हर साल विजयदशमी में रावण वध देखते हैं तो मन में ऐसा होता है कि समाज में घूमने वाले रावण कम होंगे। लेकिन ये तो खूनबीज के समान है। रावणों की संख्या में बेहिसाब खण्ड हो रहा है। एक केट सौ पैदा हो रहे हैं। वो तो फिर भी विद्वान था, नीतिपाल था, भगवान शिव का उपासक था। सीता का हरण किया, लेकिन बुरी नजर से नहीं देखा। विवाह का अनुरोध किया गया परंतु विवाह नहीं किया गया। एक गलत की तुलना में उसे सजाए गए चारदीवारी पाद, मगर आज के दौर में हजारों अपराध करने के बाद भी रावण सरेआम सड़कों पर घूम रहे हैं, कोई लाज नहीं, शर्म नहीं।
दशहरा पर रावण दहन का चलन बन गया है। लोग इससे सबक नहीं लेते। रावण दहन की संख्या बढ़ाने से लाभ नहीं होगा। लोग इसे मनोरंजन के साधन के तौर पर लेते हैं। पिछले वर्ष के गुट हर ग्लोब देश के विभिन्न भागों में तीन गुणा अधिक रावण के पुतले मिले हैं। इसके बावजूद अपराध में कोई कमी आएगी, इसके बढ़ते आंकड़े देखने पर ऐसा नहीं लगता। हमें अपने धार्मिक ग्रंथों से प्रेरणा लेनी चाहिए। रावण दहन के साथ दुर्गुणों का त्याग करना चाहिए। रावण दहन का अर्थ बुराइयों का अंत दर्शाता है। हमें पुतिन की जगह बुरे लोगों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। समाज में अपराध, बुराई के रावण लगातार बढ़ रहे हैं। रिश्ते का ख़ून इसमें सबसे ज़्यादा हो रहा है। माँ, बाप, भाई, बहन, बच्चे तक की हत्या की जा रही है। गुमनाम के मामले भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
रावण सर्वज्ञ था, उसे हर वस्तु का पता चला क्योंकि वह विद्या तंत्र से परिचित था। रावण ने केवल अपनी शक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने में सीता का अपहरण किया। अपनी छाया तक उस पर नहीं छापी। आज का रावण दुष्ट है, जाहिल है, वैश्याचारी है, नशे के लिए पत्नी को जलाता है, शादी की नियत से महिलाओं का विवाह करता है। इस कुकृत्य में शामिल हुआ तो रेप भी। धर्म के नाम पर हथियार बांधे जाते हैं, लड़ाई की शक्ति शामिल नहीं होती, इसलिए दूसरे के कंधे पर बंदूक लहराई जाती है। दुश्मन से उसका कोई वास्ता नहीं है, पराई नारी के प्रति उसके मन में कोई श्रद्धा नहीं है। आज का रावण रावण से रावण है, खतरनाक है, सर्वसहयोग है। वह महलों में रहती है। गली-कूचों में रहता है। गांव में भी है. शहर में भी है. वह गंवार भी है। पढ़ें-लिखा भी है. लेकिन राम उनके धनी नहीं हैं। बस एक दिन ऐसा ही है कि समाज से रावणपन निकलेगा खुद-ब-खुद एक दिन।
रावण की मृत्यु का मुख्य कारण विनाश था, जो उसके अंतिम विनाश का कारण था। इतिहास इस बात का गवाह है कि उचक्के पुरुष (और महिलाएं भी) कभी सुखी नहीं रहते। विपरीत लिंग के प्रति उनके जुनून के कारण कई शक्तिशाली राजाओं ने अपना राज्य खो दिया। रावण ने सीता की शारीरिक संरचना के बारे में सुना, फिर उस पर विचार करना शुरू कर दिया और अंततः गलत इच्छा पर काम करना शुरू कर दिया। अंत में रावण ही रावण की मृत्यु का मुख्य कारण बना। रावण महाज्ञानी था, लेकिन उसके अपमान के कारण उसका सर्वनाश हो गया। रावण परम शिवभक्त भी था। तपस्या के बल पर वह कई शक्तियां अर्जित करती है। रावण की तरह उसके अन्य भाई और पुत्र भी बलशाली थे। लेकिन अच्छे आचरण के कारण उनके लगातार अत्याचार बढ़ते जा रहे थे जिसके बाद भगवान ने राम का अवतार लिया और रावण का वध किया। रामायण में रावण को अधर्मी बताया गया है क्योंकि रावण ज्ञानी के बाद भी किसी धर्म का पालन नहीं करता था। यही उनका सबसे बड़ा अवगुण था। जब युद्ध में रावण की मृत्यु हुई तो मंदोदरी विलाप करने वाले थे, अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म मित्र को तोड़ने वाले, देव-असुर और शिक्षाओं की कन्याओं का जहां-तहां से हरण करने वाले, आज तू अपने इन में पाप कर्मों के कारण ही वध प्राप्त होता है।
रावण के जीवन से हमें जो सीखना चाहिए वह यह है कि हमें कभी भी अपने दिल में विश्वास नहीं जगाना चाहिए। किसी भी प्रकार की इच्छाओं के लिए हमें लगातार अपने हृदय की जांच करानी चाहिए। अगर है तो उसे डब्बे में दबाएँ। क्योंकि अगर अपवित्र छोड़ दिया गया है तो यह हमें पूरी तरह से नष्ट कर देगा। सब कुछ ध्यान से शुरू होता है। आज के लोग तकनीकी विशेषज्ञ और समझदार हो गए हैं कि बोस को पता चल गया है कि बुराई और अच्छाई क्या है। लेकिन फिर भी दुनिया में बुरीइयाँ बहुतायत ही जा रही हैं। जो संदेश देने के लिए रावण दहन की प्रथा शुरू की गई थी, वो संदेश तो आज कोई लेना ही नहीं चाहता।
लेखिका:-प्रियंका सौरभ