हमारी नसों में एक ही पावन रक्त प्रवाहित हो रहा है। हम सब आपस में न केवल बंधुत्व के भाव से बंधे हुए हैं, बल्कि हमारा गौरवशाली इतिहास भी हमें एक सूत्र में बांधता है। हममें से कोई एकेश्वरवादी है कोई अनेकेश्वरवादी, कोई आस्तिक हो, कोई नास्तिक, लेकिन हम सभी हिंदू हैं। जो रक्त भगवान राम और कृष्ण, बुद्ध और महावीर में, नानक और चैतन्य में, रोहीदास और तिरुवेल्लकर की धमनियों में प्रवाहित होता रहा है, वहीं हममें भी प्रवाहित हो रहा है। हम जन्म से ही सहोदर हैं।  हम एक ही जाति के हैं और यह जाति रक्त की समानता के बंधन में आबद्ध है। यह जाति अखंड है, अविभाज्य है और यही सत्य भी है। आज के परिप्रेक्ष्य में भी आवश्यक है कि हम अपनी ऊर्जा, अपने ज्ञान, अपने पौरुष का उपयोग देश की तरक्की के लिए करें। एक-दूसरे के ज्ञान के सहारे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्जवल भविष्य का निर्माण करें।
हमें लोगों के बीच फिर खोया हुआ विश्वास लौटाने की जरूरत है। मध्यकाल में षडयंत्रपूर्वक फैलाई गई छुआछूत की भावना ने सनातन धर्म को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया। जरूरत है अपने लोगो को अपना बनाने की, ताकि वे किसी के हाथों की कठपुतली ना बनकर रह जाएं। हमें सतर्क रहना होगा क्योंकि देशविरोधी ताकतें लोगों की भावनाएं भड़काकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगी हैं। 
तो भाईयों और बहनों जागो। ये वक़्त स्वार्थ की नींद सोने का नहीं है। देश के लिए कुछ कर गुजरने का है। आप भारत को जातियों में बंटा हुआ देखना चाहते हैं, या हर गरीब को मजबूत होते देखना चाहते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था को छलांग लगाते हुए देखना चाहते हैं या बेरोजगार घूमते युवाओं को। आत्महत्या करते किसान तो आपको याद होंगे, लेकिन अब आप चाहेंगे तो किसान सशक्त बनेगा। पाई-पाई को तरसती महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने आप आपके हाथ में हैं। भारत को जाट-पात के विषकाल से निकालकर मजबूत अर्थव्यवस्था वाले अमृतकाल में ले जाने के लिए आपका एक-एक वोट चमत्कार करेगा। और ये मत भूलियेगा की चमत्कार को पूरी दुनिया नमस्कार करती है। अब देर नहीं जब पूरी दुनिया भारत को नमस्कार भी करेगी, कर रही है। 
 
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