“तं वर्ष भारतं नाम भारती यत्र संततिः।।“ अर्थात् हम सभी हिंदू बंधु-बांधव हैं। हमारी जाति भी एक है, क्योंकि हममें समान पूर्वजों का ही रक्त संचारित होता है, हम सभी भारतीय संतति हैं। हमारे पौराणिक श्लोकों में भी “आर्य” शब्द का तात्पर्य उन सभी लोगों से है, जो सिंधु नदी के इस पार एक जाति के अविभाज्य अंग बने थे। वैदिक-अवैदिक, ब्राह्मण-चांडाल सभी का इसमें समावेश था। उन सभी की एक ही जाति थी, एक ही संस्कृति थी और एक ही देश था। वीर विनायक दामोदर सावरकर लिखते हैं कि हम सभी रक्त की समानता के बंधनों से एकता के सूत्र में आबद्ध हैं। हम एक राष्ट्रमात्र ही नहीं अपितु एक जाति भी हैं। सावरकर इसे कुछ ऐसे समझाते हैं कि “जाति शब्द का मूल जन धातु से आरोपित है, जिसका अर्थ है जनता और इसका अर्थ है भातृसंघ। एक ही धातु से उद्भूत हुई जाति की नसों में समान रक्त का संचार होता और यह शब्द इसी का बोधक है। सभी हिंदुओं की नसों में उसी शक्तिशाली जाति का पावन रक्त प्रवाहित हो रहा है, जिसका उद्भव उन वैदिक पूर्वजों अर्थात् सिंधुओं से हुआ है।”
स्वामी विवेकानंद भी कहते हैं कि हम सब की संस्कृति, पूर्वज, राष्ट्र सब कुछ एक है। आर्य, द्रविड, तमिल सभी हिंदू हैं। अतऋ वर्ष विद्वेष की आग भड़काने में अपनी शक्ति व्यय मत करो। समस्त हिंदुओं का आह्वान करते हुए स्वामी जी कहते हैं कि यह मत भूलो कि तुम्हारा जन्म व्यक्तिगत उपभोग के लिए नहीं है। भूलो मत कि ये शूद्रवर्ण, अज्ञानी, निरक्षर, गरीब, यह मछुआरा, यह भंगी, ये सारे तुम्हारे ही अस्थिमांस के हैं। ये सारे तुम्हारे भाई हैं। अपने हिंदुत्व का अभिमान धारण करो। स्वाभिमान से ये घोषणा करो कि मैं हिंदू हूं, प्रत्येक हिंदू मेरा भाई है। अशिक्षित हिंदू, गरीब और अनाथ हिंदू, ब्राह्मण हूं, अस्पृश्य हिंदू, प्रत्येक हिंदू मेरा भाई है।